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उत्तराखंड में पलायन के आंकड़े आपकी आंखें खोल देंगे…पढ़ें ये रिपोर्ट

देहरादून: उत्तराखंड में पिछले 10 सालों में 1 लाख 18 हजार 981 लोग पूर्ण रूप से प्रदेश से पलायन कर चुके हैं. जबकि, 3 लाख 83 हजार 723 लोग अर्ध-स्थाई आधार पर विस्थापित हुए हैं, जो अस्थाई रूप से रोजगार या अन्य कारणों से बाहर गये. यानि पिछले 10 सालों में उत्तराखंड में से स्थाई या अस्थाई तौर पर पांच लाख से अधिक लोगों ने पलायन किया.

वहीं, 734 गांव पलायन होने से वीरान हो गये. पहाड़ी जिलों पौड़ी, टिहरी, अल्मोड़ा, चमोली व पिथौरागढ़ में पलायन की चिंताजनक तस्वीर उभरकर सामने आई है. यहां के गांवों में पलायन राज्य के औसत से कहीं अधिक है. यह जानकारी पलायन आयोग ने आरटीआई के जवाब में दी है.

आयोग के पास साल 2011 के बाद के ही आंकड़े हैं, यानि राज्य गठन वर्ष 2000 से लेकर 2010 तक आंकड़ा पलायन आयोग के पास कोई रिकॉर्ड ही नहीं है. पलायन आयोग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, पिछले 10 सालों में पिछले 10 सालों में 3, 946 ग्राम पंचायतों से 1, 18, 981 लोग पूर्ण रूप से पलायन कर चुके हैं.

6,338 ग्राम पंचायतों में कुल 3, 83, 723 लोग अर्ध-स्थाई आधार पर विस्थापित हुए हैं, जो अस्थाई रूप से रोजगार के लिए बाहर गये हैं या अन्य कारणों से, ये समय-समय पर गांवों में अपने घर आते रहे और स्थाई रूप से स्थान्तरित नहीं हुए हैं.

स्थाई रूप से सबसे अधिक पलायन पौड़ी जिले से हुआ है. यहां से 25, 584 लोग पलायन कर चुके हैं. जबकि सबसे कम पलायन उधम सिंह नगर जिले से हुआ है. यहां से 952 लोगों ने पलायन किया.

वहीं अर्ध-स्थाई आधार पर सबसे अधिक पलायन अल्मोड़ा जिले से हुआ है. यहां 53, 611 लोगों ने अर्ध पलायन किया है. जिनका गाँव के घर में आना-जाना लगा रहता है. जबकि सबसे कम उधमसिंह नगर में 6, 064 लोगों ने अर्ध पलायन किया.

देखें सभी जिलों की सूची:

https://pahadsamachar.com/wp-content/uploads/2021/01/palayan-hua.pdf

वहीं, उत्तराखंड में बनने से लेकर अब तक कितने गाँव खाली हुए, इन गाँवों के नाम पलायन आयोग के पास उपलब्ध नहीं है, आयोग के पास केवल इसके आंकड़े उपलब्ध हैं.

पिछले 10 सालों में उत्तराखंड के कुल 734 गांव वीरान हो गये. इनमे से खाली हुए सबसे अधिक गाँव पौड़ी जिले के हैं, जहाँ 186 गाँव वीरान हो गये. जबकि सबसे कम देहरादून जिले में 7 राजस्व ग्राम/तोक शामिल हैं.

वहीं, प्रदेश में पलायन को रोकने के लिए सरकार द्वारा क्या-क्या कार्य किये जा रहे हैं, इसकी जानकारी पलायन आयोग को नहीं है. पलायन आयोग के अनुसार, वह सरकार को पलायन रोकने के लिए शासन को केवल सिफारिशें करती है.

इसके अलावा ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग के गठन वर्ष 2017-18 से लेकर साल 2020-21 के नवम्बर 2020 तक 04 करोड़, 24 लाख 54 हजार, 5 सौ रूपये आवंटित किये गये. इसके सापेक्ष नवम्बर 2020 तक 2 करोड़, 5 लाख, 85 हजार, 962 रूपये खर्च किया गया और 57 लाख 29 हजार, 453 रूपये अवशेष है. जबकि, 1 करोड़, 61 लाख, 39 हजार, 085 रूपये शासन को वापस कर दिया गया.वहीं केवल पलायन से सम्बन्धित किये गये सर्वे पर नवम्बर 2020 तक 8 लाख, 60 हजार, 27 रूपये खर्च किया गया है. यदि जानकारी सूचना अधिकार में समाजसेवी हेमंत गौनिया को सरकार ने दी है। गौनिया लगातार सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सरकार के विभिन्न विभागों से जानकारियां हासिल करते रहते हैं। केई खुलासे भी कर चुके हैं।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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