- रक्षाबंधन पर विशेष
देवभूमि उत्तराखंड। उत्तराखंड को ऐसे ही देवभूमि नहीं कहा जाता। जहां एक तरफ यमुनोत्री, गंगोत्री, श्री बद्रीनाथ जी और श्री केदारनाथ जी विराजमान हैं। वहीं, देवभूमि में कई अन्य से तीर्थ भी हैं, जिसके कारण यह माना जाता है कि यहां कण-कण में देवों का वास है। धर्मनगरी हरिद्वार और ऋषिकेश भी इसी देवभूमि पर हैं।
महासू देवता भी यहीं प्रकट हुए और सोमेश्वर महाराज भी यहीं विराजमान हैं। मां नंदा देवी और देवी राज राजेश्वरी, भगवती सुरकंडा देवी हो या फिर महामाई मनसा देवी्। वह भी देवभूमि में ही विराजमान हैं। देवभूमि के देवताओं की अद्भुत महिमा है। यहां कई ऐसे अनोखे मंदिर भी हैं, जिनके बारे में लोग बहुत कम जानते हैं। ऐसा ही एक मंदिर है चमोली जिले की दुर्गम घाटी में, जिसे बंशी नारायण के नाम से जाना जाता है। मंदिर की खास बात यह है कि यह साल में केवल एक बार ही खुलता है।
चमोली जिले की उर्गम घाटी में एक ऐसा मंदिर स्थित है, जहां बड़ी संख्या में महिलाएं और युवतियां पहुंचती हैं और भगवान विष्णु को राखी बांधती हैं। इसके बाद ही वे अपने भाईयों की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
उर्गम गांव से करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर प्राचीन बंशीनारायण मंदिर स्थित है। रक्षाबंधन पर्व पर यहां विशेष पूजाएं होती हैं। मंदिर में भगवान विष्णु की चतुर्भुज शिलामूर्ति स्थित है। रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के ग्रामीण भगवान विष्णु की पूजा अर्चना संपन्न करते हैं।
मान्यता है कि देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर दानवीर राजा बलि का घमंड चूर किया था। तब राजा बलि ने पाताल में जाकर विष्णु भगवान की कठोर तपस्या की थी। प्रसन्न होकर विष्णु ने बलि को वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उन्हें अपना द्वारपाल बनने का आग्रह किया था, जिसे भगवान ने स्वीकार कर लिया और वे राजा बलि के साथ पाताल लोक में चले गए।
जब माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को कहीं नहीं देखा तो उन्होंने महर्षि नारद के सुझाव पर श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन राजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर भगवान विष्णु को मुक्त करने का आग्रह किया। इसके बाद राजा बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ इसी स्थान (बंशी नारायण) पर मिलवाया। एक किवदंति यह भी है कि स्वर्ग की ओर जा रहे पांडवों ने इस स्थान पर बंशी नारायण भगवान का मंदिर का निर्माण करवाया था।