देहरादून: उत्तराखंड में कुछ भी हो सकता है। अधिकारियों को पता है कि उनके बगैर मंत्री और नेता का काम नहीं चलने वाला। अगर वो बैठक में नहीं भी जाएंगे, तो मंत्री क्या कर लेंगे। ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जब मंत्री बैठक में अधिकारियों को इंतजार करते रहते हैं और अधिकारी आते ही नहीं। मंत्री रटा-रटाया जवाब देकर चला जाता है कि कार्रवाई की जाएगी, लेकिन होता कुछ नहीं है।
हाल ही में सीएम त्रिवेंद्र और मुख्य सचिव ने बाकायदा आदेश जारी किया था कि अधिकारी जनप्रतिनिधियों का सम्मान करें…। सवाल यह है कि आखिरी ऐसी नौबत आई ही क्यों…? ताजा मामला आज का ही है। सरकार में दूसरे नंबर की कुर्सी रखने वाले मदन कौशिक केवल शहरी विकास मंत्री ही नहीं। उनके पास सबसे बड़ा दायित्व सरकार के शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक से जुड़ा है।
मदन कौशिक ने एक सप्ताह पहले अधिकारियों को कुंभ को लेकर होने वाली समीक्षा बैठक में बुलाया था। बाकायदा एक सप्ताह पहले सभी विभागीय सचिवों को एजेंडा भी भेजा गया था। बावजूद कोई बैठक में नहीं आया। मंत्री को गुस्सा आया। खूब झल्लाए भी। सीएम को फोन कर खरीखोटी भी सुनाई। यह भी कहा कि अधिकारियों को उनकी बैठक में नहीं आना हो, तो सीएम ही समीक्षा बैठक लें…।
लेकिन, क्या इससे समाधान होगा। क्या उस सवाल का जवाब मिल पाएगा कि आखिर ऐसी नौबत आई ही क्यों ? शासीकय मदन कौशिक ने बैठक को इसलिए स्थगित कर दिया क्योंकि ऊर्जा, पीडब्ल्यूडी, पेयजल जैसे विभागों के सचिव उनकी बुलाई गई समीक्षा बैठक में नहीं आए। मदन कौशिक का कहना था कि जिस बैठक में सचिवों को मौजूद होना चाहिए था, उसमें विभागों कि छोटे अधिकारी भेजे गए हैं, जिस वजह से वह बैठक नहीं ले पाएंगे।