“पिंजरे में बंद परिंदा आज फिर खुले आसमान की तरफ़ देख रहा है… उसकी आंखों में अब सपने हैं, पर उनमें साया है उन सत्रह सालों की कैद का, जो उसने बंधुआ मज़दूर बनकर बिताए।
उत्तराखंड के चमोली जिले के नारायणबगड़ विकासखंड के एक छोटे से गांव कौब से करीब 17 साल पहले गायब हुआ एक किशोर, राजेश पुत्र आशा लाल, अब 30 की उम्र में फिर अपनी मां की गोद में लौट आया है। पंजाब की एक गौशाला में उसे बंधुआ मजदूर बनाकर रखा गया था, जहां से उसे एक समाजसेवी संस्था ने पुलिस और प्रशासन की मदद से सकुशल छुड़ाया।
वर्ष 2008 में, जब राजेश महज 17 वर्ष का था, वह घर से किसी रोज़गार या काम की तलाश में निकला। फिर अचानक परिवार से उसका संपर्क टूट गया। साल दर साल गुजरते गए, लेकिन कोई खोज-खबर नहीं मिली। परिजन हर त्योहार पर उसकी राह देखते रहे, लेकिन उम्मीदें धुंधलाती चली गईं।
राजेश को पंजाब के एक गौशाला मालिक ने कैद कर रखा था, जहां उससे बिना मज़दूरी के सालों तक काम करवाया गया। युवक ने बताया कि उसे शारीरिक प्रताड़ना भी दी जाती थी और बाहर किसी से संपर्क की इजाजत नहीं थी।
हाल ही में एक मानवाधिकार संस्था को इस मामले की जानकारी मिली, जिन्होंने संबंधित पुलिस थाने के सहयोग से राजेश को उस गौशाला से मुक्त कराया। बाद में चमोली पुलिस और प्रशासन की निगरानी में युवक को परिजनों को सौंप दिया गया।
जब राजेश को स्थानीय थाने में उसकी मां और बहन ने देखा, तो सब्र का बांध टूट गया। मां का वर्षों से सूखा चेहरा आंसुओं से भीग गया। बहन, जिसे भाई की यादें केवल बचपन की तस्वीरों तक सीमित थीं, बेसुध सी होकर उसे गले लगा बैठी।
गांव में जैसे कोई मरा हुआ फिर ज़िंदा लौट आया हो, हर आंख नम थी और हर दिल भावुक। राजेश की आपबीती के आधार पर गौशाला मालिक के खिलाफ बंधुआ मज़दूरी, शोषण और शारीरिक हिंसा जैसे गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। प्रशासन द्वारा आगे की जांच की जा रही है।