देहरादून: कोरोना काल में उत्तरखंड में कई डाॅक्टर कोरोना पाॅजिटिव हो चुके हैं। सरकार लगातार दावा तो कर रही है कि कोरोना से निपटने के लिए पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं। अस्पताल बनाने की बात भी कही जा रही है। सवाल यह है कि सरकार अस्पताल की व्यवस्था तो कर देगी, लेकिन इनके लिए डाॅक्टर कहां से लाएगी। राज्य को आयुष प्रदेश को दर्जा प्राप्त है। बावजूद आयुर्वेदिकद डाॅक्टरों की भर्ती सालों से ठंडे बस्ते में हैं। कोरोना काल में यह प्रशिक्षित डाॅक्टर सरकार के कामा आ सकते थे। लेकिन, सरकार इस ओर आंखें मूंद कर बैठी है। आयुष मंत्री को भी सबकुछ पता है, लेकिन वो कुछ एक्शन लेने के बजाय बयानबाजी में ही व्यस्त हैं।
कोरोना महामारी ने उत्तराखंड सहित पूरे देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोल के रख दी है। राज्य में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा व्यवस्थाओं की हालत यह है कि यहां लोगों को साधारण सर्दी जुकाम से लेकर गंभीर बीमारियों तक के लिए झोलाछाप डॉक्टरों पर निर्भर रहना पड़ता है। सरकार के तमाम दावों और कोशिशों के बावजूद एलोपैथी डॉक्टरों को पहाड़ चढ़ाने में विफल रही है। दूसरी ओर आयुर्वेदिक डाॅक्टर पहाड़ में रहकर सेवा देने के लिए तैयार हैं, उनको भर्ती ही नहीं किया जा रहा है।
ऐसी स्थिति में जबकि तमाम वैज्ञानिक और एक्सपर्ट्स देश में कोरोना की तीसरी लहर की भविष्यवाणी कर चुके हैं। उच्च न्यायालय भी सरकार को डॉक्टरों और नर्सों की भर्ती करने के निर्देश दे चुका है। राज्य सरकार लगातार आयुर्वेदिक चिकित्सकों की अनदेखी कर रही है, जबकि इस महामारी के समय सरकार इन चिकित्सकों का उपयोग प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाने में कर सकती है।
कोरोना महामारी के दौरान केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने जहां आयुष क्वाथ, आयुष-64 जैसी आयुर्वेदिक दवाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। वहीं, तथाकथित आयुष प्रदेश में आयुर्वेदिक चिकित्सकों के 250 से अधिक पद रिक्त पड़े हैं, जिनको भरने के लिए राज्य सरकारों ने पिछले 10 वर्षों से कोई कार्यर्वा ही ही नहीं की। जबकि इसी अवधि में प्रदेश में 20 से अधिक नए सरकारी और निजी आयुर्वेदिक कॉलेज खोले गए हैं, जिनसे हर वर्ष 500 से अधिक आयुर्वेदिक चिकित्सक पास आउट हो रहे हैं।
कोरोना महामारी के समय निजी चिकित्सालयों और नर्सिंग होम में भी इमरजेंसी और आईसीयू जैसे विभागों में आयुर्वेदिक चिकित्सकों को नियुक्त किया जा रहा है। ऐसे में राज्य सरकार के लगातार आयुर्वेदिक चिकित्सकों की अनदेखी करना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। वर्तमान में प्रदेश में 3000 से अधिक आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं, जो पहाड़ों और ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे सकते हैं। सरकार इस वक्त इन डाॅक्टरों को सीधे साक्षात्कर के आधार पर भर्ती कर लोगों की जानें बचा सकती है।