सूचना का अधिकार अधिनियम जनता के लिए एक हथियार के तौर पर देखा गया था। काफी हद तक यह कारगर भी रहा, लेकिन कई मामलों में सूचना का अधिकार के तहत सूचनाएं देने में अधिकारी लगातार मनमानी और आनाकानी करते हैं। कई बार सूचनाएं तो दी जाती हैं, लेकिन वो अधूरी होती हैं। कुछ पढ़ने योग्य भी नहीं होती।
जबकि, कुछ के लिए जरूरत से ज्यादा पैसा मांगा जाता है या फिर अपीलों के चक्कर में भटका दी जाती हैं। देश के नागरिकों को सशक्त बनाने और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए बने सूचना के अधिकार कानून को सरकार के कारिंदे ही धता बता रहे हैं। सूचना छिपाने के लिए नए-नए बहाने, नए-नए कुतर्क गढ़े जा रहे हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (NIN) पोषण पर रिसर्च करने वाली देश की शीर्ष संस्था है। देश में पोषण से जुड़ी कोई भी योजना और नीति बनाने में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के तहत आने वाली इस संस्था की रिसर्च एवं राय को काफी महत्व दिया जाता है। यह संस्था रिसर्च के लिए सरकार के अलावा किन संस्थानों से ग्रांट ले रही है, सूचना के अधिकार कानून के तहत यह जानकारी मांगी गई।
NIN के जनसूचना अधिकारी (CPIO) डाॅ. पी सूर्यकुमार का जवाब आया, हम इस समय कर्मचारियों की कमी से बुरी तरह जूझ रहे हैं। आपका जवाब देने के लिए हमें एक एमटीएस, एक क्लर्क, एक सहायक और एक सेक्शन ऑफिसर की नियुक्ति करनी होगी। इनके साल भर का वेतन और स्टेशनरी के 50 हजार रुपए मिलाकर कुल 14 लाख 68 हजार 400 रुपए जमा करा दें, एक साल में आपको मांगी गई सूचना दे दी जाएगी।
इसी तरह, देश में अध्यापक शिक्षण का नियमन करने वाली संस्था राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) की तत्कालीन चेयरपर्सन सतबीर बेदी की विदेश यात्रा से जुड़ा ब्योरा आरटीआई के तहत मांगा गया। सीपीआईओ ने आवेदन पर कोई जवाब नहीं दिया। प्रथम अपील के बाद 23 पन्नों का एक ऐसा पीडीएफ दस्तावेज आवेदनकर्ता को भेजा गया, जिसे पढ़ा ही नहीं जा सकता था।
देश में अध्यापक शिक्षण का नियमन करने वाली संस्था राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) की तत्कालीन चेयरपर्सन सतबीर बेदी की विदेश यात्रा से जुड़ा ब्योरा RTI के तहत मांगा गया। CPIO ने आवेदन पर कोई जवाब नहीं दिया। प्रथम अपील के बाद 23 पन्नों का एक ऐसा पीडीएफ दस्तावेज आवेदनकर्ता को भेजा गया, जिसे पढ़ा ही नहीं जा सकता था।