- डॉ.विजय बहुगुणा
- युवा दिवस पर विशेष
- स्वामी विवेकानंद पपीहा भी औऱ कपोत भी
स्वामी विवेकानंद ‘पपीहा भी और कपोत भी’. रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की स्मृति में की थी. रामकृष्ण मिशन का जन्म बंगाल में हुआ था और भी कोलकाता के एक छोटे मंदिर के पुजारी थे. वे परंपरागत तरीके से सन्यास ध्यान और भक्ति के द्वारा मोक्ष प्राप्त करने में विश्वास रखते थे. उन्हें हिंदू दर्शन में श्रद्धा थी मगर वे बाकी धर्मों का भी सम्मान करते थे. वे सभी धर्मों की मौलिक एकता में विश्वास करते थे.
मनुष्य की सेवा को ही ईश्वर सेवा मानते थे
वह मनुष्य की सेवा को ईश्वर की सेवा मानते थे. स्वामी विवेकानंद (1862-1902) ने रामकृष्ण मिशन से अपना नाता अटूट रहा।1886 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई .इसके बाद उनके उपदेशों का प्रचार उनके शिष्य विवेकानंद ने किया. विवेकानंद (1862-1902) का पहला उनका नाम नरेंद्र दत्त था और वह कोलकाता विश्वविद्यालय के स्नातक थे. वे आध्यात्मिक जिज्ञासा से रामकिशन के संपर्क में आए और प्रभावित होकर उनके शिष्य बने गुरु की मृत्यु के बाद उन्होंने सन्यास धारण किया और धार्मिक ग्रंथों का विशद अध्ययन किया. 1893 में शिकागो गए जहां, उन्होंने पार्लियामेंट ऑफ रिलीजन में अपना सुप्रसिद्ध भाषण दिया. इस भाषण से उन्होंने पश्चिमी संसार के सामने पहली बार भारत की संस्कृति की महत्ता को प्रभावकारी तरीके से प्रस्तुत किया. वहां बड़ी संख्या में लोग उनकी ओर आकृष्ट हुए. उसके पश्चात उन्होंने अमेरिका और इंग्लैंड में भ्रमण होकर हिंदू धर्म का प्रचार किया.
सिद्धांतों का आधार वेदांत
स्वदेश लौटने पर उन्होंने 1807 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की रामकृष्ण मिशन के सिद्धांतों का आधार वेदांत दर्शन है। मिशन के अनुसार उन्होंने ईश्वर निराकार मानव बुद्धि से परे और सर्वव्यापी है ।आत्मा ईश्वर का अंश है सभी धर्म मौलिक रूप से एक हैं पर वे अपने विभिन्न रूपों में ईश्वर तक पहुंचने के अलग-अलग रास्ते मात्र हैं ईश्वर साकार और निराकार दोनों है और उसकी अनुभूति विभिन्न तरीकों के रूप में सभी की जा सकती है। मिशन मनुष्य विशेषकर गरीब अपंग कमजोर की सेवा को ईश्वर की सेवा मानता है क्योंकि मनुष्य की आत्मा में परमात्मा का अंश है और इसी वजह से मिशन समाज सेवा और परोपकार को काफी महत्व देता है। उपर्युक्त सिद्धांत ही मिशन के कार्यों का आधार रहा है जहां तक एक स्वामी विवेकानंद हिंदू धर्म और संस्कृति की उपलब्धियों को प्रकाश मिलाए।
संकीर्णता और अंधविश्वास का विरोध
वहीं, उन्होंने तात्कालिक भारतीय समाज में व्याप्त संकीर्णता एवं अंधविश्वास का सबसे स्पष्ट शब्दों में विरोध किया। उन्होंने हिंदुओं के कर्मकांड एवं जातीय भेदभाव की भावना की और स्वतंत्रता समानता एवं स्वतंत्र चिंतन का उपदेश दिया। धार्मिक सौहार्द के बारे में 1898 में हमारी अपनी मातृभूमि के लिए दो महान प्रणालियों हिंदू धर्म और इस्लाम का संगम ही एक मात्र आशा है। शीर्षक लेख में उन्होंने भारतीयों की इस बात के लिए भी आलोचना की कि वे बाकी संसार से संपर्क हो चुके और गति हीन और जड़ हो गए हैं ।विवेकानंद अपने गुरु की ही तरह महान मानवतावादी थे जो भारत के पिछड़ेपन पतन एवं उसकी गरीब गरीबी के से अत्यंत दुखी थे।
एकमात्र भगवान जिससे मैं विश्वास करता हूं
प्रबल मानवतावादी भावनाओं से अभिभूत होकर उन्होंने लिखा एकमात्र भगवान जिससे मैं विश्वास करता हूं। वह है सभी आत्माओं का युग और सबसे पहले भगवान सभी जातियों के कुष्ठ पीड़ित दरिद्र है इसी संदर्भ में शिक्षित भारतीयों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा जब तक करोड़ों लोग भूख और अज्ञान से पीड़ित हैं। तब तक मैं उस हर व्यक्ति को देशद्रोही समझूंगा जो उनके खर्च से शिक्षित बनकर उनके प्रति तनिक भी ध्यान नहीं देता यही कारण है कि उनके मिशन के कार्यों का मानवतावादी पक्ष काफी महत्वपूर्ण रहा है ।मिशन की सिखाएं शाखाएं आज भी इस देश के अंदर और बाहर समाज सेवा एवं परोपकार में निरंतर लगी हुई है ।मिशन विद्यालयों, अस्पतालों, अनाथालय और पुस्तकालयों का भी संकलन करता है।प्राकृतिक विपत्तियों के समय सहायता कार्य एक प्रशंसनीय विशेषता रही है।
बोझिल बौद्धिकता आड़े आई
इन सब अच्छाइयों के बावजूद मिशन कभी भी बहुत लोकप्रिय नहीं हो पा इसका प्रभाव मध्यमवर्गीय शिक्षित वर्ग तक ही सीमित रहा है। आम आदमी के लिए उसकी बोझिल बौद्धिकता शायद उनके प्रसार में आड़े आई है फिर भी उनके साथ अच्छे कार्यों के अलावा भारतीयों में आत्मविश्वास एम आत्मसम्मान पैदा कर उन्हें राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम की ओर प्रेरित करने के लिए रामकृष्ण मिशन और विवेकानंद का नाम अविस्मरणीय रहेगा।
हिंदू धर्म की श्रेष्ठता का दावा
राम कृष्ण अपने आप में पुनरुत्थान वादी नहीं थे । रामकृष्ण परमहंस ने तर्क दिया कि ईश्वर को पानी के ढंग तो अनेक हैं पर अच्छे खासे बेलोच विवाह जनों की दुनिया में व्यक्ति को अपनी ही मार्ग पर टिका रहना चाहिए रामकृष्ण के सार्वभौम वाद को जल्द ही हिंदू धर्म के सहार के रूप में पेश किया जाने लगा था और यही उनके शिष्य विवेकानंद के लिए दूसरे सभी धर्मों पर हिंदू धर्म की श्रेष्ठता का दावा करने का आधार था।
प्रभु की सेवा का सबसे अच्छा रास्ता
इस संवाद में एक मिशनरी उत्साह विवेकानंद नहीं भरा उन्होंने कुलीनवादी कहकर दूसरे सुधार आंदोलनों की निंदा की और समाज सेवा के आदर्श का आह्वान किया उन्होंने जोर देकर कहा कि गरीबों की सेवा प्रभु की सेवा का सबसे अच्छा रास्ता है इसीलिए उन्होंने 18 सो 97 में एक परोपकारी संगठन के रूप में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
(नोट: लेखक डॉ. विजय बहुगुणा, राजेंद्र सिंह रावत महाविद्यालय बड़कोट में इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)