TV एंकर हूं…इसलिए जान बच गई शायद. जी हां ये सच है. कल दिनांक 19 जून 2021, रात्रि करीब 1 बजे, नोएडा एक्सटेंशन के राइज़ पुलिस चौकी के पास से मैं गुज़र रहा था. मेरी सफारी स्टॉर्म कार का म्यूज़िक गड़बड़ कर रहा था, तो मैंने कार रोकी और गानों वाली पेन ड्राइव को लगाने लगा. पुलिस चौकी से तकरीबन 250-300 मीटर की दूरी पर मैं रहा होऊंगा.
अचानक से 2 मोटर साइकिलों पर सवार 5 लड़के वहां आ धमके. एक बाइक मेरी कार के आगे और दूसरी ड्राइविंग डोर की साइड में लगा दी. सारे लड़के मास्क लगाए हुए थे. एक काफी लंबा लड़का, लंबाई लगभग 6’4″ फीट के ऊपर ही रही होगी, सबसे पहले बाइक से उतरा और मेरी तरफ का दरवाज़ा ज़ोर से खींचा.
था इसलिए खुला नहीं. तो उसने खिड़की के शीशे पर ज़ोर से ठोंका और नीचे करने का हुकुम दिया. मैनें नीचे करने में आना-कानी की तो उसने पिस्तौल निकाल ली. (Journalist) मेरे पास उसका आदेश मानने के सिवाय और कोई चारा नहीं था. मैनें दरवाज़ा खोल दिया. उसने गन-प्वाइंट पर मुझे नीचे उतार दिया और खुद कार की ड्राइविंग सीट पर जा बैठा. बाकी के लड़कों ने मुझे कवर कर लिया.
एक लड़का लगातार दे रहा था. दूसरा लड़का बार-बार बोल रहा था कि अबे गोली मार दे साले को. मैनें रिरियाते हुए कहा कि भाईसाहब मेरे एक छोटा सा बेटा है. मुझे गोली मार के आपको क्या मिलेगा? आप कार ले जाइए. जो थोड़ा बहुत पैसा है वो भी ले लीजिए. मैं पैदल ही चला जाउंगा यहां से. किसी से कुछ कहूंगा भी नहीं.
‘ के स्टीकर पर पड़ी. उसने लोकल बोली में पूछा कि ईब तू मीडिया वाणा है कै? मैनें कहा कि जी हां भाई. अगला सवाल आया कि कै करे है तू मीडिया चैणल में? मैनें कहा कि जी भाईसाहब टीवी पर न्यूज़ पढ़ता हूं. पीछे वाला लड़का हंसते हुए बोला कि चल पढ़ के दिखा… इस पर सब लोग हंसने लगे. तब लंबा लड़का, जो संभवत: उन सबका बॉस रहा होगा, गुस्से में गाली देकर बोला कि तुम मीडिया वालों ने देश का बंटाधार कर रख्या है.
फिर मुझसे पूछा कि कै नाम है तेरा? मैनें कहा कि जी, अतुल अग्रवाल. पीछे खड़ा लड़का बोला कि अबे ई साला बाणिया है. फिर वो लोग हंसने लगे. मैनें फिर मिमियाते हुए कहा कि भाईसाहब जाने दीजिए. प्लीज़. आपके हाथ जोड़ता हूं. तभी उनमें से एक लड़का जो मोटर साइकिल को चला रहा था वो बोला… कि तेरा नाम तो सुना-सुना सा लग रहा है रे?
मैनें कहा कि भाई जी हो सकता है कि आपने कभी मुझे टीवी या मोबाइल पर देखा हो. फिर वो लड़का कार में बैठे लड़के से लोकल बोली में बोला कि भाई ई (गाली) टीवी पर घणां चिन्घाड़े है? बाबा रामदेव को लाला बणां दिया साणे नै. इसके बाद कार में बैठे लड़के ने मुझे पिस्तौल दिखाते हुए कहा कि चल चेन, अंगूठी, घड़ी और रूपए निकाल. मोबाइल दे अपना. मैनें अपने सारे पैसे (जो मैने गिने नहीं मगर करीब 5-6 हज़ार रूपए होंगे) उसे दे दिए.
इसीलिए चेन और अंगूठी तो मैं नहीं पहनता हूं. वो बोला ATM चल, कार्ड से पैसा निकाल. मैने निवेदनपूर्वक कहा कि सॉरी, कार्ड नहीं है मेरे पास. कहिए तो PAY TM कर देता हूं. ऐसा बोलते ही, पीछे वाला लड़का गाली देते हुए मेरा गला दबाने लगा. तब कार में बैठे लंबे लड़के ने उसे डांटते हुए रोका. फिर उसने मेरा मोबाइल मांगा. मैनें दे दिया. उसने मेरी फिंगर से उसे अनलॉक किया और कुछ सेकेन्ड्स पता नहीं क्या देखता रहा. फिर गाली देते हुए पूछा कि तुझे जाने दूं कि गोली मार दूं? बता तू ही बता? मेरी हालत पस्त हो चुकी थी.
पैर कांप रहे थे. मैनें फिर से हाथ जोड़ कर जान बख्शने की विनती की. अपने छोटे से बेटे की दुहाई दी. तब वो कार से नीचे उतरा और मेरी कॉलर पकड़ कर, गुर्राते हुए बोला कि अगर ज्यादा होशियारी दिखाई तो सबकी जान जाएगी. हमने कहा कि भाई जी हमारे पास जो कुछ भी है वो ले लीजिए और हमें जाने दीजिए. हम किसी से कुछ नहीं कहेंगे.
अंदाज़ा हो गया था कि ये लोग मुझे जान से नहीं मारेंगे लेकिन कार और सारा सामान ले लेंगे. इसके बाद उसने मेरा मोबाइल दूसरे लड़के को रखने के लिए दे दिया. तब मैं बड़ी हिम्मत बटोर कर उसके आगे गिड़गिड़ाया, अपना कार्ड दिखाया कि भाईजी मैं PIB जर्नलिस्ट हूं. (Atul Agarwal Tv News Channel Hindi Khabar) भारत सरकार के द्वारा मान्यता प्राप्त हूं. मेरे मोबाइल का IMEI नंबर, मेरे सभी डीटेल्स और मेरे फिंगर प्रिंट्स आदि सब कुछ भारत सरकार के गृह मंत्रालय में रजिस्टर्ड होते हैं.
आप ये फोन लेकर जहां कहीं भी इस्तेमाल करेंगे तो सर्विलांस में आ जाएंगे. इसके बाद पता नहीं उसके मन में क्या आया कि उसने मेरा फोन कार की सीट पर फेंक दिया और भद्दी सी गाली देते हुए गुर्राते हुए कहा कि चल ठीक है. इसके बाद लड़कों ने दोनों हम जा रहे हैं. इसके तुरन्त बाद भाग जाना यहां से. अगर किसी को बताया या पीछा किया तो जान से जाओगे. मोटर साइकिलें कीं और सभी लोग वहां से तेज़ रफ्तार से चले गए. मैंने मन ही मन राहत की सांस ली. हाथ जोड़ कर ईश्वर को धन्यवाद दिया. मेरी आंखों के सामने सिर्फ मेरे बेटे ओम का चेहरा कौंध रहा था और आंसू बरबस बरस रहे थे.
ये पोस्ट एक पत्रकार के तौर पर नहीं, एक इंसान, एक आम रहवासी के तौर पर लिख रहा हूं. अपने पूर्वजों और शुभचिन्तकों का भी तहे-दिल से शुक्रिया जिनके आशीर्वाद से एक बड़ी विपत्ति टल गई. अन्यथा कुछ भी अप्रिय हो सकता था. पीठ पीछे उन बिगड़ैल लड़कों का भी धन्यवाद करूंगा जिन्होने मेरी जान बख्श दी. ईश्वर उन्हे सदबुद्धि दे और सही रास्ते पर लाए, ये प्रार्थना भी करता हूं.