देहरादून: ‘जोशीमठ के लिए सरकार के प्रयास नाकाफी हैं…’। यह सोशल मीडिया में पिछले तीन-चार दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है। इस पर लोग अलग-अलग राय दे रहे हैं। लोगों की राय जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर इस पर बहस और चर्चा क्यों हो रही है? इसमें ऐसा क्या है कि इस पर चर्चा की जा रही है? क्यों इसके पोस्टर बनाकर शेयर किए जा रहे हैं? केवल उत्तराखंड ही नहीं, देश के दूसरे कोनों से भी इस पर पोस्टर शेयर किए जा रहे हैं।
अब आपको बताते हैं कि ‘जोशीमठ के लिए सरकार के प्रयास नाकाफी हैं…’ चर्चा में क्यों है। दरअसल, कॉमरेड डॉ. कैलाश पांडे ने कुछ समय पहले सोशल मीडिया में एक पोस्ट शेयर की थी, जिसमें उन्होंने लिखा था कि जोशीमठ के लिए सरकार के प्रयास नाकाफी हैं। उनके खिलाफ श्रीनगर गढ़वाल पुलिस में शिकायत दर्द की थी। डॉ. पांडे तीन-तीन विषयों में गोल्ड मेडलिस्ट हैं और पहले श्रीनगर में ही रहते थे।
इसको लेकर श्रीनगर पुलिस ने उनको कॉल भी किया था। उन्होंने पुलिस को बताया कि वो श्रीनगर नहीं, हल्द्वानी में रहते हैं। काफी दिनों तक मामला शांत रहा, लेकिन इस बीच उनके पास हल्द्वानी कोतवाली से फोन आया और उनको कोतवाली पहुंचने का फरमान सुनाया गया। यहीं, से मामले की चर्चा शुरू हो गई।
उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सरकार की आलोचना के लिए किसी पर मुकदमा किया जाना चाहिए? उनकी इस पोस्ट के बाद कम्यूनिस्ट पार्टी ने पोस्टर जारी कर सरकार की कार्रवाई का विरोध किया, जिसे लोगों को खूब समर्थन मिल रहा है। तब से ही ‘जोशीमठ के लिए सरकार के प्रयास नाकाफी हैं…’ पर सोशल मीडिया में बहस छिड़ी हुई है। हालांकि, इस पर अब तक सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।
इस बीच कॉमरेड इंद्रेश मैखुरी ने सरकार और डीजीपी को भी एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि डॉ. कैलाश पांडे की पोस्ट के लिए किस आधार पर कार्रवाई की जा रही है। उसमें ऐसा क्या है कि दो-दो जिलों की पुलिस सक्रिय हो गई। गढ़वाल मंडल से मुकदमा कुमाऊं मंडल में ट्रांसफर किया गया। साथ सरकार से कुछ सवाल भी किए हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने वास्तव में कुछ किया है, तो सार्वजनिक करे। कॉमरेड अतुल सती ने भी सरकार की कार्रवाई को पूरी तरह से गलत बताया है। सोशल मीडिया में लोग लगातार सरकार की कार्रवाई पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
इस बीच वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला ने भी एक पोस्ट की है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि चारधाम यात्रा 22 अप्रैल से शुरू हो रही है। हर साल जोशीमठ में इस यात्रा को लेकर उत्साह होता था। व्यापारियों के साथ ही स्थानीय लोगों को भी कुछ रोजगार मिल जाता। इस बार जब यात्रा शुरू हो रही है तो कुछ लोग होटलों में विस्थापित हैं तो कुछ सार्वजनिक भवनों में। ऐसे में कैसे भगवान बदरी विशाल और नृसिंग देव के दर्शनों के लिए आ रहे तीर्थयात्रियों का स्वागत करें? या कुछ कमाने की जुगत करें। सिर पर छत न हो तो जीना कितना मुश्किल है, यह जोशीमठ के प्रभावितों को देख अंदाजा लग जाता है।
माना कि जोशीमठ को लेकर सरकार की नीयत साफ है। लेकिन सवाल तो उठते हैं कि काम धरातल पर क्यों नहीं हो रहे हैं? दो हजार प्री-फेब बनने थे। बन गये क्या? होटलों और सार्वजनिक भवनों में लोग कब तक रहेंगे? पीपलकोटी और दूसरे सुरक्षित स्थानों पर बसाने की योजना कितनी सिरे चढ़ी। मुआवजे का क्या हुआ?
आठ संस्थाओं द्वारा किये गये अध्ययन सर्वेक्षण की रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं की गयी? ठीक है जोशीमठ की 30 प्रतिशत भूमि ही दरक रही है, लेकिन क्या गारंटी है कि दरारें और नहीं बढ़ेंगी। चारधाम यात्रा के दौरान क्या सरकार ने अब तक वहां कैरिंग कैपिसिटी तय की है। या तीर्थयात्रा के कुछ मानक तय किये हैं। हेलंग-मारवाड़ी बाईपास को लेकर सरकार का क्या स्टैंड है? क्या एनटीपीसी पूरी तरह से निर्दाेष है? समग्र विस्थापन नीति अब तक क्यों नहीं बनी? मुआवजे के मानक अब तक तय क्यों नहीं हुए?
सरकार को चाहिए कि जोशीमठ को पूरी गंभीरता से ले। वहां के नौनिहालों ने इस बार किस तरह से बोर्ड परीक्षाएं दी हैं, यह विचारणीय है। प्रभावितों की सुनवाई होनी चाहिए और धरातल पर काम नजर आने चाहिए। सरकार बंद कमरों में जोशीमठ के भाग्य का फैसला न करे। प्रभावितों को विश्वास में ले।
(फेसबुक से साभार)