Thursday , 14 November 2024
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AIIMS ने दिया नया जीवन
फाइल फोटो

UTTARAKHAND: सांस नली में फंसी ‘गिट्टी’, संकट में था मासूम का जीवन, AIIMS ने लौटाई सांसें

खंऋषिकेश : AIIMS ऋषिकेश ने 7 साल के मासूम को नया जीवन दिया है। बच्चे की सांस नली में रोढ़ी-बजरी की गिट्टी फंसने से एक 7 वर्षीय बच्चे की जान पर बन आई। मासूम का जीवन बचाने के लिए माता-पिता उसे लेकर कई अस्पतालों में गए, मगर मामला गंभीर देख सभी ने हाथ खड़े कर दिए। ऐसे में जोखिम उठाते हुए एम्स के चिकित्सकों ने इलाज की उच्च तकनीक का उपयोग किया और सांस की नली से होते हुए फेफड़े में फंसी गिट्टी को बाहर निकालने में कामयाबी हासिल की। बताया गया कि यह गिट्टी खेल-खेल में बच्चे के गले से नीचे उतरकर सांस की नली में फंस गई थी। 

7 साल के मासूम के फेफड़े में फंसी थी डेढ़ सेंटीमीटर की गिट्टी

हरिद्वार के शाहपुर गांव का 7 साल का मासूम कुछ दिन पहले अपने भाई-बहन के साथ घर के आंगन में खेल रहा था। खेल-खेल में बच्चे ने घर के आंगन में रखी रोढ़ी की ढेर से एक गिट्टी मुंह में डाल दी। यह गिट्टी उसके गले में से नीचे उतरकर सांस की नली में जाकर फंस गई। कुछ दिनों बाद धीरे-धीरे बच्चे को सांस लेने में दिक्कत होने लगी और उसकी हालत गंभीर हो गई। परिजन बच्चे को अस्पताल ले गए तो जनपद के बड़े अस्पतालों ने भी जबाव दे दिया। 

कई दिनों से बनी थी परेशानी, खेल-खेल में हुई घटना

आखिरी उम्मीद लिए माता-पिता बच्चे को लेकर एम्स की पीडियाट्रिक पल्मोनरी ओपीडी में पहुंचे। उस समय AIIMS की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह पीडियाट्रिक पल्मोनरी विभाग के अन्य चिकित्सकों के साथ OPD में  मौजूद थीं। प्रो. मीनू सिंह के मार्गदर्शन में डॉक्टरों की टीम ने सभी आवश्यक जांचें करने के बाद फ्लैक्सिबल वीडियो ब्रोंकोस्कॉपी करने का निर्णय लिया। 

ब्रोंकोस्कॉपी की मदद से मिली सफलता 

इस बाबत जानकारी देते हुए पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. मयंक मिश्रा ने बताया कि टीम वर्क से संपन्न की गई इस प्रक्रिया से चिकित्सकों की टीम, बच्चे की श्वास नली में फंसी गिट्टी को बाहर निकालने में सफल रही। डॉ. मयंक ने बताया कि निकाली गई गिट्टी का साईज 1.5×1 सेमी. था। 16 जुलाई को ब्रोंकोस्कॉपी की प्रक्रिया संपन्न करने के बाद स्वस्थ होने पर बच्चे को पिछले सप्ताह AIIMS से डिस्चार्ज कर दिया गया। 

बच्चों का ध्यान रखें 

AIIMS पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के हेड प्रो. गिरीश सिंधवानी ने कहा कि इस तरह के बढ़ते मामलों के मद्देनजर परिवार वालों को चाहिए कि छोटी उम्र के बच्चों की देखरेख और उनके रख-रखाव के प्रति विशेष सावधानी बरतें। ताकि इस प्रकार की घटनाएं कम से कम हो सकें। इलाज प्रक्रिया को संपन्न करने वाली टीम में पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के डॉ. मयंक मिश्रा के अलावा पीडियाट्रिक पल्मोनरी विभाग की डॉ. खुश्बु तनेजा और एनेस्थेसिया विभाग के डॉ. प्रवीन तलवार आदि शामिल थे। 

भोजन नली और कुछ सांस की नली में फंस जाती हैं

”छह साल से कम उम्र के बच्चों में यह बहुत आम बात है कि वह किसी भी चीज को मुंह में डाल लेते हैं। इनमें छोटे सिक्के, कंचे, शर्ट के बटन, बैटरी, पेंसिल, पिन और नुकीली वस्तुएं आदि प्रमुख हैं। गले से नीचे उतरकर इनमें से कुछ चीजें भोजन नली और कुछ सांस की नली में फंस जाती हैं। पीडियाट्रिक पल्मोनरी विभाग खासतौर से छोटे बच्चों के श्वास रोग संबंधी उपचार के लिए ही बना है। एम्स में क्रिटिकल स्थिति वाले इस प्रकार के बच्चों के इलाज के लिए ब्रोन्कोस्कॉपी की आधुनिक और उच्चस्तरीय विभिन्न तकनीकें उपलब्ध हैं।’’ 

  • प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह, कार्यकारी निदेशक, AIIMS ऋषिकेश।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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