Deepak Dobhal
केन्द्र ने निसंदेह आज एक अच्छा कदम उठाया! लॉकडाउन में फंसे प्रवासी कामगारों छात्रों, तीर्थ यात्रियों, पर्यटकों वगैरह की घर वापसी का रास्ता खोल दिया! लेकिन आनन फानन में आया ये ऑर्डर राहत की जगह कहीं चिंता न बढ़ा दे! मैं उम्मीद करता हूं ऐसा हरगिज न हो लेकिन जिस जल्दबाजी, बिना किसी संकेत और जिन शर्तों के साथ गृह मंत्रालय ने ये ऑर्डर जारी किया उसे देखते हुए कुछ सवालों के उत्तर तुरंत मिलने चाहिए! अव्वल तो ये कि फंसे छात्र और पर्यटक शायद मामले को सही सही समझ भी लें लेकिन अचानक आए इस ऑर्डर से मजदूरों में फैली बेचैनी का क्या? बहुत मुमकिन है कि मजदूरों की बस्तियों में ये ऑर्डर घर जाने के कन्फर्म टिकट की तरह पहुंचा हो! बस झोला उठाया और चल दिए! खासकर तब जब शहर-शहर घर ले जाने वाली ट्रेनें और बसें चलने की अफवाहें तैर रही हों! जबकि सच्चाई ये है कि ऑर्डर के हिसाब से राज्यों को सारी तैयारियां शून्य से शुरू करनी होंगी!
कुछ और बातें हैं जिनमें स्पष्टता की घोर कमी है! मसलन आर्डर में सिर्फ सड़क माध्यम और बस से आवागमन का जिक्र है! देश में 56 मिलियन यानी 5.6 करोड़ इंटर स्टेट यानी अंतरराज्यीय माइग्रेंट लेबर्स हैं! इनमें से 40 मिलियन यानी 4 करोड़ शहरी इलाकों में रहते हैं! कुल माइग्रेंट लेबर्स में से करीब 80 फीसदी ऐसी लेबर है जो फैक्ट्रियों और कंस्ट्रक्शन साइट्स पर डेली वेजेस पर काम करती है! यानी काम बंद तो रोटी बंद! इनमें भी अगर आधे लेबर भी घर वापसी की राह देख रहे होंगे तो तादाद का अंदाजा लगाइए! यहां मैं जिक्र सिर्फ माइग्रेंट लेबर का कर रहा हूं! गृह मंत्रालय के ऑर्डर में शामिल छात्र और पर्यटक अलग राह देख रहे होंगे!
क्या बसों के जरिए इतनी बड़ी आबादी की घर वापसी आसान होगी? बसों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के बाद सवारी क्षमता घटेगी सो अलग! दूसरा सवाल, सरकारी ऑर्डर में घर जाने के इच्छुक कामगारों के रजिस्ट्रेशन का आदेश दिया गया है! उसके बाद हेल्थ स्क्रीनिंग अलग! कामगारों की इतनी बड़ी फौज के साथ ये प्रक्रिया लंबी और जटिल होना स्वाभाविक है! क्या हम इसके लिए तैयार हैं? सवाल ये भी कि ऑर्डर के मुताबिक चलें, तो सिर्फ सिम्पटम्स चेक कर और थर्मल स्क्रीनिंग से तो वायरस पकड़ में आएगा नहीं, क्योंकि 80-85 मामले एसिम्प्टोमैटिक हैं! तो क्या एसिम्प्टोमैटिक कामगारों को मूव करने की अनुमति देना सही होगा? ये जानते हुए कि ऐसे लोग वायरस के सबसे बड़े कैरियर होते हैं! अगर नहीं तो क्या हर कामगार का कोविड टेस्ट होगा, ये भी साफ नहीं? सवाल ये भी कि घर वापसी के बाद इतनी बड़ी तादाद में कामगारों को क्वारंटीन करने की क्या व्यवस्था होगी?
इसके अलावा घर जाने के लिए रजिस्ट्रेशन कहां होगा, कैसे होगा, ये सब जानकारी कामगारों तक कैसे पहुंचेगी? ये सब तैयारी राज्यों को एक नोडल अधिकारी की देखरेख में करनी हैं! क्या ये सब इतनी जल्दी और आसानी से हो पाएगा? बेघर, भूखे, घर जाने को आतुर और अफवाहों से घिरे प्रवासी कामगार कैसे धैर्यवान होकर इतनी जटिल प्रक्रिया का पालन कर पाएंगे ये भी सोचना होगा! इन तमाम सवालों के बीच मेनस्ट्रीम से लेकर सोशल मीडिया पर जिस अंदाज़ में ये ऑर्डर तैर रहा है उससे बेचैन मजदूरों का भ्रमित होना स्वाभाविक है!
मेरा अंदाजा गलत न हुआ तो इस ऑर्डर से खुद सरकार और बीजेपी के प्रवक्ताओं को प्रवासी कामगारों के सवालों का जवाब देना मुश्किल हो रहा होगा! कायदे से, केन्द्र को इस ऑर्डर को जारी करने से पहले थोड़ा और होमर्वक करके, किसी सीनियर मंत्री और अधिकारियों के साथ प्रेस ब्रीफ करवानी चाहिए थी! ये कोई छोटा मोटा मामला नहीं था जो सवा पन्ने के ऑर्डर में आया गया हो जाए! आजकल सवाल वैसे ज्यादा पूछे जाते नहीं पर प्रेस ब्रीफ में कुछ कन्फ्यूजन तो दूर होते ही! खैर, इस उम्मीद में कि मेरी आशंकाएं गलत साबित हों, सरकार की ये कवायद सफल हो और चारों तरफ से मार खाया मजदूर सकुशल अपने घर पहुंचे, भाषण समाप्त करता हूं! जय हिन्द!!
अपील – घर वापसी की प्रक्रिया में प्रवासी मजदूर धैर्य बनाकर रखें, सरकार के निर्देशों का पालन करें और अफवाहों से हर हाल में बचें!