Friday , 22 November 2024
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देश का नामदेवा ‘कण्वाश्रम’…PM से CM तक की घोषणाओं के बाद भी उपेक्षित

वरिष्ठ पत्रकार विजय भट्ट

कोटद्वार। महर्षि कण्व ऋषि की तपस्थली और चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मस्थली कण्वाश्रम आखिर कब तक उपेक्षा का दंश झेलती रहेगी। कण्वाश्रम को कई बार राष्ट्रीय धरोहर बनाने की घोषणाएं हो चुकी हैं। लेकिन अभी तक जमीनी स्थर पर काम नहीं हो पाया है। कण्वाश्रम में ही शकुंतला और दुष्यंत के तेजस्वी पुत्र भरत ने जन्म लिया। वहीं भरत जिनके नाम से देश का नाम भारत पड़ा। लेकिन देश को नाम देने वाले भरत की जन्म स्थली आज उपेक्षित पड़ी है।

बताया जाता है कि प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू1955 में रूस यात्रा पर गए थे। उस दौरान उनके स्वागत में रूसी कलाकारों ने महाकवि कालिदास रचित ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ की नृत्य नाटिका प्रस्तुत की। एक रूसी व्यक्ति ने पं. नेहरू से कण्वाश्रम के बारे में जानना चाहा, लेकिन पंडित नेहरू को इस बारे में जानकारी न थी। वापस लौटते ही पं. नेहरू ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद को कण्वाश्रम की खोज का दायित्व सौंपा।

1956 में प्रधानमंत्री पं. नेहरू और उप्र के मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद के निर्देश पर तत्कालीन वन मंत्री जगमोहन सिंह नेगी कोटद्वार पहुंचे और कण्वाश्रम में राजा भरत का स्मारक बनाया, जो आज भी मौजूद है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर से और उत्तराखंड अलग राज्य बनने के बाद से आज तक भाजपा और कांग्रेस सरकारों की ओर से कई बड़ी घोषणाएं की गई। लेकिन कण्वाश्रम को आज तक कोई खास पहचान नहीं मिली। आज भी आने वाली पीड़ी को कण्वाश्रम के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है। बसंत पंचमी पर हर साल कण्वाश्रम में तीन दिन के मेले का आयोजन होता है। इस दौरान कई बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और अन्य मंत्री कार्यक्रम में जाकर कई घोषणाएं कर चुके हैं। वर्ष 2018 में पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कण्वाश्रम को राष्ट्रीय धरोहर बनाने की घोषणा की थी। कुछ समय पहले कोटद्वार का नाम कण्वनगरी करने की भी बात उत्तराखंड सरकार की ओर से की गई।

कण्वाश्रम में झील निर्माण का कार्य भी शुरू किया गया, लेकिन योजना में अभी भी रुकावटें आ रही हैं। कण्वाश्रम एक ऐतिहासिक स्थल है, जिसका प्राचीन और समृद्ध इतिहास रहा है। महर्षि कण्व के काल में कण्वाश्रम शिक्षा का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। आज भी वहां पर एक संस्कृत महाविद्यालय संचालित होता है। लेकिन जिसमें छात्र संख्या बहुत कम है। कण्वाश्रम के पास ही कुछ साल पहले बड़ी मात्रा में बेसकीमती मूर्तियां बारिश के दौरान लोगों को मिली थी। करीब पांच साल पहले मैं कण्वाश्रम में डियर पार्क की और गया था। जहां एक पेड़ के नीचे खुले में एक बड़ी पत्थर की नाकाशीदार मूर्ति रखी गई थी। वन विभाग से इस बारे में संरक्षण की जानकारी मांगी पर उन्होंने भी इस बारे में कोई खास जानकारी नहीं दी। मूर्ति की फोटो मेरे पास है, लेकिन मूर्ति बताई जा रही है कि हरिद्वार की कोई संस्था ले गई।

आज भी जमीन के अंदर कई मूर्तियां और एतिहासिक जानकारियों के बारे में प्रमाण मिल सकते हैं। कण्वाश्रम के विकास के लिए कई योजनाएं बनी , लेकिन कण्वाश्रम में पसरा अंधेरा राजनैतिक गलियारों तक ही सिमट कर रह गया। आजादी के बाद कण्वाश्रम की खोज तो हुई पर विकास के नाम पर केवल कोरी घोषणाएं। मालन नदी के तट पर बसे कण्वाश्रम जो प्राचीन काल में शिक्षा और समृद्धि का प्रतीक था आज अपनी पहचान का मोहताज बना हुआ है। कण्वाश्रम में पर्यटन और तीर्थाटन की असीम समभावानाएं है, लेकिन जरूरत है तो केवल पहल करने की।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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