बाबा रामदेव की कोरोनिल दवा पर कोहराम मचा हुआ है। बाबा की पहुंच के आगे कोई अपना राग नहीं अलाप पा रहा है। बाबा ने जो राग गा दिया…हर कोई उसी राग को अपने-अपने अंदाज से अलाप रहा है। जबसे बाबा की कोरोनिल दवा का दावा सामने आया है। हरिद्वार से देहरादून, दिल्ली और देशभर में हलचल मची है। बाबा ने जो करना था, बाबा ने कर दिखाया। बाबा ने बुखार और खांसी बनाने की दवा का लाइसेंस लिया और कोरोना दवा बना डाली…बकौल बाबा। कोई कुछ नहीं कर पाया। बयानों का क्या है…आते हैं और बदल जाते हैं। लेकिन, एक बात माननी पड़ेगी की बाबा के छेड़े राग ने कई लोगों के तार छेड़ दिये हैं। कइयों के राग बिगड़ गए हैं।
बाबा की ढपली और बाबा का राग…। बाबा के दावे के बाद आयुष मंत्रालय का बयान आया कि प्रचार पर रोक लगा दी गई है। बाबा से पूरी जानकारी मांगी गई। बाबा के आचार्य ने सारे दस्तावेज भेजे तो आयुष मंत्रालय के शुरू बदल गए। बाबा ने यहां का राग अपनी ढपली पर बजा दिया। ठीक उसी वक्त उत्तराखंड सरकार के शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक का भी बयान आया कि बाबा की दवा कोरोना से बचने में चमत्कार करेगी। उन्होंने बाबा की तारीफ में जमकर राग अलापे…यहां बाबा राग दरबारी खूब चला।
राज्य के सूबेदार…दो दिन पूरे चुप रहे। बोले भी तो बाबा के खिलाफ खुलकर नहीं बोल सके। कार्रवाई की बात तो दूर जांच का भरोसा तक नहीं दे सके। सीएम त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि बाबा को प्रोसीजर के तहत काम करना चाहिए था…। बड़ा सवाल यह है कि अपने इसी बयान में सीएम ने बाबा का बचाव भी कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर हमारे राज्य में ऐसी कोई दवा बनी है तो हमें इस पर खुश होना चाहिए। मतलब साफ है कि बाबा की ढपली है और बाबा के ही राग हैं। उसी ढपली पर झूम रहे हैं और बाबा के राग गा रहे हैं।
- प्रदीप रावत (रवांल्टा)