हल्द्वानी हिंसा को लेकर लगातार सवाल उठ रहे थे। संवेदनशील इलाका होने के बावजूद भी यहां कार्रवाई करने में जल्दबाजी क्यों की गई? हल्द्वानी विधायक सुमित हृदयेश ने आरोप लगाए कि यह हिंसा अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा है। इसको लेकर एक बड़ा खुलासा हौआ है। अतिक्रमण पर एक्शन लेने से पहले ही LIU ने DM और SSP को एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें कुछ सुझाव दिए गए थे, लेकिन उनपर अमल नहीं किया गया। LIU ने प्रशासन को एक-दो नहीं, बल्कि पांच बार ऐसी घटना होने के इनपुट दिए थे। लेकिन, उसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात के खुलासा किया गया है। हालांकि, अब तक इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
LIU ने 31 जनवरी को दो बार, 2 फरवरी को भी 2 बार और 3 फरवरी को एक बार वबभूलपुरा क्षेत्र में हिंसा और बवाल की चेतावनी दी थी। LIU ने 31 जनवरी को जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के कार्यकर्ताओं द्वारा आयुक्त कुमायूं मण्डल से वार्ता के दृष्टिगत अलर्ट रहने और बनभूलपुरा मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण मस्जिद, मदरसा ध्वस्त किए जाने की स्थिति में भारी विरोध किए जाने की आशंका जाहिर की गई थी।
दो फरवरी को LIU ने अतिक्रमण के धवस्तीकरण की कार्रवाई को करने के लिए सुबह का समय सही बताया था। इसके साथ ही इस कार्रवाई से पहले इलाके का ड्रोन से सर्वे कराए जाने की बात कही थी। इसके साथ ही पूरे क्षेत्र में भारी पुलिसबल तैनात करने को कहा था। इसके साथ ही एलआईयू ने धार्मिक स्थल के अंदर पवित्र किताब है या नहीं इसका पता लगाने के लिए कहा था। अगर किताब है तो उसे सम्मान पूर्वक संबंधी मौलवी के सुपुर्द किए जाने को कहा था।
3 फरवरी को LIU ने फिर से चेतावनी दी थी कि अतिक्रमण के धवस्तीकरण की कार्रवाई का नोटिस दिए जाने के साथ ही धार्मिक स्थलों की प्रस्तावित ध्वस्तीकरण में विरोध होने की संभावना जताई थी। इसके साथ ही इस कार्य में किसी ना किसी तरह बाधा उत्पन्न किए जान की बात भी कही थी। इतना ही नहीं कार्रवाई वाले दिन भी LIU ने द्रोन से सर्वे करने का सुझाव भी दिया था। अगर ऐसे होता तो घरों में हो रही गतिविधि की जानकारी मिल सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया..। आखिर क्यों?
इसके साथ ही विरोध में अतिक्रमणरोधी की कार्यवाही के दौरान योजनाबद्ध रूप से मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को आन्दोलन में आगे रखे जाने पर बल प्रयोग की स्थिति में आन्दोलन के उग्र होने की चेतावनी दी गई थी। अब सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिर बार-बार चेताने के बाद भी प्रशासन और अधिकारियों ने इन इनपुट को अनदेखा क्यों किया?