देहरादून : प्रदेश में अब सरकारी अस्पतालों से बिना पुख्ता कारण मरीजों को मेडिकल कॉलेज या बड़े अस्पतालों में रेफर करना आसान नहीं होगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग ने रेफरल सिस्टम को लेकर कड़े मानक तय किए हैं। इसके तहत मरीज को प्राथमिक इलाज और विशेषज्ञ सलाह जिला स्तर पर ही उपलब्ध कराई जाएगी।
स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने सोमवार को इस संबंध में स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) जारी करते हुए साफ कर दिया कि अब रेफरल केवल चिकित्सकीय आवश्यकता पर आधारित होगा। अनावश्यक रेफरल की स्थिति में संबंधित अधिकारी की जवाबदेही तय की जाएगी।
रेफरल के लिए तय किए गए मानक
विशेषज्ञ की गैरमौजूदगी में ही रेफरल किया जा सकेगा।मरीज की हालत के आधार पर ऑन-ड्यूटी वरिष्ठ डॉक्टर ही लेंगे अंतिम फैसला। रेफरल का निर्णय अब फोन या ईमेल से नहीं लिया जा सकेगा। आपात स्थिति में कॉल या व्हाट्सऐप से लिए गए फैसले बाद में दस्तावेज में दर्ज करना होगा। हर रेफरल के कारणों का लिखित उल्लेख जरूरी होगा – जैसे संसाधन या विशेषज्ञ की कमी।
गैरजरूरी रेफरल पर CMO या CMS की जवाबदेही तय होगी। एम्बुलेंस और शव वाहनों की व्यवस्था भी मजबूत होगी, रेफरल व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के साथ-साथ एम्बुलेंस प्रबंधन को भी दुरुस्त किया जा रहा है।
राज्य में 272 “108 एम्बुलेंस”, 244 विभागीय एम्बुलेंस और केवल 10 शव वाहन हैं। कई जिलों – जैसे अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, पौड़ी और नैनीताल में शव वाहन उपलब्ध नहीं हैं।
स्वास्थ्य विभाग ने निर्देश दिए हैं कि इन जिलों के मुख्य चिकित्साधिकारियों को तत्काल वैकल्पिक शव वाहन की व्यवस्था करनी होगी। पुराने वाहनों को नियमों के अनुसार शव वाहन के रूप में पुनः तैनात करने का भी विकल्प खोला गया है। इसके संचालन के लिए क्षेत्रवार व्यय सीमा भी तय की गई है।
सरकार की मंशा साफ
स्वास्थ्य सचिव ने कहा कि यह व्यवस्था केवल प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि मरीजों को समय पर और उपयुक्त इलाज दिलाने की गंभीर कोशिश है। अब हर रेफरल दस्तावेजीकृत होगा, और SOP का पालन अनिवार्य होगा।
डॉ. कुमार ने दोहराया, “अब रेफरल कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि ठोस चिकित्सकीय आवश्यकता के आधार पर ही किया जाएगा। इससे प्रदेश का स्वास्थ्य ढांचा और अधिक उत्तरदायी और मजबूत बनेगा।”