देहरादून : गैसैंण को सरकार ने राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया था। राज्यपाल ने सरकार के फैसले पर मुहर लगाकर आधिकारिक रूप से ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया। इसको लेकर प्रदेशभर में तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। भाजपा इसका राजनीति लाभ लेना चाहती है। वो अपने ढंग से इसे प्रचारित कर रही है। कांग्रेस के पास कहने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। हालांकि हरीशी रावत ने जो कदम उठाए थे। उन पर कांग्रेस भी इसे जनता के बीच भुनाने का पूरा प्रयास करेगी। लेकिन, इन सबके बीच जो सबसे बड़ा सवाल है। वह यह है कि उत्तराखंड की स्थाई राजधानी कौन सी होगी…? गैरसैंण में कितने दिनों या हमीनों को ग्रीष्मकाल होगा। जिस तरह से अब तक होता आया था। आगे भी होता रहेगा। नेता पिकनिक मनाने जाएंगे और एक सप्ताह का सत्र दो-तीन दिनों में समेटकर वापस लौट आएंगे।
सरकार के फैसले पर काॅमरेड इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाये जाने की राज्य सरकार की घोषणा पर राज्यपाल की मोहर लगाया जाना प्रदेश की जनता के साथ त्रिवेंद्र रावत सरकार द्वारा किये गए छल को वैधानिकता प्रदान करने की कार्यवाही है. यह राज्य आंदोलन की भावना और दृष्टिकोण के साथ विश्वासघात है. राज्य आंदोलन के समय किसी ने, कभी भी गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की मांग नहीं की. मांग गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनाने की थी,जिसके पीछे तार्किक कारण थे.
दो राजधानियों की अवधारणा भारत में अंग्रेज ले कर आये थे. यदि आजादी के 72 वर्षों बाद भी उत्तराखंड सरकार को दो राजधानियों के औपनिवेशिक मॉडल की याद आ रही है तो स्पष्टतः त्रिवेंद्र रावत सरकार अंग्रेजी राज की गुलामी के औपनिवेशिक खुमार की गिरफ्त में है. 13 जिलों के छोटे से प्रदेश में दो राजधानियां औचित्यहीन और जनता के धन की बर्बादी है. हम मांग करते हैं कि ग्रीष्कालीन-शीतकालीन के तमाशे को खत्म कर उत्तराखंड राज्य आंदोलन के सपने और दृष्टिकोण का सम्मान करते हुए गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी घोषित किया जाए.