Saturday , 2 August 2025
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एक्सक्लूसिव: अमृतकाल में पलायन का दंश, गांव में बचे केवल दो-तीन परिवार, कौन लेगा सुध?

  • प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’

सरकारें दावा करती हैं। घोषणाएं करती हैं। आखिरी गांव को पहला गांव कहना भी ठीक है। परिभाषा भले ही अलग से गढ़ी जा सकती है। लेकिन, जंगलों की सीमाओं पर बसे ये अंतिम गांव भी पहले गांव हो सकते हैं। इनका विकास भी किया जा सकता है। सवाल यह है कि एक छोर बसे इन गांवों का विकास क्यों नहीं हो पा रहा है? सवाल यह है कि क्या सरकार के नुमायदों को यह पता नहीं चल पाता होगा कि जिन गावों में पहले 35-40 परिवार रहते थे। वो परिवार अब कहां रह रहे होंगे? सरकार की योजनाओं को गांवों में पहुंचाने वाले अधिकारी भी यह अच्छी तरह जानते होंगे कि गांव खाली हो रहे हैं। गांव में अब कोई रहना ही नहीं चाहता। यह भी जानते ही होंगे कि गांव में स्कूल नहीं हैं। अस्पताल तो दूर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक नही और ना ही अस्पताल और स्कूल तक पहुंचने के लिए सड़क ही है।

नहीं पहुंची सड़क

दिल्ली से उत्तराखंड तक आजादी का जश्न मनाया गया। देश में अमृतकाल पहले से ही चल रहा है, लेकिन नौगांव विकासखंड के चार गांवों कोटला, जखाली, धौंसाली और घुंड में ना तो आजादी के जश्न का असर नजर आया और ना ही इन गांवों में अमृतकाल का अमृत पहुंच पा रहा है। सरकारें दोवे तो करती हैं कि अंतिम छोर पर बसे अंतिम व्यक्ति तक सरकारी योजनाएं पहुंचाई जाएंगी। गांवों का विकास किया जाएगा। लेकिन, जिस सड़क के जरिए गांव तक विकास को पहुंचना था। आज तक वही सड़क नहीं बन पाई। आजादी के 77 साल में भी गांव तक सड़क नहीं पहुंच पाई।

धीरे-धीरे खाली होते चले गए

सड़क नहीं पहुंची तो गांव धीरे-धीरे खाली होते चले गए। एक के बाद एक शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए लोग गांव छोड़ते रहे। अब आलम यह है कि करीब 30-35 परिवारों वाले प्रत्येक गांवों में अब गिनती के ही लोग बचे हैं। ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों ने कभी सड़क की मांग नहीं की। क्षेत्र के निवासी रविंद्र सिंह पंवार बताते हैं कि कई बार मांग उठाई। वोट मांगने जो भी नेता आता, जीतने के बाद कभी लौटता ही नहीं। जीत पक्की करने के लिए नेता पैदल भी गांव पहुंच जाते हैं, लेकिन जीतने के बाद जैसे ही उनको लग्जरी गाड़ी मिलती है, वो गांव के पगदंडियों को भूल जाते हैं।

बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य वजह

बनाल पट्टी के कोटला, जखाली, धौंसाली और घुंड गावों में अब सन्नाटा पसरा रहता है। पहले यह गांव खेती-किसानी के लिए सबसे ज्यादा समृद्ध माने जाते थे। पशुपालन भी गांव में खूब होता था। लेकिन, जैसे-जैसे दौर बदला। लोग बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए सड़क के अभाव में गांव से बाहर निकलने लगे। उसका असर अब यह है कि गांव अब पूरी तरह से खाली होने के कगार पर हैं।

२०२५ में कैसे बनेगा श्रेष्ठ गांव

अगर सरकार ने जल्द ही इन गांवों की सुद्ध नहीं ली तो पलायन रोकने के सरकार के तमाम दावों की पोल खुल जाएगी। मुख्यमंत्री धामी को 2025 में उत्तराखंड को सर्वश्रेष्ट राज्य बनाने का लक्ष्य है। सवाल है कि क्या इस तरह से उत्तराखंड 2025 तक हर क्षेत्र में श्रेष्ठ बन पाएगा। जिन गांवों से स्कूल और अस्पताल कई किलोमीटर दूर हों और उन तक पहुंचने के लिए पैदल दूरी नापनी पड़े, फिर कोई पलायन क्यों ना करे?

पुरोला में पलायन

गांवों में खेत बंजर हो चले हैं। जिस तरह से कोटी-बनाल शैली का चौकट उत्तराखंड ही नहीं दुनियाभर में अलग पहचान रखता है। उसी तरह के चौकट इन गांवों में खस्ताहाल हो चले हैं। ग्रामीण अगर बागवानी या फिर कोई अन्य नगदी फसलें उगाते भी हैं, तो उनको बाजार तक पहुंचाना ही मुश्किल है। अधिकांश लोग खेती छोड़ चुके हैं। गांव के वो चौक सूने हैं, जहां कभी बुजुर्गों का जमघट लगता था। गांव की उन गलियों में अब कोई नजर नहीं आता, जहां युवा अपने सपनों को उड़ान देने की बातें करते थे। ज्यादातर लोग पलायन कर पुरोला विकासखंड के मठ, सुनाली, उदकोटी, धिवरा, भद्राली, कुमार कोट और मोल्टाड़ी गांवों में बस गए हैं।

प्राथमिक विद्यालय में मात्र 7 बच्चे

कोटला गांव के प्राथमिक विद्यालय में मात्र 7 बच्चे पढ़ रहे हैं। सरकार की योजना 10 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को बंद करने की है। अगर ऐसा हुआ तो ये स्कूल बंद कर दिया जाएगा। इतना ही नहीं कम छात्र संख्या वाले बच्चों को कलस्टर स्कूलों में जरिए दूसरे स्कूलों में समायोजित करने की तैयारी है। लेकिन, सवाल यह है कि यहां आस-पास भी कोई नजदीकी स्कूल नहीं है, जहां आसानी से पहुंचा जा सके।

गांवों की स्थिति बदहाल

बनाल पट्टी के कोटला, जखाली, धौंसाली और घुंड गावों में खूब चहल-पहल रहा करती थी। लेकिन, वर्तमान में इन गांवों की स्थिति बदहाल हो चली है। गांव लगभग खाली हो चुके हैं। आखिर सरकार अब इन गांवों की सुध लेगी। गांव के रवींद्र पंवार का कहना है कि पलायन का मुख्य कारण मूलभूत सुविधाओं की कमी है। गांव में ना तो पढ़ने की सही व्यवस्था है और ना दूर-दूर तक स्वास्थ्य की कोई सुविधा है। गांव वाले जाएं तो जाएं कहां? संभवतः उनके इस सवाल का जवाब ना तो प्रशासन के पास है और ना सरकार जवाब देने की स्थिति में होगी। उसका कारण है कि सरकार तमाम दावे और घोषणाएं पहले ही कर चुकी है, जो आज तक हवा में ही तैर रही हैं। उनको धरातल कब मिलेगा कोई नहीं जानता?

 

गांव का नाम पूर्व में परिवार वर्तमान स्थिति
जखाली 28-30 परिवार (करीब) 2-3 परिवार
धौंसाली 30-32 परिवार (करीब) 2-3
घुंड 15-20 परिवार (करीब) 02
कोटला 40-45 परिवार (करीब) 28-30

जड़ों से अब भी जुड़े हैं लोग
बनाल पट्टी की खास बात यह है कि यहां के लोग अपनी जड़ों को कभी पूरी तरह से नहीं छोड़ते हैं। कोटला, जखाली, धौंसाली और घुंड गावों लोगों ने गांव भले ही छोड़ दिया हो, लेकिन जिन गांवों में बसे हैं, वहां अपने सभी परंपराओं, रीति-रिवाजों और संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं। इतना ही नहीं प्रत्येक साल या फिर निर्धारित नियमों के अनुसार थाती पूजन और अन्य धार्मिक आयोजनों में लोग अपने इन छोड़े हुए गांव में कुछ दिनों के लिए ही सही, लौटकर जरूर आते हैं।

लौट आएंगे लोग

गांव के वन सरपंच दर्मियान पंवार, वीरेंद्र पंवार, रविंद्र पंवार, चंद्र मोहन चौहान, अवतार सिंह चौहान, पुर्व फौजी दर्मियान सिंह पंवार, त्रिलोक पंवार,गोविंद पंवार,उपेंद्र पंवार, सूर्यपाल, किशन राणा, विकास पंवार,गंभीर पंवार, सचिन, भूपेंद्र सिंह आदि का कहना है कि यदि इन गांवों तक सड़क पहुंच जाती है तो एक बार फिर से ये गांव खुशाल होने लगेंगे और गांव में फिर से रौनक लौट आएगी।

 

 

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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