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EXCLUSIVE : 400 साल पुरानी इगास की अद्भुत कहानी, अनिल बलूनी ने किया जीवंत

  • प्रदीप रावत (रवांल्टा)

देहरादून: वैसे तो इगास को लेकर कई कथा-कहानियां हैं। लेकिन, अगर इगास को वास्तव में जानना हो तो, केवल इन दो लाइनों में जाना जा सकता है। इन्हीं दो पंक्तियों में पूरे त्योहार का सार है। लाइनें कुछ इस तरह हैं…“बारह ए गैनी बग्वाली मेरो माधो नि आई, सोलह ऐनी श्राद्ध मेरो माधो नी आई”। मतलब साफ है। बारह बग्वाल चली गई, लेकिन माधो सिंह लौटकर नहीं आए। सोलह श्राद्ध चले गए, लेकिन माधो सिंह का अब तक कहीं कुछ पता नहीं चला। उनकी पूरी सेना की भी कहीं से कुछ खोज-खबर नहीं आई है।

इसलिए मनाते हैं इगास
माधो सिंह के दीपावली के त्योहार पर भी वापस नहीं लौटने के पर लोगों ने दीपावली का त्योहार नहीं मनाया। दीपावली के ठीक 11वें दिन जब माधो सिंह वापस जीत का परचम लहराकर लौटे, उस दिन लोगों ने दीपावली का त्योहार मनाया। इगास का मतलब 11 दिनों से है। तभी इस इस त्योहार का नाम इगास पड़ गया। इसकी पूरी कहानी वीर भड़ माधो सिंह भंडारी के आसपास ही नजर आती है। आईये जानते हैं क्या हैं कि इगास की पूरी कहानी क्या है…?

करीब 400 साल पुरानी कहानी
असल कहानी यही मानी जाती है कि करीब 400 साल पहले महाराजा महिपत शाह को तिब्बतियों से वीर भड़ बर्थवाल बंधुओं की हत्या की जानकारी मिली थी, जिससे राजा बहुत गुस्से में थे। उन्होंने तुरंत इसकी सूचना माधो सिंह भंडारी को दी और तिब्बत पर आक्रमण का आदेश दे दिया। वीर भड़ माधो सिंह ने टिहरी, उत्तरकाशी, जौनसार और श्रीनगर समेत अन्य क्षेत्रों सेयोद्धाओं को बुलाकर सेना तैयार की और तिब्बत पर हमला बोल दिया। सेना ने तिब्बत नरेश को हराकर, उस पर कर लगा दिया।

मैक मोहन रेखा निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका
इतना ही नहीं, तिब्बत सीमा पर मुनारें गाड़ दिए, जिनमें से कुछ मुनारंे आज तक मौजूद हैं। इतना ही नहीं मैक मोहन रेखा निर्धारित करते हुए इन मुनारों को सीमा माना गया। इस दौरान बर्फ से पूरे रास्ते बंद हो गए। रास्ता खोजते-खोजते वीर योद्धा माधो सिंह कुमाऊं-गढ़वाल के दुसांत क्षेत्र में पहुंच गये थे। तिब्बत से युद्ध करने गई सेना को जब कुछ पता नहीं चला, तो पूरे क्षेत्र में लोग घबरा गए। शोक में डूब गए। माधो सिंह भंडारी के विरोधियों ने उनके मारे जानें की खबरें भी फैला दी थी। इससे दुखी लोगों के विरह को कई कविताओं में भी कवियों ने जगह दी है।

उदिना को भगा लाए माधो सिंह
इधर, भंडारी उच्छनंदन गढ़ पहुंच गये और गढ़पति की बेटी उदिना और देखते ही प्रेम हो गया। कहा जाता है कि दो दिन बाद ही उदिना का विवाह होना था। विवाह में माधो सिंह जौनसारी वीरों को साथ ले गए और नर्तक बनकर बारातियों का मनोरंजन करने लगे। उदिना भी नृत्य देखने आई और माधो सिंह को पहचान गई। माधो सिंह का इशारा मिलते ही नृत्य में खिलौना बनी तलवारें चमक उठी और माधो सिंह उदिना को भगा लाये। जब माधो सिंह युद्ध जीत कर वापस श्रीनगर पहुंचे तब उन क्षेत्र के लोगों ने, जिनके वीर इस युद्ध में गये थे। उन्होंने इगास या बग्वाल मनाई।

एकादशी के दिन मिठे करेले
एकादशी के दिन मिठे करेले और लाल बासमती के चावल का भात बनाया जाता है। भैलो बनाने के लिए गांवा से सुरमाड़ी के लगले (बेल) लेने के लिए लोग टोलियों में निकलते थे। चीड़ के पेड़ के अधिक ज्वलनशील हिस्से छिलके, जिसमें लीसा होता था। उसको काटकर लाया जाता है। इससे भैलो बनाए जाते थे। इतना ही नहीं ब्लू पाइन के छिलकों (बगोट) तिब्बत यहां से आयात करता था और इसकी मोटी कीमत चुकाते थे।

भैलू…भैलू…उजाला करने वाला
भैलू काएक नाम अंधया भी है। अंध्या मतलब अंधेरे को मात देने वाला। इगास में मुख्य आकर्षण भी भैलू ही होता है। लोग भैलू खेलते हैं। इसमें चीड़ के पेड़ की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। इसके अन्दर का लीसा काफी देर तक लकड़ी को जलाये रखता है। पहले गांव के लोग मिलकर एक बड़ा भैलू भी बनाते थे, जिसमें समस्त गांव के लोग अपने-अपने घरों से चीड़ की लकड़ी देते थे। कहा जाता है कि इसे जो उठाता था, उसमें वीर-भड़ अवतरित होते थे।

यह भी है एक कथा
इगास से जुड़ी एक कथा और भी है। ऐसा भी माना जाता है कि प्रभु राम जब 14 साल बाद लंका फतह करके वापस दिवाली के दिन अयोध्या आये थे, तो उत्तराखंड के पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को इसकी जानकारी 11 दिन बाद पता चली थी। जिस कारण उन्होंने 11 दिन बाद दीपावली का पर्व मनाया।

एक कहानी ये भी
एक और कहानी महाभारत काल से भी जुड़ी बताई जाती है। दंत कथाओं के अनुसार महाभारत काल में भीम को किसी राक्षस ने युद्ध की चेतावनी दी थी। कई दिनों तक युद्ध करने के बाद जब भीम वापस लौटे तो पांडवों ने दीपोत्सव मनाया था। कहा जाता है कि इस को भी इगास के रूप में ही मनाया जाता है। हालांकि गढ़वाल और कुमाऊं में वीर भड़ माधो सिंह भंडारी और दूसरे गढ़-कुमाऊं योद्धाओं की जीत के जश्न के रूप में मनाया जाता है।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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