-
काका हाथरसी के जन्म दिन पर पढ़िए एक शानदार किस्सा मेरे साथ.
-
जब डाकुओं ने मंच से किया ‘काका’ का अपहरण और सुनी कविताएं, दिया इनाम.
‘काका’ हाथरसी … श्मशान घाट में चिंता जलने के साथ ठहाके लगने लगे तो आप असमंजस में पड़ जाएंगे कि आखिर यह माजरा क्या है। लेकिन यह घटना हकीकत में हास्य व्यंग्य के सम्राट…’काका’ हाथरसी के देहावसान पर हुआ था। यह संयोग ही था कि उनका जन्म 18 सितंबर (1906) को और देहावसान भी 18 सितंबर (1995) को हुआ। उनका मूल नाम प्रभुलाल गर्ग था। उनका जन्म हाथरस यूपी में हुआ। पिता के कम उम्र में निधन हो जाने के कारण वह बचपन में ही अपनी माता के साथ नैनिहाल में ही रहे। हाथरस शहर में वह किशोरावस्था (16) में लौटे।
BIG NEWS : आम लोगों के लिए नगर निगम फिर बंद, यहां होगा समस्याओं का समाधान
दोस्तों ने चिढ़ाने के लिए कहा, लेकिन वह बन गई पहचान
इन्हीं दिनों अग्रवाल समाज ने एक कार्यक्रम करवाया। इसमें एक नाटक ‘काका’ का मंचन हुआ। इसका किरदार प्रभुलाल गर्ग ने निभाया। इस किरदार में काका नाम होने के कारण उनके दोस्त उन्हें चिढ़ाने के लिए काका-काका कहने लगे। इसके बाद उन्होंने अपना नाम प्रभुलाल गर्ग उर्फ काका रख लिया।
हाथरसी उपनाम लगाने का सुझाव
जब वह मंच पर काव्य पाठ करने लगे तब उन्हें एक कवि मित्र ने हाथरसी उपनाम लगाने का सुझाव दिया। इसके बाद उन्होंने अपना नाम ‘काका हाथरसी’ रख लिया। इससे उन्होंने अपने जन्मस्थान हाथरस को भी पहचान दिलाई। यह बात काका हाथरसी के पौत्र अजय गर्ग ने 2016-17 के दौरान एक कार्यक्रम हुई मुलाकात के दौरान बताई। तब उन्होंने एक दिलचस्प किस्सा भी सुनाया।
IMA में कोरोना का कहर, 110 अधिकारी और कैडेट्स कोरोना पाॅजिटिव
चंबल में डाकुओं का बोलबाला चरम पर और काका साहब थे प्रसिद्धि के शिखर पर
बताया कि चंबल में डाकुओं का बोलबाला चरम पर था और काका साहब प्रसिद्धि के शिखर पर थे। एक कवि सम्मेलन के दौरान कुछ डाकुओं ने उनका अपहरण कर लिया। इसके बाद उन्हें एक अन्य कवि के साथ अपने अड्डे पर ले गए। वहां डाकुओं ने दोनों से हास्य कविता सुनाने को कहा। जब दोनों कवियों ने उन्हें एक से बढ़कर एक कविताएं सुनाई तो वह खुश हो गए।
डाकुओं ने कवियों को इनाम
इसके बाद डाकुओं ने लूटे हुए कुछ रुपये दोनों कवियों को इनाम स्वरूप दिए। गर्ग साहब ने एक और किस्सा सुनाया, बताया कि जब दादा जी बचपन में किसी वकील साहब के यहां अंग्रेजी पढ़ने जाते थे। उसी पर काका ने शानदार हास्य व्यंग्य लिख डाला। काका को पहाड़ों से खासा लगाव था। इस कारण उन्होंने उत्तराखंड की यात्रा पर शानदार कविता लिखी जो मसूरी यात्रा के नाम से प्रसिद्ध है। पढ़िए उनका अंश…
उत्तराखंड : IPL में स्टार स्पोर्ट्स का चेहरा होंगी देवभूमि की बेटी, जानें कौन हैं तानिया पुरोहित
मसूरी यात्रा / काका हाथरसी
देवी जी कहने लगीं, कर घूँघट की आड़
हमको दिखलाए नहीं, तुमने कभी पहाड़
तुमने कभी पहाड़, हाय तकदीर हमारी
इससे तो अच्छा, मैं नर होती, तुम नारी
कहँ ‘काका’ कविराय, जोश तब हमको आया
मानचित्र भारत का लाकर उन्हें दिखाया
देखो इसमें ध्यान से, हल हो गया सवाल
यह शिमला, यह मसूरी, यह है नैनीताल
यह है नैनीताल, कहो घर बैठे-बैठे-
दिखला दिए पहाड़, बहादुर हैं हम कैसे ?
कहँ ‘काका’ कवि, चाय पिओ औ’ बिस्कुट कुतरो
पहाड़ क्या हैं, उतरो, चढ़ो, चढ़ो, फिर उतरो
यह सुनकर वे हो गईं लड़ने को तैयार
मेरे बटुए में पड़े, तुमसे मर्द हज़ार
तुमसे मर्द हज़ार, मुझे समझा है बच्ची ?
बहका लोगे कविता गढ़कर झूठी-सच्ची ?
कहँ ‘काका’ भयभीत हुए हम उनसे ऐसे
अपराधी हो कोतवाल के सम्मुख जैसे
आगा-पीछा देखकर करके सोच-विचार
हमने उनके सामने डाल दिए हथियार
डाल दिए हथियार, आज्ञा सिर पर धारी
चले मसूरी, रात्रि देहरादून गुजारी
कहँ ‘काका’, कविराय, रात-भर पड़ी नहीं कल
चूस गए सब ख़ून देहरादूनी खटमल
सुबह मसूरी के लिए बस में हुए सवार
खाई-खंदक देखकर, चढ़ने लगा बुखार
चढ़ने लगा बुखार, ले रहीं वे उबकाई
नींबू-चूरन-चटनी कुछ भी काम न आई
कहँ ‘काका’, वे बोंली, दिल मेरा बेकल है
हमने कहा कि पति से लड़ने का यह फल है
उनका ‘मूड’ खराब था, चित्त हमारा खिन्न
नगरपालिका का तभी आया सीमा-चिह्न
आया सीमा-चिह्न, रुका मोटर का पहिया
लाओ टैक्स, प्रत्येक सवारी डेढ़ रुपैया
कहँ ‘काका’ कवि, हम दोनों हैं एक सवारी
आधे हम हैं, आधी अर्धांगिनी हमारी
(यह लेख काका साहब के पौत्र ने जो बताया, जैसा सुना वैसे लिखा गया है। अगर कोई त्रुटि हो तो उसे अवश्य बताएं जिससे कि सही जानकारी पहुँच सके।)
…विमल शर्मा (सीनियर जर्नलिस्ट)