देहरादून: कोरोना के फैलने के बाद राज्य में बाहर से आने वाले लोगों पर पैनी नजर रखी जा रही थी। कोरोना जांच के बाद ही लोगों को आने दिया जा रहा था। अब एक बार फिर बाहरी राज्यों आने वाले लोगों पर पैनी नजर रखी जा रही है। लेकिन, इस बार इसकी वजह कोरोना नहीं। बल्कि कुछ और ही है।
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मंकीपाक्स, यह बीमारी दुनिया के 75 देशों में फैल चुकी है। भारत में इसका पहला मामला दिल्ली में मिला है। हालांकि अब तक उत्तराखंड में इसका कोई मामला सामने नहीं आया है। मंकीपाक्स की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को एडवाजरी जारी की गई है। केंद्र की एडवाजरी के बाद राज्य सरकार ने भी एक एडवाजरी जारी की है।
मंकीपाक्स के लक्षण
- त्वचा में लाल दाने या चकत्ते
- गर्दन, कांख, छाती व पेट में सूजन
- सिर व मांसपेशियों में दर्द
- थकावट
- गले में खराश और कफ
- आंखों में दर्द, धुंधला दिखाई देना
- सांस लेने में दिक्कत, छाती में दर्द
कैसे फैलता है
- मंकीपाक्स भी सीधे शारीरिक संपर्क में आने से
- किसी संक्रमित के शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क में आने से
- यौन संबंध से
- समलैंगिक यौन संबंध से
- संक्रमित के कपड़े, चादर व तौलिया का इस्तेमाल करने से
यहां से आया मंकीफॉक्स
मंकीपाक्स वायरस का इसके नाम के मुताबिक बंदरों से कोई सीधे लेना-देना नहीं है। मंकीपाक्स आर्थोपाक्सवायरस परिवार से संबंधित है, यह चेचक की तरह दिखाई देता है। इसमें वैरियोला वायरस भी शामिल है। इस बीमारी की पहचान सबसे पहले वैज्ञानिकों ने 1958 में की थी। तब शोध करने वाले बंदरों में चेचक जैसी बीमारी फैली थी। इसलिए इसे मंकीपाक्स कहा जाता है। 1970 में पहली बार इंसान में मंकीपाक्स कान्गो के एक बच्चे में पाया गया था।
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मंकीपाक्स इंसानों में पहली बार मध्य अफ्रीकी देश कांगो में 1970 में मिला था। अमेरिका में 2003 में इसके मामले सामने आए थे। 2022 में मंकीपाक्स का पहला मामला मई के महीने में यूनाइटेड किंगडम में सामने आया। इसके बाद से यह वायरस यूरोप, अमेरिका और आस्ट्रेलिया समेत कई देशों में फैल चुका है।