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कंपनियों में स्थानीय लोगों को रोजगार में मिले प्राथमिकता।
राज्यों में स्थापित होने वाली कंपनियों में स्थानीय लोगों को रोजगार में प्राथमिकता का मुद्दा हमेशा से ही उछाला जाता रहा है। लेकिन, इस दिशा में राज्यों की ओर से कभी ठोस पहल नहीं की गई। उत्तराखंड में भी इसकी मांग लंबे समय से है। 70 प्रतिशत रोजगार स्थानी लोगों को देने के दावे भी किए जाते हैं, लेकिन धरातल पर स्थिति कुछ और है। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने अब प्राइवेट नौकरियों में कन्नड़ अस्मिता का दांव खेला है।
साइनबोर्ड का 60 प्रतिशत कन्नड़ में रखने का कानून
सरकार पहले ही वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को अपने साइनबोर्ड का 60 प्रतिशत कन्नड़ में रखने का कानून लागू कर चुकी है। कर्नाटक सरकार ने कंपनियों और उद्योगों में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने वाले राज्य रोजगार विधेयक, 2024 के मसौदे को मंजूरी दे दी है। विधानसभा में इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठान में स्थानीय लोगों को आरक्षण देना अनिवार्य हो जाएगा।
प्रस्तावित विधेयक में यह भी प्रावधान
प्रस्तावित विधेयक में मैनेजर या प्रबंधन वाले जॉब में 50 फीसदी और गैर मैनेजमेंट वाली नौकरियों में 75 फीसदी पद कन्नड़ के लिए रिजर्व हो जाएगा। ग्रुप सी और ग्रुप डी की नौकरियों में 100 फीसदी लोकल लोगों को नौकरी मिलेगी। विधेयक के मसौदे में यह भी प्रावधान किया गया है कि राज्य के प्रतिष्ठानों में नौकरी करने वालों को कन्नड़ प्रोफिएंसी टेस्ट पास करना अनिवार्य होगा। अगर किसी संस्थान का मैनेजमेंट कानून के प्रावधानों का उल्लंघन किया तो उन्हें 10 हजार से 25 हजार रुपये तक जुर्माना देना पड़ सकता है।
कंपनियों में कन्नड़ लोगों को आरक्षण मिलेगा
कर्नाटक के उद्योग और प्रतिष्ठानों में स्थानीय कन्नड़ लोगों को आरक्षण मिलेगा। कर्नाटक के श्रम मंत्री संतोष लाड के अनुसार, राज्य रोजगार विधेयक को मंत्रिमंडल से मंजूरी मिल चुकी है, इसे विधानसभा के मौजूदा सत्र में पेश किया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्राइवेट कंपनियां अपने प्रतिष्ठान के लिए सरकार से सब्सिडी और अन्य लाभ लेती है, इसलिए उन्हें भी नौकरी में स्थानीय लोगों की भागीदारी तय करनी होगी।
थानीय कन्नड़ लोगों को आरक्षण मिलेगा
उन्होंने कहा कि राज्य रोजगार विधेयक लागू होने के बाद स्थानीय कन्नड़ लोगों को नौकरी में अधिक अवसर मिलेंगे। उन्होंने बताया कि कानून लागू होने के बाद कंपनियां योग्य कैंडिडेट नहीं मिलने का बहाना नहीं बना सकेगी। अगर किसी कारण योग्य स्थानीय लोग नहीं मिलते हैं तो कंपनी को तीन साल के भीतर लोकल को ट्रेनिंग देना होगा। इस विधेयक में उद्योगों या प्रतिष्ठानों को कुछ शर्तों के तहत छूट भी दी गई है। उन्हें मैनेजमेंट वालों पर 25 फीसदी और गैर मैनेजमेंट वाले पदों पर 50 फीसदी रिजर्वेशन देना होगा। मंत्री ने कहा कि अब प्रतिष्ठानों के लिए सरकार की एजेंसियों का सहयोग करना आवश्यक है।
जिनका जन्म कर्नाटक में हुआ हो
विधेयक के अनुसार, स्थानीय उम्मीदवार वही माने जाएंगे, जिनका जन्म कर्नाटक में हुआ हो, 15 वर्षों से राज्य में निवास कर रहा हो, कन्नड़ भाषा में पारंगत हो और नोडल एजेंसी की आवश्यक परीक्षा पास करता हो। बताया जाता है कि सरकार के इस प्रस्ताव का कंपनियों ने विरोध किया है। गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कर्नाटक में 20 फीसदी गैर कन्नड़ आबादी काम करती है।
कन्नड़ कर्मचारियों की तादाद 35 फीसदी
बेंगलुरु की कंपनियों में गैर कन्नड़ कर्मचारियों की तादाद 35 फीसदी आंकी गई है। इनमें से अधिकतर उत्तर भारत, आंध्र और महाराष्ट्र से हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, बेंगलुरु शहर की कुल आबादी का 50 फीसदी गैर कन्नड़ है। पिछले दिनों बेंगलुरु में कन्नड़ भाषा की अनिवार्यता पर लंबी बहस भी छिड़ी थी, जिसके बाद हिंदी में नाम लिखे गए साइन बोर्ड तोड़े गए थे।