Wednesday , 17 September 2025
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आज चार साल की मासूम रिया का आज है जन्मदिन, 12 सितंबर को गुलदार ने बनाया था निवाला

पौड़ी : आज, 17 सितंबर 2025, पूरा देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन उत्साह के साथ मना रहा है। चारों ओर बधाइयों और शुभकामनाओं का दौर चल रहा है। उत्तराखंड में भी सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस अवसर को धूमधाम से मना रही है। लेकिन, इस उत्सव की चकाचौंध के बीच एक ऐसी हकीकत सामने आती है, जो हमारे समाज और प्रशासन की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े करती है।

यह कहानी है पोखड़ा ब्लॉक के श्रीकोट गांव की चार साल की मासूम रिया की, जिसका जन्मदिन भी आज है, लेकिन उसके घर में खुशियों की जगह मातम पसरा हुआ है।
कांग्रेस प्रदेश सचिव कवींद्र ईष्टवाल ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जन्मदिन की बधाई दी है।

साथ उन्होंने इस मुद्दे को उठाते हुए एक गंभीर सवाल रखा है, जब पूरा देश प्रधानमंत्री के जन्मदिन में डूबा है, तब उस मासूम बच्ची के परिवार की सुध लेने वाला कोई क्यों नहीं है? रिया, जिसके घर में आज उत्सव की तैयारी होनी चाहिए थी, वहां सन्नाटा और दुख का माहौल है। एक गुलदार ने न केवल रिया की जान ली, बल्कि एक परिवार की खुशियों को भी छीन लिया। लेकिन, सवाल यह है कि क्या सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी सिर्फ मुआवजा देकर खत्म हो जाती है?

मुआवजा: समाधान या पल्ला झाड़ने का बहाना?
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में मानव-वन्यजीव संघर्ष कोई नई बात नहीं है। गुलदार, भालू और अन्य जंगली जानवरों के हमले आए दिन लोगों की जान लेते हैं। रिया जैसे मासूम बच्चे और उनके परिवार इस संघर्ष की त्रासदी का शिकार बनते हैं।

वन विभाग और सरकार की ओर से मुआवजा देना एक औपचारिक प्रक्रिया बन चुकी है। मुआवजा देकर प्रशासन अपना कर्तव्य पूरा मान लेता है, और सरकार इसे अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करती है। लेकिन, क्या मुआवजा किसी परिवार के खोए हुए सदस्य को वापस ला सकता है? क्या यह उस मां के दर्द को कम कर सकता है, जिसने अपनी बेटी को खो दिया? क्या यह उस परिवार की आर्थिक और भावनात्मक रिक्तता को भर सकता है, जिसका सहारा छिन गया?

सत्ताधारी दल की संवेदनहीनता
कवींद्र ईष्टवाल का यह बयान गंभीर सवाल उठाता है कि सत्ताधारी दल के नेता, जो प्रधानमंत्री के जन्मदिन को उत्सव के रूप में मना रहे हैं, क्या वे उस चार साल की मासूम रिया के परिवार की पीड़ा को समझने की कोशिश कर रहे हैं? श्री कोट गांव में रिया के परिजनों से मिलने या उनकी मदद करने के लिए कोई प्रतिनिधि क्यों नहीं पहुंचा? यह संवेदनहीनता न केवल प्रशासन की नाकामी को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि हमारी प्राथमिकताएं कितनी असंतुलित हैं। एक तरफ बड़े-बड़े आयोजन और उत्सव, दूसरी तरफ उन परिवारों की अनदेखी, जिनके घरों के चिराग बुझ चुके हैं।

मानव-वन्यजीव संघर्ष: एक गंभीर चुनौती
उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष एक गंभीर समस्या है, जिसका समाधान केवल मुआवजे तक सीमित नहीं हो सकता। जंगलों के कटने, पर्यावरण असंतुलन और मानव अतिक्रमण के कारण वन्यजीवों का मानव बस्तियों में प्रवेश बढ़ रहा है। इस समस्या का समाधान तलाशने के लिए सरकार को ठोस और दीर्घकालिक कदम उठाने होंगे। कुछ संभावित उपाय हो सकते हैं:

जंगल और बस्तियों के बीच बफर जोन: मानव बस्तियों और जंगलों के बीच सुरक्षित बफर जोन बनाए जाएं, ताकि वन्यजीवों का बस्तियों में प्रवेश कम हो।

जागरूकता और प्रशिक्षण: स्थानीय लोगों को वन्यजीवों से बचाव के लिए प्रशिक्षित किया जाए और जागरूकता अभियान चलाए जाएं।

तकनीकी समाधान: गुलदारों और अन्य जानवरों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए ड्रोन, सीसीटीवी और सेंसर जैसे उपकरणों का उपयोग किया जाए।
पुनर्वास और सुरक्षा: प्रभावित परिवारों को न केवल आर्थिक मदद, बल्कि भावनात्मक और सामाजिक समर्थन भी प्रदान किया जाए।

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