चार भाई महासू देवता…
मूल चार भाई महासू देवता। उनको धरती का सबसे बड़ा देवता माना गया है। चार भाई महासू को महाशिव या देवों के देव महादेव की संज्ञा दी जाती है। इस भूमि पर सबसे बड़ा साम्राज्य भी मूल चार भाई महासू देवता का है। यही चार महाशक्तियां 33 करोड़ देवी-देवता, 3 लोक, 9 खंड, 9 लाख कालका, 5200 वीर और 9 लाख काल परियों के स्वामी और गुरु माने गए हैं।
मैंदरथ में उपान के बाद किरमिर दानव को मारने के बाद मूल चार भाई महासू और संपूर्ण महासू परिवार ने हनोल की ओर प्रस्थान किया। जहां विष्णू नाम के देव को हरा कर हनोल को अपनी संयुक्त राजधानी बना लिया।
मान्यता के अनुसार हनोल संयुक्त महासू परिवार का संयुक्त थान है, जहां चार भाई महासू, चार वीर/वजीर महासू और काली पौल मुख्य हैं। अग्रज महासू मूल बाशिक महासू देवता को केदार की संज्ञा दी जाती है। वहीं, मूल बोठा महासू देवता को भूमि के पितामाह की संज्ञा दी जाती है।
मूल पवासी महासू देवता को देवों के देव महादेव की संज्ञा दी जाती है। जबकि, मूल चालदा महासू देवता को मुलक मालिक की संज्ञा दी जाती है। मूल खंडासूरी शेड़कुड़िया महासू स्वयं में काश्मिरि कला और तंत्र-मंत्र के रुस्वामी माने जाते हैं। देवता साहिब गुडारु महाराज जगत के दाता हैं। वो परम परम दयालू हैं।
मूल बाशिक महासू, मूल बोठा महासू दोनों ही देव संपूर्ण शांठबिल क्षेत्र के सबसे बड़े देवता हैं। दोनों महाशिव देवों के ऐसे तो अनेक थान हैं, लेकिन मूल बाशिक महासू व्यक्तिगत, ज्येष्ठ और पहले मैंदरथ, मूल बोठा महासू हनोल में स्थाई तौर पर विराजमान हैं, यहीं इनको पूजा जाता है।
दूसरी ओर मूल पवासी महासू पांशबिल क्षेत्र के सबसे बड़े देवता हैं, जो 5 माह थान ठडियार, माह रात्रि तीर्थ देव वन, एक माह देवती और बाकी 6 माह बरवांश अपने 3 मुख्य थान (ज्येष्ठ थान बामसु, द्वितीय थान भुटाणू, कांछा थान चिंवा) में विराजमान होते हैं। समय-समय पर मूल अपने शेष थानों का प्रवास भी करते रहते हैं।
यह माना जाता है कि महासू देवताओं के अनुज भ्राता मूल चालदा महासू हर कहीं विराजमान हैं। मूल चालदा महासू 12 साल पांशबिल और 12 साल शांठबिल का भ्रमण करते हैं। महासू देवताओं को न्याय का देवता माना जाता है। उनकी मान्यता केवल उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देशभर के कई राज्यों से श्रद्धालु उनके दर्शन करने आते हैं।