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देवलांग आमर रवांई कु सबसे बड़ू त्यार।
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देवलांग कालि मनाऊं, पैली यां बाता क बार मा जणनु जरूड़ी।
…प्रदीप रावत (रवांल्टा)
देवलांग आमरी रवांई कु सबसे बड़ू त्यार। देवलांग कालि मनाऊं, पैली यां बाता क बार मा जणनु जरूड़ी। लोकारी अलग-अलग छुंई लाईं। कोई बोल, एथुली मनाऊं, कोई बोल तथुली मनाऊं। एक छुईं येंणी कि जु लोकारी र्लाइं। जियूं दिनु बगाया आइति बल, त्युं दिनु लोक डोखरु फुंडू रौं आपड़ी फसल बेड़नी। त्यार मनाण कु बगतै ना लगदु। येंणु बोलूं लोक कि येथुली लोकुनि बागाया एक मैन बाद मनाईं। आमारी जु देवलांग त्यां क बार मा पौराणिक बाता बि किछी…। ऐंसु मंगसिर क मैन 12-13 तारीक कि देवलांग।
ज्योर्तिलिंगु क बार मां त सबईं जाणदलई। शिव पुराण अर लिंग पुराण मां लेखियुं कि एक बार ब्रह्मा जी अर विष्णु भगवान कु कोई बाता फांडु झगड़ा बाजी बल। तेई झगड़ा की पंचायत लांणलि दुइया शंकर भगवान बिड़ नैइत। तेई वक्त एक ज्योर्तिलिंंग की उत्पत्ति होई ति। ब्रह्मा जी नि हंस कु रूप धरी अर गैंड़ियूं क तिरा उड़ेई। अर विष्णु भगवान पाताल क तिरा वराह क रूप मां। चलदु-चलदु ज त्युं ज्योतिर्लिंग का आदि अर अंत कु पता ना चली। पाछा दुइया कुसाई किनी भगवान शंकर बिड़ी पौंछी। मान्यता येंणि कि जु इ देवलांग जु सि तेई ज्योतिर्लिंग कु प्रतीक।
मड़केश्वर मंदिर मा चढ़ाए राखु
देवलांग तंणि त गैर बाज, पर देवलांगी की जु आखरी आहुति सि मड़केश्वर मंदिर मां दिए। मड़केश्वर मंदिर की बोता मान्यता। येंणु ला त पुराण बुडिया बाता कि मड़केश्वर मंदिर मां साक्षात शंकर भगवान रौं। गौल गां का गौड़ बामण करूं तेख पूजा। इबि मान्यता कि पैलि येखिनी ल्या त पैलू ओला जगाई…अर तेई किनी लागायेति देवालांगी फांडी आग। येंणि बि मान्यता कि मंदिर फुंडी अखंड देऊ जग, जेईक दर्शन भाग्यानु लोकु मिलूं।
माहसू देवता क नऊं कु ओल्ला
पैली देवलांगी क दिना अनुसूचित जाति क लोक बणात ओल्ला। सी देत लोकार दारकु एक-एक ओल्ला। अब सि परंपरा बिसरी मारी लोकुनि। ओल्ला महासू देवता क नऊं क बणूं। पैली जति भितर फुंड मनखी हत तत्या बणा त ओल्ला। अब लोक विधि लि बणाऊं एक ओल्ला। महासू या राजा रघुनाथ क नऊं किनी सबई ल्यात एक-एक ओल्ला। नाचदु-नाचदु पौंछत गैर त बणति देवलांग। पैली टाॅर्च आई, अब मोबाइल आई।
बलराज…
देवलांगी कु त्यार तीन दिनु क र। पैली दिना लौडी बगाव। दोसर दिना देवलांग अर तेसर दिना बलराज। बलराज क दिना जेख लोक बर्तातोड़ करूं, तेख अपड़ बल्दु की सेवा बि करूं। काले कि बल्दु घाट अन्न ना मिलदु। बल्द ना रल ज बंठ्या त डोखर कोखनि बाजल बस्त। बलराज क दिना लोक बलदु की सिंगा छो त पैली तेल किनी। बलदु क लाठ कि चोट बि ना लगात। अब येंणी बाजीं छुईं कि औ-बिलु बिड़ मिलूं बल्द। मांगी-मांगी लाऊं हऊ…।