One Nation One Election देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ करवाने की राह अब आसान हो गई है। एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव को आज मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी की रिपोर्ट के बाद इस प्रस्ताव को कैबिनेट में मंजूरी मिल गई है।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर कोविंद समिति की रिपोर्ट स्वीकार कर लिया है। कोविंद समिति को एक साथ चुनाव कराने के लिए व्यापक समर्थन मिला है। मंत्रिमंडल ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव को मंजूरी दी है। उन्होंने यह भी कहा कि कोविंद समिति की सिफारिशों पर पूरे भारत में विभिन्न मंचों पर चर्चा की जाएगी।
उच्च स्तरीय समिति ने पहले चरण के तौर पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की है। इसके 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाने की बात कही गई है। समिति ने सिफारिशों के क्रियान्वयन पर विचार करने के लिए एक ‘कार्यान्वयन समूह’ के गठन का भी प्रस्ताव रखा है।
समिति के मुताबिक, एक साथ चुनाव कराने से संसाधनों की बचत होगी। विकास और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा मिलेगा। लोकतांत्रिक ढांचे की नींव मजबूत होगी। इससे ‘इंडिया, जो भारत है’ की आकांक्षाओं को साकार करने में मदद मिलेगी। समिति ने राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से चुनाव आयोग की ओर से एक समान मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करने की भी सिफारिश की थी।
फिलहाल भारत का चुनाव आयोग लोकसभा और विधानसभा चुनावों को ही देखता है। नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोगों की ओर से कराए जाते हैं। बताया गया कि समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की है, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं से समर्थन की जरूरत नहीं होगी। हालांकि, इनके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की जरूरत होगी, जिन्हें संसद से पारित कराना होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 75 साल के होने के बावजूद देश के प्रधानमंत्री बने रहेंगे। वे अपनी दिव्य दृष्टि से एक हजार साल आगे तक के भारत की परिकल्पना साकार करने में लगे हैं। एक देश एक कानून, एक देश एक बाजार जैसी परियोजनाओं के बाद अब वे एक देश एक चुनाव की परियोजना भी लागू कर रहे हैं।वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को बुधवार को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, शीतकालीन सत्र में बिल को पेश किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में वन नेशनल वन इलेक्शन का वादा किया था।
हालांकि, इसके बाद आगे का सफर आसान नही होने वाला है। इसके लिए संविधान संशोधन और राज्यों की मंजूरी भी जरूरी है, जिसके बाद ही इसे लागू किया जाएगा।माना जा रहा है कि अब केंद्र सरकार इसे शीतकालीन सत्र में संसद में लाएगी। हालांकि, ये संविधान संशोधन वाला बिल है और इसके लिए राज्यों की सहमति भी जरूरी है।
बताया जा रहा है कि मोदी सरकार इसी कार्यकाल में बिल आएगी। अगर ये बिल कानून बनता है तो हो सकता है कि 2029 में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभाओं के चुनाव भी करवा लिए जाएं। बिल लायेंगे तो पास भी हो जाएगा।नीतीश, नायडू साथ हैं तो कटा फटा विपक्ष क्या कर लेगा? भाजपा के एजेंडे को बुलडोजर की तरह लागू करने में मोदीजी को कोई दिक्कत कभी हुई है? इसीलिए तो वे संघी घराने के सर्वोत्तम उत्पाद हैं।
15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से दिए अपनी स्पीच में भी प्रधानमंत्री ने वन नेशन-वन इलेक्शन की वकालत की थी। उन्होंने कहा था कि बार-बार चुनाव देश की प्रगति में बाधा पैदा कर रहे हैं। यदि लोकसभा और राज्यसभा से एक देश एक चुनाव वाले बिल को मंजूरी मिल जाए तो फिर देश भर में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही कराए जा सकेंगे। वहीं एक इलेक्टोरल रोल और सिंगल आईडी कार्ड के लिए देश के आधे राज्यों की विधानसभाओं से भी प्रस्ताव पारित कराना होगा। इस मामले में जल्दी ही विधि आयोग की ओर से भी एक रिपोर्ट पेश की जा सकती है।
वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए बनाई गई पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। रिपोर्ट 18 हजार 626 पन्नों की है।
पैनल का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था। यह रिपोर्ट स्टेकहोल्डर्स-एक्सपर्ट्स से चर्चा के बाद 191 दिन की रिसर्च का नतीजा है। कमेटी ने सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक करने का सुझाव दिया है।
कमेटी की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं। इसके अलावा अगले 100 दिनों के अंदर ही पूरे देश में निकाय चुनाव हो सकते हैं।
पैनल की ओर से इन सिफारिशों को लागू करने के लिए भी एक अलग समूह के गठन का सुझाव दिया गया है। पैनल का कहना है कि इससे संसाधनों की बचत हो सकेगी। इसके अलावा जटिल प्रक्रिया को भी आसान किया जा सकेगा। पैनल का कहना है कि इस फॉर्मूले को लागू करने के लिए सबसे जरूरी चीज यह है कि कॉमन इलेक्टोरल रोल यानी मतदाता सूची तैयार की जाए।
इससे तात्कालिक फायदा यह होगा कि चाहे परिस्थितियां कुछ भी हों, राज्य सरकारों को चुनाव से पहले जनादेश लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। राज्यों के मसलों में प्रधानमंत्री का ध्यान नहीं भटकेगा और उन्हें बार बार चुनावी भाषण देना नहीं पड़ेगा। वे पूरी तरह ध्यानस्थ होकर देश के विकास में तन मन धन से लगे रहेंगे। इससे उनका तनाव भी घटेगा।हो सकता है कि हजार साल की परिकल्पनाओं और परियोजनाओं को लिए वे हजार साल तक जिएं और प्रधानमंत्री बने रहें। आम लोगों को नया प्रधानमंत्री चुनने के झंझट से भी मुक्ति मिल जाएगी।
पैनल के 5 सुझाव…
- सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी-2029 तक बढ़ाया जाए।
- हंग असेंबली (किसी को बहुमत नहीं), नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
- पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, उसके बाद दूसरे फेज में 100 दिनों के भीतर लोकल बॉडी के इलेक्शन कराए जा सकते हैं।
- चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड तैयार करेगा।
- कोविंद पैनल ने एकसाथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश की है।