कोविड-19 (कोरोना वायरस) से पूरा देश और विश्व बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन लगातार कोरोना के बढ़ते मामले चिंताजनक और चुनौतीपूर्ण हैं। देश में कोरोना के संक्रमण को रोकने के लि प्रधानमंत्री पीएम नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को पहले जनता कर्फ्यू और उसके बाद 25 मार्च से अलग-अलग चरणों मे अभी तक लॉकडाउन चल रहा है। अब चूंकि देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे मजदूर, रोजगार हेतु अपने घरों, राज्यों से बाहर गए लोगों की घरवापसी चल रही है। देश के विभिन्न हिस्सों में सरकार ट्रेन, बस टैक्सी से लोगांे को उनके गंतव्य तक पहुंचा रही है। कई लोग स्वयं के संसाधनों से अपने घर पहुंच रहे हैं, तो कुछ लोग पैदल ही निकल पड़े हैं।
ग्राम प्रधानों को अकेले ही जूझते हुए देखा
उत्तराखंड के भी 2 लाख से अधिक लोगों ने घर आगमन की राह पकड़ी है। जिनमें से हजारों लोग विभिन्न राज्यों, महानगरों से सरकारी संसाधनों, स्वयं के संसाधनों से घर पहुंच चुके हैं, तो हजारों लोग आने को लेकर प्रतीक्षारत हैं। हर व्यक्ति घर आना चाहता है और स्वाभाविक भी है कि किसी भी संकट के समय हर व्यक्ति को अपने परिजन, अपनी मातृभूमि, अपना गांव, अपना शहर याद आता है। कोशिश रहती है कि वो इन सबके समीप ही रहे। उत्तराखंड आने वाले हमारे भाई-बहनों के गांव आगमन पर उनको क्वारन्टीन करने की जिम्मेदारी उत्तराखंड सरकार ने ग्राम प्रधानों को दी है। जिसके लिए बाकायदा एक निगरानी कमेटी भी हर गांव में बनाई गई है। उसमें शामिल कर्मचारी या अन्य लोग कितना अपना योगदान ईमानदारी से कर रहे हंै, वो अलग बात है। क्योंकि ज्यादातर ग्राम प्रधानों को अकेले ही जूझते हुए देखा जा रहा है।
दिक्कत मनमुटाव की नहीं है
अब चूंकि बाहरी राज्यों से आने वाले लोगों को सरकार के दिशानिर्देश के मुताबिक संस्थागत क्वारंटीन करना है, यानि बाहर से जो भी गांव आएंगे, उन्हें गांव में बने क्वारंटीन सेंटरों जैसे स्कूल भवन, पंचायत घरों या अन्य किसी सार्वजनिक स्थानों पर, क्योंकि शासन प्रशासन का आदेश है तो प्रधानगण सभी को क्वारंटीन कर रहे हैं। अब सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात आपके सामने रखता हूं। दिक्कत ये नहीं कि गांव में तमाम लोगों से मनमुटाव के बाद भी प्रधान कड़ाई से नियमों के तहत लोगों को संस्थागत क्वारंटीन कर रहे हैं। असल बात यहीं से शुरू हो रही है। अब जैसे किसी प्रधान ने किसी व्यक्ति को उसके गांव आगमन के हिसाब से संस्थागत क्वारंटीन किया है। सवाल ये है कि अगर कोई 13, 14, या 15 मई को घर अया है। नियमानुसार उन्हें 14 दिनों बाद घर भेजना है, लेकिन इस बीच कोई 20 को, कोई 22 का, कोई 23 को गांव आगमन करते हैं तो कहीं न कहीं उन्हें भी उन्हीं लोगों के साथ रखना होगा।
क्वारंटीन सेंटर की दिक्कतें
अब क्वारन्टीन सेंटरों में एक ही पानी का नल, एक या दो शौचालय उपलब्ध हैं। मजबूरन पहले या बाद में पहुंचे लोगों को उसी नल और शौचालय को प्रयोग करना है। अब ये कहीं न कहीं संक्रमण को फैलने में बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है। ऐसे में ये स्थिति और भयावह हो जाती है कि गांव आने वाले लोगों की टैªवल हिस्ट्री अलग-अलग है। मसलन दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान,मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों या विभिन्न महानगरों से आ रहे हैं। यदि गलती से किसी भी व्यक्ति में कोई लक्षण सामने आता है तो कहीं न कहीं अन्य लोग भी उसकी चपेट में आ सकते हैं। जो उन सभी लोगों के अलावा गांव और क्षेत्र सहित राज्य के लिए एक बड़ा खतरा हो सकता है। साथ ही महिलाओं और बच्चों की परेशानियों और उनकी सुरक्षा को देखते हुए संस्थागत क्वारंटीन उपयुक्त नहीं कहा जा सकता है। दो गज की दूरी या सोशल डिस्टेंस का पालन करवाने में भी कहीं न कहीं मुश्किल सामने आ रही है।
मेरा व्यक्तिगत सुझाव
इन तमाम बातों को देखने के बाद मेरा व्यक्तिगत सुझाव शासन-प्रशासन के उच्चाधिकारियों और मुख्यमंत्री सहित सरकार में शामिल नीति नियंताओं से है कि इस तरह से अलग-अलग दिनों पर अलग-अलग टैªवल हिस्ट्री वाले लोगों को एक साथ रखने के बजाय उनसे इस आशय का एक पत्र ग्राम प्रधान के माध्य्ाम से लिया जाए कि यदि उनके घर पर अलग नल, अलग शौचालय की व्यवस्था हो और वो क्वारंटीन के नियमों का घर पर पालन करेंगे तो उन्हें होम क्वारंटीन की अनुमति दी जाए। क्योंकि संस्थागत से अधिक सुरक्षित वो लोग होम क्वारंटीन में ही रह सकते हैं और किसी को दुर्भाग्यवश संक्रमण के लक्षण दिखाई देते हैं तो संस्थागत में शामिल अन्य लोगों में ये संक्रमण नहीं फैल सकेगा। क्योंकि अब हमारे तमाम पहाड़ी गांव में लोगांे के पास शौचालय या पानी उपलब्ध है।
भोजन और बिस्तर की व्यवस्था
बहुत कम गांवों में अब धारा-मगरांे (पानी के प्राकृतिक सार्वजनिक स्रोत) से लोग पानी भरते हैं। यदि किसी किसी गांव के लोग ऐसा करते भी हं,ै तो वो अपने परिजनों के लिए अस्थाई शौचालय और अलग पानी की टंकी या एक ड्रम पानी अलग रखकर उसके उपयोग के लिए रख सकते हैं। साथ ही विभिन्न गांवों में ये भी बात सामने आ रही है कि गांव आगमन करने वाले लोगों के घरों में एक या दो सदस्य या फिर बुजुर्ग माता-पिता मौजूद हैं। चूंकि सरकार ने बाहर से आने वाले लोगों के भोजन और बिस्तर की व्यवस्था को उनके मूल घरों से करने को कहा है।
संस्थागत क्वारंटीन में संभावित संक्रमण
ऐसे में घर मे मौजूद एक या दो सदस्यों विशेषकर बुजुर्गों को सुबह, शाम या रात को कई परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए और प्रवासियों द्वारा क्वारंटीन के नियमो के पालन का विश्वास दिलाने के बाद यदि संस्थागत के बजाय होम क्वारंटीन का आदेश जारी हो तो कहीं न कहीं तमाम लोगों को बड़ी राहत तो मिलेगी ही साथ ही संस्थागत क्वारंटीन में संभावित संक्रमण को रोकने से बचाया जा सकता है। वरना यदि गलती से भी किसी प्रवासी की ट्रेवल हिस्ट्री से उसको दुर्भाग्यवश संक्रमण हो गया तो संस्थागत क्वारंटीन में रहने वाले अन्य लोगों में भी संक्रमण हो सकता है। साथ ही प्रवासियों की संख्या बढ़ने पर सीमित संस्थागत क्वारंटीन केंद्रों पर भी कई अन्य तरह की समस्याओं से भी सामना करना पड़ेगा।
(…ये मेरे निजी विचार हैं। हो सकता है आप इससे असहमत भी हों, लेकिन ये विचार मेरे अनुभव के आधार पर हैं।)
चन्द्रशेखर पैन्यूली
प्रधान, लिखवार गॉव
प्रतापनगर, टिहरी गढ़वाल।