उत्तरकाशी : एक और जहां देश खुशियों और दीपों के त्यौहार दीपावली का जश्न मना रहा था। वहीं, दूसरी ओर 40 जिंदगियां टनल के भीतर जिंदगी और मौत जंग लड़ रही हैं। टनल के भीतर ऐसी जगह पर हर सांस के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जहां जीने के लिए ऑक्सीजन भी पाइप से भेजी जा रही है। जहां कुछ नजर ना रहा हो, जहां जमीन पर पानी ही पानी हो और किसी भी वक्त टनल की छत के किसी भी वक्त भरभराकर गिरने का खतरा।
यह ऐसी भयावह स्थित है, जिसके बारे में सोच कर भी रूह कांप जाती है। उत्तरकाशी के सिलक्यारा में कंपनी की टनल में भूस्खलन होने के कारण अब से लगभग 30 घंटे पहले करीब 40 मजदूर टनल के भीतर फंस गए थे, जिनको अब तक बाहर नहीं निकाला जा सका है।
इधर पूरा उत्तराखंड समेत पूरा देश पटाखों के धमाकों के बीच जश्न में मशगूल रहा और वहां टनल के भीतर 40 जिंदगियां अब भी जिंदगी और मौत के बीच झूल रही हैं। सवाल यह है कि आखिर टनल को बनाने के लिए कैसी सामग्री का प्रयोग किया जा रहा था। क्या टनल बनाने के लिए सही जगह का चयन नहीं किया गया था?
एक साथ इतने बड़े क्षेत्र में भूस्खलन होना बड़े खतरे का संकेत है। टनल के भविष्य को लेकर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं। यदि भविष्य में भी टनल में कुछ इसी तरह भूस्खलन हुआ तो हर वक्त लोगों की जिंदगियां दांव पर लगी रहेंगी। इन सवालों का जवाब निर्माण से जरूर पूछा जाना चाहिए। सवाल इसलिए भी, क्योंकि टनल का निर्माण समय पर पूरा नहीं हो पा रहा हो।
फिलहाल पहली प्राथमिकता टनल के भीतर फंसे मजदूरों को बचाने की है। मजदूरों को बचाने के लिए कल से रेस्क्यू का लगातार जारी है। जिसके लिए SDRF, NDRF पुलिस, फायर सर्विस, ITBP, BRO टीमें जुटी हुई हैं।
THDC और लखवाड़ हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के विशेषज्ञ भी लगातार मौके पर हैं। इसके अलावा जिले के आला अधिकारी भी इस पूरे रेस्क्यू पर लगातार नजर बनाए हुए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक रेस्क्यू की अपडेट ले रहे हैं। उम्मीद है कि टनल में फंसे सभी मजदूर सुरक्षित हैं। वॉकी-टॉकी के जरिए उनसे संपर्क भी हो चुका है। अब देखना होगा कि मजदूरों का रेस्क्यू करने में कितना और समय लगता है?