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उत्तराखंड: जयंती पर याद किए गए गढ़वाली साहित्य के गौरव कन्हैया लाल डंडरियाल

देहरादून: जिनकी कविताओं और गद्य रचनाओं में पहाड़ बोलता है, चलता है, गुनगुनाता है और अपनी कथा व व्यथा कहता है, आज उन्हीं पहाड़ की संवेदनाओं के कवि कन्हैया लाल डंडरियाल की पुण्यतिथि है। गढ़ गौरव कन्हैयालाल डंडरियाल स्मृति मंच देहरादून के अध्यक्ष सतेंद्र डंडरियाल ने बताया कि कन्हैया लाल डंडरियाल का जन्म पौड़ी जनपद के मवालस्यूं पट्टी के नैली गांव में 11 नवंबर, 1933 में हुआ था।

महाकवि कन्हैया लाल डंडरियाल जी की जयन्ती पर आज 11 नवंबर को गढ़वाल मंडल में विभिन्न स्थानों पर छोटे बड़े आयोजन हो रहें हैं। सबसे बड़ा आयोजन आज राजकीय इण्टरमीडिएट कालेज नौंगांवखाल, पौड़ी गढ़वाल में हो रहा है। श्मेरू मुलुकश् और चौन्दकोट युवा संगठन जैसी कई स्थानीय संस्था इसके आयोजन में सहभागी बने हैं।

इसमें गढ़वाळि गीत विधा के सशक्त हस्ताक्षर गिरीश सुन्दरियाल की दो पुस्तकों सजिलो- सिंगार (गढ़वाळि गीत संग्रै) व पैंतुल्यों-पराज (गढ़वाळि गजल संग्रै) के साथ ही दीनदयाल सुन्दरियाल द्वारा अनुदित नरेंद्र-गीतिका (नरेंद्र सिंह नेगी जी के चुनिंदा 60 गीतों का हिन्दी काव्यानुवाद) और शिक्षक व गढ़वाळि कविता का युवा तुर्क धर्मेन्द्र सिंह नेगी के श्तीलु-बाखरीश् (लोक चित्रकथा) का लोकार्पण गढगौरव श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी के करकमलों से होना है।

मंच के अध्यक्ष सतेंद्र डंडरियाल ने बताया कि गढ़ गौरव कन्हैया लाल डंडरियाल की प्रकाशित रचनाओं में ‘मंगतू’ खंडकाव्य, ‘अज्वाल’ कविता संग्रह, ‘कुयेड़ी’ (गीत संग्रह), ‘नागरजा’ (महाकाव्य भाग-1) ‘चाठौं का घ्वीड़’ (यात्रा वृत्रांत), ‘नागरजा’ (महाकाव्य भाग-2) ‘अंज्वाल’ (कविता संग्रह), ‘नागरजा’ (महाकाव्य भाग-3 व 4) प्रमुख हैं।
जबकि कुछ रचनाएं अभी अप्रकाशित हैं।

जीविकोपार्जन में तमाम समस्याओं के बावजूद वह निरंतर गढ़वाली साहित्य की सेवा में लगे रहे। भाषा के जानकारों का मानना है कि गढ़वाली भाषा और साहित्य को एक उच्च मुकाम तक पहुंचाने में कन्हैयालाल डंडरियाल जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गढ़वाल के प्रति उनकी अगाथ श्रद्धा और प्रतिबद्धता को उनके पूरे साहित्य में देखा जा सकता है।

यह समर्पण उनके लिखने में ही नहीं, बल्कि व्यवहार में भी था। उन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ, राग-द्वेष और बिना किसी पूर्वाग्रह के जीवन मूल्यों, जीवन दृष्टि, व्यथा-वेदना, जनसरोकार, हर्ष, पीड़ा, संघर्षों को केन्द्र में रखकर उत्कृष्ट, उदात्त और जीवंत साहित्य की रचना की। कई बार वह व्यंग्य के रूप में भी उभरकर सामने आती है।

उनके लेखन में सामयिक चेतना साफ दिखाई देती है। दूरदृष्टि भी। उनके लेखन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह पाठकों को बहुत गहरे तक प्रभावित करता है। बहुत संवेदनाओं के साथ। वह उन रचनाओं को अपने आसपास में ढूंढता है। उसे वह मिलती भी है। अपने इर्द-गिर्द या खुद अपने में।

साथ ही जीवन के सच को पहचानने और स्वीकारने की चेष्टा दिखाई देती है। वे आमजन की बहुत बारीक कथ्य और भाव को खूबसूरती के साथ व्यक्त करते थे। उनकी लिखी रचनाओं को प्रख्यात गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने भी आवाज दी है। आंचलिक भाषा के कवियों के लिए वह हमेशा प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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