Thursday , 21 November 2024
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बेदर्द सिस्टम : सड़ा दिया बेटी का शव, रोता-बिलखता रहा गरीब परिवार, वो बर्फ की सिल्लियों की भी कीमत वसूलते रहे

सिस्टम पर सवाल उठाने वालों पर सरकार सवाल उठाती है। लेकिन, फेल और बेदर्द सिस्सटम पर ना तो सरकार नाराज होती है और ना मुकदमा दर्ज करती है। सीएम त्रिवेंद्र बयान तो देते हैं। कहते हैं सरकार पूरी तरह तैयार है। 24 घंटे में रिपोर्ट आ रही है। सुनने में ये बातें बहुत अच्छी लगती हैं। लेकिन, इनकी सच्चाई धरातल पर कुछ और ही है। सिस्टम काम कर नहीं पा रहा है या करना नहीं चाहता…कहना मुश्किल है। ताजाम मामला रुद्रपुर का है।

यहां जो हुआ, वो सिस्टम पर और सरकार पर कलंक से कम नहीं है। मानवता शर्मसार हो गई। एक मां, पिता और भाई ने अपनी बेटी और बहिन का शव सड़ते हुए अपनी आंखों से देखा। एक नहीं…पूरे तीन दिन तक शव मोर्चरी में पड़ा रहा…लेकिन सिस्टम को कोई फर्क नहीं पड़ा। शव केवल इसलिए सड़ा दिया गया कि सरकार के नियमों के अनुसार कोरोना टेस्ट किया जाना था…।

सवाल इस बात पर नहीं है कि कोरोना टेस्ट क्यों किया गया…? सवाल यह है कि जिस रिपोर्ट को 24 घंटे के भीतर आना था, वो रिपोर्ट तीन दिन बाद क्यों आई ? उसके लिए कौन जिम्मेदार है ? क्या उन लोगों के खिलाफ मुकदमा होगा ? क्या सरकार उन पर भी उतनी ही तेजी से कार्रवाई करेगी, जितनी तेजी से नैनीताल वाली घटना पर की थी ? ये घटना तब की है, जब सीएम त्रिवेंद्र हल़्द्वानी और रुद्रपुर दौरे के दौरान दावे कर रहे थे कि सरकार हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार है…। जांच रिपोर्ट 24 घंटे में आ रही है…। फिर 18 साल की गरीब परिवार की बेटी की रिपोर्ट को आने में तीन दिन क्यों लगे ? क्यों उसके शव को सड़ने दिया गया ?

सीने में उठे दर्द की वजह से दम तोड़ने वाली एक लड़की का शव तीन दिनों तक मोर्चरी में इसलिए सड़ता रहा कि उसकी कोरोना जांच की रिपोर्ट नहीं आई थी। कोरोना जांच की रिपोर्ट तीन दिन तक नहीं दी गई। परिवार वाले तीन दिनों तक अपनी इकलौती बेटी का शव बेबस होकर सड़ता हुआ देखते रहे। गदरपुर के संजयनगर महतोष की 18 साल की शीतल 22 मई की शाम अचानक सीने में दर्द हुआ। परिजन उसे अस्पताल ले गए…। वहां उसकी मौत हो गई। परिवार ने सरकार की बात मानी…। कोरोना जांच के लिए सैंपल लिया गया। उनसे कहा गया जांच कल तक आ जाएगी…। आज कल आज कल में तीन दिन बीत गए…। पूरा परिवार बेटी के शव को देख-देख कर रोता रहा, बिलखता रहा…।

वो रोज मोर्चरी पहुंचकर कर्मचारियों से जानकारी लेते रहे। उनको रिपोर्ट नहीं आने की बात कह कर लौटाया जाता रहा…। तीन दिन बीत गए। गर्मी से शव भी सड़ता रहा…। बेबस परिवार वाले बेटी का शव सड़ता देखते रहे और फफकते रहे। 25 मई की शाम को उसकी रिर्पोट आई…रिपोर्ट निगेटिव थी। उसके बाद शव परिवार वालों को दिया गया…। जिस बेटी को नौ माह मां ने अपने गर्भ में रखा, जन्म दिया…। 18 साल पालकर बड़ा किया…सिस्टम की बेदर्दी और लापरवाही ने उस बेटी का शव सड़ा दिया…। क्या सरकार सिस्टम की इस सड़ांध के लिए सजा देगी…मुकदमा दर्ज करेगी ? सोमवार शाम को युवती की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने पर उसका शव परिजनों के सुपुर्द किया गया। देर शाम को परिजनों ने उसका अंतिम संस्कार किया।

मृतका के पिता रूप सिंह मजदूरी करते हैं। 27 मई को अमर उजाला में छपी की रिपोर्ट बेहद चैंकानी वाली है। बेटी की मौत से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। रूप सिंह ने बताया कि मोर्चरी में सोमवार तक बर्फ की 14 सिल्लियां लगीं। बर्फ की एक सिल्ली की कीमत 180 रुपये थी। उसके पास रुपये नहीं थे…। किसी तरह लोगों से उधार लेकर बर्फ की सिल्लियां मंगवाई। ये बात हैरान करती है। एक पिता ने अपनी बेटी गवां दी और बेदर्द सिस्टम उनसे बर्फ की सिल्लियों के लिए पैसे मांगता रहा….। बड़ा सवाल ये भी है कि इतनी बड़ी मोर्चरी में आज तक डीप फ्रिज तक नहीं है क्यों ? इसके लिए कौन जिम्मेदार है…? क्या उन जिम्मेदारों को सजा मिलेगी…?

  • प्रदीप रावत (रवांल्टा)

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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