देहरादून : उत्तराखंड राज्य आंदोलन का एक योद्धा ने आज दुनिया को अलविदा कह दिया है। राज्य आंदोलनकारी त्रेपन सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है। उनको मोटर न्यूराॅन डिजीज की समस्या थी। फिलहाल इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। दुनिया के प्रख्यात नोबल वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंस भी इसी बीमारी से पीड़ित थे।
अक्टूबर 1971 केपार्स गांव, बासर पट्टी भिलंगना टिहरी गढ़वाल में जन्मे त्रेपन सिंह ने राज्य आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जीवनभर संघर्ष करते रहे। वे कॉलेज के दिनों से ही जन आंदोलनों में शामिल होते रहते थे। कई बार जेल भी जाना पड़ा। फलेंडा में बांध प्रभावितों की लड़ाई उच्च न्यायलय में भी लड़ी। त्रेपन सिंह ने जितना योगदान आंदोलनों में दिया।
उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका साहित्य के क्षेत्र में योगदान से भी निभाई। चिपको आंदोलन में भी शामिल रहे।भी उन्होंने यमुना और हे ब्वारी जैसे चर्चित उपन्यास लिखे। कहानियां और समीक्षाएं लिखीं। उनकी कई कहानियों को तो कन्नड़ भाषा में भी अनुवाद हुआ था। उन्होंने घसियारी जैसे प्रतियोगिता भी आयोजन किया। उनके निधन पर राज्य आंदोलनकारियों समेत विभिन्न सामाजिक संगठनों ने गहरा शोक व्यक्त किया है।
उनके इलाज के लिए विभिन्न सोशल मीडिया माध्यमों और दूसरे संसाधनों से लोगों ने मदद भी जुटाई। कई लोगों ने उनके इलाज के लिए आर्थिक मदद की भी। संघर्ष के साथियों को उम्मीद थी कि उत्तराखंड का ये विचार, ये क्रांति इतनी जल्दी हार नहीं मानेगी, लेकिन वो एमएनडी जैसी घातक बीमारी से हार गए। उससे पहले उनको कैंसर हुआ था। तब उन्होंने कैंसर को मात दे दी थी। उनकी एक किताब पर भी वो इसी बीमारी के बीच काम कर रहे थे। उनका सपना अधूरा जरूर रह गया, लेकिन उसे अब उनके साथ पूरा करेंगे।