Tuesday , 8 July 2025
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देश की आज़ादी के लिए समर्पित एक अंतरराष्ट्रीय क्रांतिकारी: मोहम्मद बरकतउल्ला की 171वीं जयंती पर श्रद्धांजलि

  • प्रशांत सी. बाजपेयी

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष करने वाले महान क्रांतिकारी, देशभक्त मोहम्मद बरकतउल्ला की 171वीं जयंती पर पूरे देश में श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। वे उन गिने-चुने योद्धाओं में से थे जिन्होंने देश से बाहर रहते हुए भी अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिला दी।

7 जुलाई 1854 को मध्य प्रदेश के भोपाल में जन्मे बरकतउल्ला ने अमेरिका, यूरोप, जर्मनी, अफगानिस्तान, जापान और मलाया जैसे देशों में भारतीय समुदाय के बीच आज़ादी की अलख जगाई। वे जहां भी गए, वहां उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध विद्रोह की चिंगारी सुलगाई।

विदेशों में रहते हुए उन्होंने क्रांतिकारी भाषणों और लेखों के माध्यम से अंग्रेजों की नीतियों को बेनकाब किया। 1897 में इंग्लैंड में शिक्षा के दौरान उनकी मुलाकात श्यामजी कृष्ण वर्मा, लाला हरदयाल और राजा महेंद्र प्रताप जैसे क्रांतिकारियों से हुई। यहीं से उनकी क्रांतिकारी सोच को दिशा और गति मिली।

बरकतउल्ला ने अफगानिस्तान में ‘सिराज-उल-अख़बार’ के संपादक के रूप में कार्य किया और 1915 में काबुल में ‘भारत की अस्थायी सरकार’ की स्थापना की, जिसमें वह प्रथम प्रधानमंत्री बने। इस सरकार के अध्यक्ष राजा महेंद्र प्रताप सिंह थे।

1904 में वे जापान पहुंचे, जहां टोक्यो विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर के रूप में काम किया और वहां भी क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। उन्होंने जापानी सरकार से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में समर्थन देने की अपील की और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की आवाज़ को बुलंद किया।

मोहम्मद बरकतउल्ला गदर पार्टी के संस्थापक सदस्यों में भी शामिल रहे। 1913 में गठित इस पार्टी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र संघर्ष का मार्ग अपनाया और विदेशी धरती से ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनौती दी।

बरकतउल्ला का विश्वास था कि मार्क्सवाद और धार्मिक आत्मा एक ही उद्देश्य के लिए कार्य करते हैं, उत्पीड़ितों को गरिमा और न्यायपूर्ण जीवन देना। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं, जब हम स्वतंत्रता के साथ न्याय, समानता और बंधुत्व की बात करते हैं।

उनकी जयंती पर देश उन्हें कृतज्ञता के साथ नमन करता है। मोहम्मद बरकतउल्ला सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, एक विचारधारा थे, जो सीमाओं से परे, स्वतंत्रता के लिए एक वैश्विक चेतना बन गए।

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