Friday , 22 November 2024
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उत्तराखंड : कैनवास की क्वीन हैं कुसुम पांडे, सोचने पर मजबूर कर देती है इनकी पेंटिंग

  • संजय चौहान

एक दिन पहले ही रंगों का त्योहार होली बीता है। संयोग से होली के दिन ही इंटरनेशनल महिला दिवस भी था। होली के रंग जिस तरह से अपना रंग जमाते हैं। ठीक उसी तरह पहाड़ की बेटी कुसुम पांडे की बेहतरीन सोच, शानदार रंगों की समझ और चित्रकारी कैनवास पर महिलाओं के संघर्ष और अपने लोक को जीवंत कर देती हैं। उन्होंने पेंटिंग्स के जरिए महिलाओं के जीवन संघर्ष और लोकसंस्कृति को नई पहचान दिलाई है। बेहद मिलनसार, मृदुभाषी व्यक्तित्व की धनी कुसुम पांडे की पेंटिंग्स शानदार हैं। उनकी पेंटिंग्स में आपको बहुत गहराई देखने को मिलेगी। और हर पेंटिंग में दिया उनका संदेश आपको इंदर तक छू देता है।

चित्रकला, मूर्तिकला और क्राफ्ट में भे महारथ 

उत्तराखंड के हल्द्वानी निवासी कुसुम पांडे आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। प्रतिभा की धनी कुसुम ने पेंटिंग की ही एक विधा दृश्यकला में अपना अलग मुकाम बनाया है। हल्द्वानी में उनकी पढ़ाई हुई। बाद में कुसुम छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ स्थित इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय पहुंच गई। वहां से उन्होंने 2015 में बीए फाइन आर्ट की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के कालेज आफ आर्ट से 2017 में मास्टर ऑफ फाइन आर्ट की डिग्री हासील की। इस दौरान कुसुम ने पेंटिंग की दृश्यकला विधा में महारथ हासिल की। कुसुम ने इसके अलावा चित्रकला, मूर्तिकला और विभिन्न प्रकार के क्राफ्ट बनाने में भी महारथ हासिल है और वो लगतार इस पर काम करती हैं।

लोकजीवन करता है आकर्षित 

बचपन से ही कुसुम को उत्तराखंड के गांव और यहां की औरतों के दैनिक जीवन के क्रियाकलाप, सुंदर वेशभूषा, आभूषण, लोकजीवन, लोककला व सांस्कृतिक जीवन, खेत-खलिहान, पहाड़, नदियां, जंगल, बादल बेहद आकर्षित करते हैं। यहीं से उसमें कला के प्रति आकर्षण बढा। देश का एक बड़ा चित्रकार बनने की तमन्ना मन मे लिए कुसुम नें पेंटिंग को कैरियर बनाने की ठानी और आज वह पेंटिंग में देश की जानी पहचानी चेहरा हैं।

बकौल कुसुम

बकौल कुसुम, दृश्यकला विधा में निपुण कलाकार अपनी रचनाशीलता को किसी सरफेस, जैसे जिंक, कापर प्लेट, स्टोन (लिथोग्राफी) पर ड्राइंग करके उन्हें उकेरता है। अपनी थीम को उकेरने के बाद वह विभिन्न रसायनिक अम्लों के प्रयोग व अन्य विधियों से ब्लाक बनाता है और फिर उनके प्रिंट पेपर कपड़े पर लिए जाते हैं।

उत्तराखंड वू-मैन विद नेचर पेंटिंग 

कुसुम 2018 में तब चर्चाओं में आई जब कुसम की उत्तराखंड वू-मैन विद नेचर शीर्षक वाली जिंक प्लेट पर उकेर कर बनाई गई पेंटिंग राष्ट्रीय ललित कला अकादमी को इस कदर भाई कि उसने दुनियाभर के चित्रकारों की पेंटिंग बिनाले-2018 के आयोजन के लिए इसे चुना। दुनियाभर के चित्रकारों की पेंटिंग्स की इस प्रतियोगिता में कुसुम की पेंटिंग को वाहवाही मिली और हर किसी नें इसे सराहा था। कुसुम नें अपनी इस पेंटिंग में एक पहाड़ की स्त्री के जीवन के सभी पहलुओं को बेहद खूबसूरती से उकेरा है।

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ये थी पेंटिंग की थीम 

इसमें किसी कलाकार को पहाड़ का ग्राम्य जीवन नजर आएगा तो वहां की स्त्री की पारंपरिक वेशभूषा और कुदरती सौंदर्य की झलकियां साथ-साथ देखने को मिलेंगी। इस पेंटिंग की एक सबसे अहम बात यह है कि इसमें पहाड़ की एक स्त्री मशरूम पर खड़ी है। जो इस बात को चरितार्थ करती है कि महिलाओं का जीवन संघर्ष बेहद कठिन है। कुसुम की ये पेंटिंग अमेरिका, जापान, जर्मनी, बांग्लादेश, दुबई, नार्वे समेत तमाम मुल्कों में सराही गई।

उत्तराखंड का पहला फाइन आर्ट स्टूडियो

कुसुम नें हल्द्वानी में रंग गीत आर्ट सेंटर नाम से उत्तराखंड का पहला फाइन आर्ट स्टूडियो शुरू किया है। कुसुम कहती हैं कि उत्तराखंड में फाइन आर्ट में कैरियर बनाने के लिए संसाधनों का आभाव और आगे बढने के अवसर/ प्लेटफार्म बेहद सीमित हैं। कुसुम ने ये सब बेहद करीब से देखा है इसलिए उन्होने अपने पति मनोज पांडे के साथ मिलकर स्टूडियो खोला। वह कहती हैं कि स्टूडियो के होने से कलाकारों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा।

कला उनका जुनून है

कला को कैरियर बनाने वाले प्रतिभाशाली युवाओं को उत्तराखंड में ही मौके मिलें इसी उद्देश्य से हमने रंग गीत आर्ट सेंटर खोला है। कुसुम कहती हैं की कला उनका जुनून है। वह अपनी लोक संस्कृति से बेहद प्यार करती हैं इसलिए वो अपनी कला में उत्तराखंड की संस्कृति को ही दिखाती हैं। उनका मकसद है कि वह राज्य के युवाओं को दृश्यकला के क्षेत्र में आगे बढ़ाने में सहायता करे इसलिए उनकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। कुसम कहती है कि आज जहां हूं उसके पीछे पति मनोज पांडे समेत तमाम गुरुओं का हर कदम पर साथ रहा और प्रोत्साहन मिला।

देश भर में होती है हुनर की सराहना 

हल्द्वानी की कुसुम पांडे की कूची कैनवास पर ऐसे चलती हैं कि हर पेंटिंग कुछ अलग ही एहसास कराने लगती हैं। कुसुम के हुनर की सराहना अब देश भर में होने लगी हैं। उन्हें विभिन्न अवसरो पर विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। कुसुम को अब तक 40 से अधिक पुरूस्कार मिल चुके हैं। जिनमें नंदा शक्ति सम्मान, ललित कला अकादमी पुरस्कार सहित अन्य सम्मान शामिल है। विगत दिनो देहरादून के राजभवन में आयोजित बसन्तोत्सव में भी कुसुम की पेंटिंग्स को हर किसी नें सराहा। इस दौरान उन्हें बसन्तोत्सव में सम्मानित किया गया।

कई राज्यों में लगा चुकी प्रदर्शनी 

कुसुम पांडे की पेंटिंग्स की हल्द्वानी से लेकर नैनीताल, अल्मोडा, देहरादून के अलावा मध्यम प्रदेश, चंडीगढ़, गुजरात, छत्तीसगढ़, बिहार आदि राज्यों में भी प्रदर्शनी लग चुकी हैं। जहां हर किसी नें कुसुम की कला की भूरी भूरी प्रशंसा की। वर्ष 2021 में ललित कला अकादमी के ओर रविंद्र भवन दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी, 2021 में ही गौरी स्टूडियो दिल्ली में महिलाओं पर आधारित राष्ट्रीय पेंटिंग प्रदर्शनी, 2020 में कालांतर फाउंडेशन नागपुर की ओर से आयोजित आनलाइन फाउंडेशन में कुसुम की पेंटिंग को स्थान मिल चुका है।

याद बनाकर रखने का बेहतरीन जरिया

गौरतलब है कि तस्वीरें जहां किसी चीज को याद बनाकर रखने का बेहतरीन जरिया होती हैं तो वहीं कल्पना व असलियत लिए तस्वीरें अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। कला के विभिन्‍न रूपों में चित्रकारी कला का सूक्ष्‍मतम प्रकार है, जो रेखाओं और रंगों के माध्‍यम से मानव चिंतन और भावनाओं को अभिव्‍यक्‍त करती है।

अलग ही एहसास कराने लगती हैं पेंटिंग 

इतिहास के हज़ारों वर्ष पूर्व जब मनुष्‍य केवल गुफ़ाओं में रहता था, तब भी वह अपनी सुरुचिपूर्ण संवेदनशीलता और सृजनात्‍मक आवेग की संतुष्टि के लिए अपनी गुफ़ा को चित्रित करता था। भारतीयों में कला और रूपरेखा इतनी गहरी अंतर्निहित है कि प्राचीन काल से ही उन्‍होंने चित्र और रेखाचित्र बनाए, उन कालों में भी, जिनका हमारे पास कोई स्‍पष्‍ट प्रमाण नहीं है। हल्द्वानी की होनहार बेटी कुसुम पांडे की कूची कैनवास पर ऐसे चलती हैं कि हर पेंटिंग कुछ अलग ही एहसास कराने लगती हैं। वास्तव मे देखा जाय तो कुसुम पांडे का रंग और पेंटिंग्स के जरिए अपनी लोकसंस्कृति और महिला संघर्षो को नयी पहचान देने की कयावद बेहद सराहनीय और अनुकरणीय है। उम्मीद की जानी चाहिए की आने वाले दिनों मे वे ऊचाईयो को छुंये और उत्तराखंड का भी नाम रोशन करें।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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