Monday , 23 December 2024
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उत्तराखंड: खेतों की ऐसी अद्भुत विदाई आपने कभी नहीं देखी होगी…इतिहास बन जाएंगे ये खेत

गोपेश्वर: खेत हमें अन्न देते हैं। खेत चाहे अपने हों या ना हों, लेकिन हम खाते खेतों का ही हैं। धान, दाल और सब्जियां दवाओं से जल्द तैयार तो हो सकती हैं, लेकिन खेतों के बगैर नहीं। खेत हमारी परंपरा हैं, खेती हमारी संस्कृति और पूजा रही है। खेत और फसलें देवता से कम नहीं हैं। जिन खेतों में हम बरसों-बरस काम करके दो वक्त की रोटी का इंतजाम करते हैं, जहां रात-दिन मेहनत कर अपना गुजारा करते हैं। ना जाने कितनों का पेट भरते हैं। उन खेतों से अगर हमेशा के लिए विदा होना हो, तो दर्द समझा जा सकता है।

इनसे कैसे यूं ही विदा हो सकते हैं…
ऐसा ही कुछ नजारा गोपेश्वर के सौकोट गांव में देखने को मिला। लोगों की आंखें नम थी। खेतों में लोग फसलों को रोपते वक्त इस कदर भावुक थे, जैसे मां नंदा की विदाई हो रही हो। जैसे घर के आंगन से बेटी विदा ले रही हो। ऐसा अद्भुत नजारा कभी-कभार ही नजर आता है। लोगों के खेत उनके लिए केवल खेत नहीं थे। उनकी विरासात थे। उन खेतों का अन्न खाकर जिंदगी की सीढ़ियां चढ़े। इनमें उगा अन्न खाकर पले-बड़े, फिर इनसे कैसे यूं ही विदा हो सकते हैं…।

200 नाली जमीन को अधिग्रहीत
किसानों ने अपने खेत सरकार को सौंप दिए। ढोल-दमाऊं और गाजे-बाजे के साथ लोगों ने खेतों में आखिरी बार रोपाई की। जागर गाती महिलाएं पानी से भरे खेतों में धान रोप रही थीं। महिलाओं की आंखें भर आई थीं। गोपेश्वर से सौकोट गांव करीब 15 किलोमीटर दूर है। रेलवे स्टेशन के लिए गांव की करीब 200 नाली जमीन को अधिग्रहीत किया गया है।

गांव के करीब 150 परिवार हैं
गांव के करीब 150 परिवार हैं और इनका मुख्य व्यवसाय खेती-पशुपालन है। ग्रामीण बैलों के साथ ढोल-दमाऊं लेकर खेतों में पहुंचे। सुबह खेतों में पानी लगाने के बाद महिलाओं ने जीतू बग्ड़वाल के जागर गाए और साथ-साथ धान भी रोपती रहीं। उनकी आंखों में अपने खेतों से अलग होने का दर्द साफ झलक रहा था, वो भावुक नजर आ रही थीं। आंखों में आंसू थे। उन्होंने इस उम्मीद के साथ अपने खेत रेलवे को दे दिए, कि रेल की पटरी के साथ-साथ विकास और समृद्धि भी उनके गांव चली आएगी।

बस किस्से और कहानियां रह जाएंगी
इन्हीं उम्मीदों के साथ सीने पर पत्थर रखकर अपने खतों को रेलवे के हवाले कर दिया। अब वो इन खेतों में फिर कभी जीतू बग्ड़वाल के जागर नहीं गा सकेंगे…। रोपाई के गीतों के साथ-साथ खेतों में पानी के साथ हंसी-मजाक और अठखेलियों नहीं कर पाएंगी। जब इन खतों से होकर रेल की पटरी गुजरेगी…इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुके खतों की बस किस्से और कहानियां रह जाएंगी।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.
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