देहरादून। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा उन मतदाताओं और प्रत्याशियों को मतदान और चुनाव लड़ने की अनुमति देने से संबंधित निर्देशों पर अस्थायी रोक लगा दी है, जिनके नाम नगर निकाय और ग्राम पंचायत दोनों की मतदाता सूची में दर्ज हैं। कोर्ट ने इसे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव और पंचायत राज अधिनियम के विरुद्ध माना है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने गढ़वाल निवासी शक्ति सिंह बर्त्वाल की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। याचिका में यह सवाल उठाया गया था कि राज्य में 12 जिलों में हो रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में कई प्रत्याशियों के नाम नगर निकाय और ग्राम पंचायत दोनों जगह की मतदाता सूचियों में दर्ज हैं, जो कि न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है।
याचिका में यह भी बताया गया कि अलग-अलग ज़िलों में रिटर्निंग अधिकारियों ने इस विषय में अलग-अलग निर्णय लिए हैं। कुछ प्रत्याशियों के नामांकन रद्द कर दिए गए, जबकि कुछ को नामांकन की अनुमति दी गई, जिससे चुनाव प्रक्रिया में असमानता उत्पन्न हो गई।
राज्य निर्वाचन आयोग ने इस संबंध में 6 जुलाई 2025 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जबकि इससे पहले 2019 में भी जिला निर्वाचन अधिकारियों को ऐसे मामलों में दिशा-निर्देश दिए गए थे। परंतु याचिकाकर्ता के अनुसार, निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट रूप से इस स्थिति को लेकर न ही कोई सख्त कदम उठाया और न ही पंचायत राज अधिनियम की धारा 9 की उप-धारा 6 और 7 का पालन सुनिश्चित किया।
रुद्रप्रयाग निवासी सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार शक्ति सिंह बर्थवाल द्वारा दायर याचिका पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बड़ा आदेश जारी किया है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिजय नेगी ने बताया कि यह याचिका पंचायत चुनाव प्रक्रिया में संभावित गड़बड़ियों को लेकर दाखिल की गई थी।
याचिका में सवाल उठाया गया कि राज्य निर्वाचन आयोग ने 6 जुलाई को एक स्पष्टीकरण नोटिस जारी किया, जिसमें सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों को यह छूट दी गई थी कि वे पंचायती राज अधिनियम की अन्य धाराओं के तहत आवेदनों की जांच करें। इस आदेश से यह आशंका बनी कि कोई व्यक्ति एक से अधिक जगह वोटर बन सकता है।
अधिवक्ता अभिजय ने तर्क दिया कि नियमानुसार एक व्यक्ति केवल एक ही स्थान का मतदाता हो सकता है, और वहीँ से चुनाव लड़ सकता है। हाईकोर्ट ने इस दलील को स्वीकारते हुए 6 जुलाई के आदेश पर रोक लगा दी है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चुनाव केवल चुनाव अधिनियम के तहत ही कराए जा सकते हैं और उसमें यह स्पष्ट है कि एक व्यक्ति दो स्थानों पर मतदाता नहीं बन सकता, और न ही दो जगहों से चुनाव लड़ सकता है।