Wednesday , 4 December 2024
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बेटी होने पर फीस नहीं लेते डॉक्टर, अस्‍पताल में कटवाते हैं केक…

पुणे : डॉक्‍टर गणेश राख एक मिशन पर हैं। मिशन है बेटी बचाने का। पिछले कुछ सालों में उन्‍होंने अपने हाथों से हजारों बच्चियों की डिलीवरी कराई है। इसके लिए वह एक पैसा चार्ज नहीं करते। अलबत्‍ता, बेटी का जन्‍म होते ही उनके अस्‍पताल में जश्‍न का माहौल बन जाता है। केक कटता है और पूरे उत्‍साह के साथ इसे सेलिब्रेट किया जाता है। यह सबकुछ करने के पीछे बड़ी वजह है। डॉक्‍टर गणेश ने उन दिनों को देखा है जब लड़की पैदा होने पर परिवार वाले देखने तक नहीं आते थे।

दूसरी ओर बेटा पैदा होने पर हल्‍ला-गुल्‍ला मच जाता था। यह बात उन्‍हें बहुत ज्‍यादा चुभती थी। उन्‍होंने तभी फैसला लिया कि बेटी होने पर वह कोई पैसा नहीं लेंगे। सिर्फ इतना ही नहीं। जन्‍म के बाद जितने वक्‍त के लिए भी मां और बेटी देखरेख में रहती हैं, उसका पूरा खर्च भी अस्‍पताल ही उठाता है। डॉ गणेश की यह नेकी आज मिसाल बन चुकी है।

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डॉक्‍टर गणेश पुणे के हैं। हडपसर में उनका मैटरनिटी और मल्‍टीडिसिप्‍ल‍िनरी हॉस्पिटल है। यह अस्‍पताल ‘बेटी बचाओ’ का जीता-जागता उदाहरण बन चुका है। डॉ गणेश पिछले करीब एक दशक में 2,400 से ज्‍यादा बेटियों की फ्री डिलीवरी कर चुके हैं। बेटी के जन्‍म पर उन्‍होंने आज तक एक पैसा नहीं लिया है। इस पहल को उन्‍होंने ‘बेटी बचाओ जनांदोलन’ नाम दिया है।

उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ 2012 से अभियान चला रखा है। इस अभियान में उन्‍हें कई राज्यों के लोगों का भी सहयोग मिला है। बाद में इस पहल से कुछ अफ्रीकी देश भी जुड़ गए। इस पहल ने आसपास के इलाकों में कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अलख जगाई है। सबूत यह है कि इन इलाकों में कन्या भ्रूण हत्या के मामलों में गिरावट आई है।

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डॉ. गणेश के अस्‍पताल में बेटी के जन्‍म पर कोई पैसा नहीं लिया जाता है। पूरे हर्षोल्‍लास के साथ उसके आने का स्‍वागत होता है। बेटी के जन्‍म का जश्‍न केक काटकर मनाया जाता है। अस्पताल के अंदर गुब्बारों और फूलों से सजावट की जाती है। इन सबका सिर्फ एक मकसद होता है। पैरेंट्स को यह महसूस कराना कि बेटी का होना गर्व की बात है। यह दिन उनके लिए बेहद खास है। सरकार के एक सर्वे की मानें तो पिछले एक दशक में छह करोड़ से ज्‍यादा कन्‍या भ्रूण हत्‍याएं हुई हैं। मिशन के तहत लैंगिक अनुपात के बारे में भी जागरूक किया जा रहा है।

डॉ गणेश ने 2012 में बेटी बचाओ पहल की शुरुआत की थी। एक खास तरह के एहसास के बाद गणेश ने इसे शुरू किया था। तब उनके अस्‍पताल के शुरुआत दिन थे। उन्‍होंने महसूस किया कि लड़की पैदा होने पर परिवार वालों के चेहरे मुरझा जाते थे। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि कोई मां और बेटी को देखने ही नहीं आया। यह भी हुआ कि बेटी के जन्‍म पर लोगों ने फीस देने से मना कर दिया।

उनको ये बातें बहुत ज्‍यादा अखर गई थीं। उन्‍होंने फैसला किया कि अब वह बेटी होने पर कोई फीस लेंगे ही नहीं। सिर्फ यही नहीं, उनके जन्‍म को सेलिब्रेट भी करेंगे। बस, तभी से उन्‍होंने ऐसा करना शुरू कर दिया। कई बार परिजनों ने पैसे देने का दबाव भी बनाया। लेकिन, उन्‍होंने बेटी के जन्‍म पर कभी इसे स्‍वीकार नहीं किया। गणेश के खुद भी बेटी है। अब वह हर बेटी के जन्‍म को अपनी बेटी के जन्‍म के तौर पर ही देखते हैं। हॉस्पिटल में मां-बेटी के भर्ती रहने तक उनकी पूरी देखभाल की जाती है। बेड और दवाओं का चार्ज भी अस्‍पताल वहन करता है। डिलीवरी का पूरा पैसा माफ कर दिया जाता है।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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