– एक जिंदादिल, भावुक और निरंतर सीखने वाले इंसान थे दिनेश कंडवाल
– अलविदा कंडवाल जी, आप बहुत याद आओगे
- वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला
कल दोपहर मैंने उनकी एक पोस्ट देखी। ओएनजीसी अस्पताल के बेड पर लेटे सेल्फी लेकर पोस्ट की थी। तब मैंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। मुझे एहसास ही नहीं था कि आज क्या हो जाएगा? दिनेश जी का यूं चुपचाप बिना लड़े चले जाना बहुत अखर रहा है। चुभ रहा है कि प्रकृति के इस चितेरे और एक अदद इंसान का अचानक यूं धोखा देकर चले जाना। ठगा सा हूं, कि यह कैसे हो गया?
दिनेश कंडवाल बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। एक बेहतरीन घुमक्कड़ी पत्रकार, फोटोग्राफर के साथ ही वो जियोलाॅजिस्ट भी थे। यानी प्रकृति से उनका सीधा और गहरा नाता था। सीखने की ललक ऐसी कि दो जून 2020 को उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा कि उनकी पोती एक तितली को देख कर पूछती है कि यह कौन सी तितली है तो उन्होंने तितली की फोटो ली और उसके बारे में छान मारा। हाल में पहाड़ का समर्पित रतन सिंह असवाल की ढाकर शोध यात्रा 2020 में वो चार दिन में कोटद्वार से होते हुए 42 किलोमीटर पैदल समेत 175 किलोमीटर चलकर सतपुली के गोल्डन महाशीर कैंप पहुंचे।
उन्हें अपनी पोती से अथाह प्रेम था। यही कारण था कि ढाकर यात्रा से आने के बाद वे वरिष्ठ पत्रकार मनोज इस्टवाल के साथ सेल्फ क्वारंटीन हो गये। इस दौरान उन्होंने मनोज इस्टवाल जी को खाना बनाना सिखाया। यानी हर कार्य में वो पारंगत थे। सरल, सहज, मृदुभाषी और प्रकृति प्रेमी इस बहुआयामी प्रतिभा के धनी व्यक्ति की कमी संभवतः कभी पूरी नहीं होगी। अलविदा दिनेश कंडवाल जी। आप बहुत याद आओगे ।भावभीनी श्रद्धांजलि।