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पद्मश्री प्रीतम भरतवाण का ये आइडिया बनेगा रोजगार का जरिया, ढोल को मिलेगी नई पहचान

देहरादून: जागर सम्राट पद्मश्री प्रीतम भरतवाण देश और दुनिया में लोग जानते हैं। उन्होंने जो भी हासिल किया, अपने और उत्तराखंड के लोक के लिए, सबकुछ अपने दम पर किया। ढोल और जागर दोनों ही एक-दूसरे से जुड़े हैं। ढोल जितना आसान और सरल नजर आता है। उसकी तालों को जानना और समझना उतना ही कठिन है। प्रीतम भरतवाण ने ढोल सागर को अपनी विरासत से सीखा। अध्ययन किया, और फिर दुनिया को भी ढोल के बारे में बताया।

लोक के लिए समर्पित प्रीतम भरतवाण के प्रयासों से ही ढोल को देश के अलावा दुनिया के कई देशों में पहचान मिली है। लेकिन, अपने मूल यानी अपने ही राज्य में ढोल को उतना महत्व नहीं मिल पा रहा है। ढोल लोगों के सुख-दुख, सूचना, संस्कृति और देवकार्यों से जुड़ा है। राज्य का शायद ही कोई गांव ऐसा हो, जहां ढोल पर बजाया जाता हो। ढोल वादकों में अधिकांश वो लोग हैं, जिनको यह कला विरासत में मिली है। वो ताल बजाना तो सीखे, लेकिन वह तालें जिस ढोल सागर से निकली हैं, उसके बारे में उनको कुछ पता नहीं है।

जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण से हिमांतर पत्रिका के विमोचन कार्यक्रम के दौरान मुलाकात हुई। बातों ही बातों में उन्होंने कहा कि ढोल को स्कूलों में शामिल किया जाना चाहिए। लोगों को यह बात भले ही हल्की लगे, लेकिन इसके मायनों को समझा जाए, तो यह रोजगार का जरिया भी बनेगी और ढोल को बचाने में भी मददगार साबित होगी। उनका कहना है कि राज्य के लगभग सभी सकूलों में अंग्रेजी ड्रम बजाए जा रहे हैं। मार्च पास्ट और सुबह की प्रार्थना भी इन्हीं ड्रम के साथ होती है।

अगर इनकी जगह ढोल को बजाने की अनिवार्यता कर दी जाए, तो इससे ढोल को बढ़ावा मिलेगा। जहारों की संख्या में स्कूल होने से जहां प्रत्येक स्कूल में एक ढोल प्रशिक्षक की तैनाती होगी, वहीं, नई पीढ़ी को भी ढोल कला सीखने को मिलेगी। इससे ढोल कला और ढोल की महत्ता आसानी से बच्चे सीख सकेंगे और यह देव वाध्य को बचाने में एक बड़ा कदम साबित होगा।

यह सरकार और संस्कृति विभाग को तय करना है कि वह जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण के प्रस्ताव को किस तरह से लेती है। उस पर अमल भी करती है या नहीं। अगर सरकार ऐसा करती है, तो बहुत बड़ा कदम होगा। इससे रोजगार तो मिलेगा ही। वुलिप्त होते ढोल और ढोल कला को बचाने में मदद मिलेगी। जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण की मानें तो इस बारे में पहले भी सरकार को सुझाव दे चुके हैं। लेकिन, सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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