Thursday , 18 September 2025
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उत्तराखंड: माल्टे के स्वाद और बात के साथ “कल्यो” फूड फेस्टिवल, मेन्यू देख मुंह में आएगा पानी

देहरादून: माल्टा। पहाड़ा में रहने वाला शायद कोई ऐसा होगा, जिसने इसके स्वाद का आनंद ना लिया हो। माल्टे के जूस भी अब पैक्ड बोतलों में मिलने लगा है। माल्टे को अब तक जो छोटा-बड़ा बाजार मिला भी है, वह लोगों के खुद के प्रयासों से ही मिला है। सरकारी स्तर पर इसके लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। प्रयास करना तो दूर की बात माल्टे की बागवानी करने वाले किसानों के साथ मजाक किया जा रहा है।

दरअसल, सरकार ने माल्टे का समर्थन मूल्य आठ रुपये प्रति किलो तय किया है। आठ रुपये प्रति किलो कौन किसान अपने माल्टे बेचेगा। जिस माल्टे को तैयार करने में हाड़तोड़ मेहनत और दवा छिड़काव से लेकर मजदूरी तक का खर्चा लगाता है, उसे आठ रुपये में कौन किसान बेचेगा? सवाल यह भी है कि ऐसे में कौन रिवर्स पलाायन करेगा। कौन शहरों को छोड़कर वापस पहाड़ों की ओर लौटेगा? क्या सरकार की पलायन रोकने की यही योजना है? क्या यह उसी योजना का हिस्सा है, जिसके लिए पलायन आयोग बनाया गया था?

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समाजिक सरोकारों के क्षेत्र में सालों से काम कर रही धाद ने इसके लिए एक खास अभियान शुरू किया है। सरकार ने जिस माल्टे का आठ रुपये प्रति किलो समर्थन मूल्य घोषित किया है। उसे बागवानों के घर से 20 रुपये किलो खरीदा जा रहा है। देहरादून में पौड़ी से पहुंचने वाले माल्टे की कीमत यहां 30 रुपये प्रति किलो तय की गई है। इसके अलावा नारंगी का दाम भी 60 रुपये प्रति किलो तय किया गया है।

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इतना ही नहीं माल्टे के स्वाद और के बात के लिए खास आयोजन किया जा रहा है। 25 दिसंबर को स्मृतिवन मालदेवता में होने वाले कल्यो फूड फेस्विल में जहां माल्टे को लेकर सरकार की उदासी और बेहतरी पर चर्चा होगी। वहीं, उत्तराखंड के पारंपरिक भोजन भी लोगों को परोसे जाएंगे। अगर आप भी फूड फेस्टिबल में पहाड़ी खाने का आनंद लेना चाहते हैं, तो उसके लिए UPI ID- dhadddn@oksbi पर 200 रुपये जमा कराने होंगे।

मेन्यू
1.गुड़ की कटकी वाली पहाडी़ जडीबुटी से निर्मित मसाला चाय।
2.सफेद तील की छाप वाले उड़द दाल के भीजे पकौड़े- (भीगी दाल पीसने की रस्म किसी शुभ कार्य से पहले पहाड़ में काफी रोचक होती है। सामूहिकता की भावना से ओतप्रोत यह परंपरा उत्सव और उल्लास में सहभागिता का प्रतीक है। उड़द की इस दाल से बने पकोड़े शुभत्व और मंगलकारी माने जाते हैं, इसीलिए सहभोज से सबसे पहले पत्तलों में दो-दो पकोड़ियां परोसी जाती हैं और बागदान, बारात, बारपैटा यानी दुणौज और सलाहपट्टा में ले जाई जाने वाली दही की परोठी पर दो पकोड़ियां बांधी जाती हैं।किसी शुभ कार्य के खत्म होने के बाद बांटे जाने वाले अरसे जैसे मीठे पकवानों में पकोड़ों का महत्व कलाई के साथ चूड़ी जैसा है। पहाड़ में पैंणा की पकोड़ी यानी शुभ कार्य के बाद पकवान बांटना अत्यंत सम्मान की भावना को दर्शाती है।) इसी सम्मान को सम्मानित करते हुए कल्यौ इस बार आपकी थाली में परौसेगा पारंपरिक उड़द दाल के भिजे पकौड़े-! इन पकौडों के स्वाद में बढोत्तरी करेगा – कुमाऊँ का पारंपरिक ष्पीला रायता।

3.पीला रायता- पहाड़ी पीला रायता, पीला इसलिए क्योंकि इतनी सारी हल्दी शायद ही किसी रायते में पूरी दुनिया में पड़ती होगी। हल्दी -यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता से भरी, सौभाग्य और समृद्धि की सूचक! हल्दी के अलावा इस रायते में मिलाई जाती है बारीक राई जो तासीर में गर्म मानी जाती है, दही और खीरे की ठंडी तासीर को पहाड़ों के हिसाब से गरमा देती है। हल्दी का पीला रंग इसको समृद्धि का टच देता है। पीले रंग का तो एक पूरा फलक है पहाड़ में, जो फ्योंली के फूलों से लेकर रंगवाली पिछौड़े तक जाती है, पीले रंग की ये धमक। यूँ कुमाऊँ में पकौडों के साथ रैत खाने की परंपरा रही है! आज भी भवाली और दोबाटी में दोकानदार पहाड़ की रैत- पकोड़ की परंपरा को सहेजते हुए देश के अन्य भागों से आने वाले पर्यटकों को इस नायाब व्यंजन के स्वाद से परिचित करा रहे हैं। कुछ समय पहले तक पहाड़ के मेलों में ठेकी में रैत बिकने को भी आता था! केले या तिमले के पत्तों में पांच पैसे दस पैसे का मिला करता था! पांच पैसे का एक दोना अगर किसी की बहन या बेटी नजदीक के गांव में ब्याही हो तो उसकी भिटौली में रैत भी जाता था।

4.बूरा और घी-(पहाडी़ समाज, पारंपरिक भोजन के समय- पंगत को सबसे सर्वप्रथम मालू के पत्तों में बूरा और घी परोसते है, जैसे दक्षिण भारत केले को पत्तों में प्रथम क्रम में नमक परोसता है! व बांग्ल बंधु शुक्तो।

5.फड़ की दाल( भड्डु) और जख्या भात-परम्परागत भाड्डू की दाल गढ़वाल हिमालय की लोकप्रिय रेसिपी है! हमारे देश में , दालों की रेसिपी, दालों के नाम पर रखने की प्रवृत्ति है! उदाहरण के लिए, मूंग की दाल (मूंग की दाल से बनी) और चने की दाल (चने से बनी)। लेकिन यहाँ भड्डू-दाल में भड्डू कोई दाल नही है, बल्कि भड्डू में पकाये जाने के कारण इस दाल को -भड्डू की दाल कहा जाता हैभड्डू एक बर्तन है जिसमें ठिठूरती सर्दी में उड़द की दाल को चावल या रोटी के साथ, गरमागरम परोसने से पहले घंटों तक धीमी गति से मिस- मिसी आंच में बांज और चीड़ की लकडियों से मिट्टी के चूल्हे में पकाया जाता है। पहले ब्याह बरात में फड़ लगती थी, जिसमें कयी चूल्हों वाले बडी़ भट्टी लगती, इस भट्टी में तीन- चार चूल्हे होते थे, और इन चूल्हों पर चढते थे दैग भड्डू व तौले, और बनता था फडु की दाल! इस दाल में कलछी (डाडू) से गाय के घी, हींग, जंबू, लाल मिर्ची का बघार डाला जाता था! कहीं- कहीं पर दाल में बघार बडे़ से कोयले से भी डाला जाता था।

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6. भात-(पहाडी़ भोजन का नाम आते ही जो चीज सबसे पहले आती है वह है दाल-भात! यूं के पहाडियों की पहचान ही दालभात है। यहां शुभ अवसरों पर भी , जैसे बच्चे का नामकरण, महिलाओं की गणेश पूजा या बारात वापसी पर होने वाले भोजन को भी लोग। भात खाना ही कहते हैं। मसलन, किसी का बच्चा होने वाला हो या लड़का विवाह योग्य हो या विवाह के बाद महिला के रजस्वला होने पर लोग बाग पूछते हैं भात कब खिला रहे हो। किसी के यहां भात खाना सम्मान का प्रतीक होता था- खाने वाले के लिए भी और खिलाने वाले के लिए भी, हालांकि कुछ लोंगों ने इसे जातिगत ऊंच-नीच के तौर पर भी प्रयोग किया, इसे एक सामाजिक बुराई ही कहा जाऐगा! पहाडियों का भात थोड़ा गीला और ढेले वाला होता है, जिस के ऊपर दाल डालकर सपोडा़ जाता है, जैसे तमिलियन इडली- सांभर का गोला – अपनी जिह्वा को लंबा कर गटकते है, वैसे ही हम पहाडी़ दालभात को सपोड़ते है।)

7. ठुंगार- ( पालक का टपका और मूला, भूनी लाल मिर्ची)

8. मंडुवे और गहथ की लहसुनिया ढबाडी़ रोटी –(पहाडों में सर्दी की तासीर को कम करने के लिए चूल्हे की आंच पर मंडुवे ( कोदो) के आटे के अंदर उबली- गहथ की दाल को स्टफ कर ढबाडी़ रोटी बनाई जाती है, जिसे गाय के नौण व कच्चे टमाटर की लहसुन डली चटनी के साथ खाया जाता है, लिहाजा परंपरानुसार कल्यौ भी शीत ऋतु होने के कारण आपके लिए गहथ की ढबाडी़ रोटी को कच्चे टमाटर की चटनी के साथ परोसा जाएगा।

9. बाड़ी -( रागी मुद्दे)-बाड़ी को कोदा के आटे (जिसे चून या मंडुआ के आटे के रूप में भी जाना जाता है) से बनाया जाता है। बाड़ी को गहत की दाल या फाणु के साथ खाया जाता है। इसे बनाने के लिए मंडवे के आटे को गरम पानी के साथ मिलकार हलवे की तरह गाढ़ा पकाया जाता है। गढ़वाल में अधिकतार पकवान और व्यंजन बनाने के लिए लोहे की कढ़ाई का इस्तेमाल होता है वैसे ही बाड़ी को भी लोहे की कढ़ाई में बनाया जाता है। इसका लुत्फ़, गर्म- गर्म उड़द की दाल और आलु के झोल के साथ लिया जाता है।

10. चने और हरे प्याज का अदरकी फाणु-(उत्तराखंड जितना अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्द है, उतना ही अपने स्वाद के लिए भी प्रसिद्द है। इस बार हम कल्यो की थाली में आपके लिए उत्तराखंड के एक पारंपरिक व्यंजन को परोसने जा रहे हैं , जिसका स्थानीय नाम हैष् फाणु। यह उत्तराखंड का बहुत स्वादिष्ट और लोकप्रिय व्यंजन है। वैसे तो इसे आमतौर पर गहत की दाल से बनाया जाता है। लेकिन कई बार दूसरी दालों से भी बनाया जा सकता है। चने और हरे प्याज का अदरकी फाणु तिहरी जिले के लोरसी और दोगी क्षेत्र में बनाया जाता है! चने की पैदावार के कारण शायद इस क्षेत्र में चने का फाणु बनाया जाता होगा! उत्तराखंड की इस प्रसिद्ध रेसिपी को, जे.पी.होटल मसूरी द्वारा उत्तराखंड के सिगनेचर व्यंजन के तौर पर सर्व किया जाता है! स्वाद में बढोत्तरी के लिए इसमें हरे प्याज व अदरक का इस्तेमाल किया जाता है! लोंग व काली मिर्च की तासीर के सा थ!) इसका स्वाद आप बाडी़ व झंगौरे के साथ ले सकते हैं!

11. माल्टे का ष्घसेरी सलाद (सना सलाद) –उत्तराखंड के पहाड़ों में मिलने वाला माल्टा स्वाद और सेहत का परफेक्ट कॉम्बिनेशन है। माल्टा एक गहरे नारंगी और लाल रंग का फल होता है, जिस उत्पादन भारत में उत्तराखंड की पहाड़ियों में की जाती है। यह दिखने में संतरे जैसा होता है, लेकिन उससे कई अधिक स्वादिष्ट और गुणकारी है। ब्रिटिश साम्राज्य के समय में इसे “माल्टीज़ ऑरेंज” के रूप में जाना जाता था। हम में से बहुत से लोग इस लोकप्रिय फल के पोषण मूल्य के बारे में नहीं जानते होंगे। सो इस फल को प्रमोट करने हेतु हम इस बार माल्टे काष् सना सलादष् कल्यौ की थाली में परोसेंगे।

माल्टा का सना सलाद पहाड में जाड़ों के दिनों में – धूप सेंकते हुए, घर के आंगन व तिबारियों में खाया जाता है! मूल रूप से, घास काटने गयी महिलाओं के द्वारा गीत गाते वक्त यह सलाद बनाया और खाया जाता है! माल्टे से बनाया गया यह व्यंजन जिसे माल्टा सानना भी कहते हैं। सर्दी के मौसम में सुनहरी धूप में बैठे कर इसे बनाने और खाने का मज़ा ही कुछ और है, जिसका आनंद केवल पहाड़ के लोगों को ही मालूम है।
इसको बनाने के लिए निम्न सामग्री प्रयुक्त होती है! माल्टा, गुड, भांग का नमक, दही, मूली, गाजर, हरी मिर्च, शहद, केला, अमरुद, अनार आदि मौसमी फल। इसके सेवन से एक ओर भूख बढ़ती है तो वहीँ, के विकारों से निजात मिलता है। आँखों की रोशनी बढ़ने के साथ ही घुटनों का दर्द भी कम होता है।

माल्टे का मोहितो (उर्फ़ – शरबत)
11 डेजर्ट-, लाप्सी) उर्फ़ लांगडू- लाप्सी, पहाड़ियों का एक लुप्तप्राय मीठा पकवान है, जिसे गेहूं के मोटे भूने हुए आटे, गुंड़ गाय के घी व अखरोट की गिरी, भैंस के ताजे दूध से तैयार किया जाता है। इस रेसिपी को सहेजने के लिए कल्यो भी इसे आपके लिए परौसेगा। इसे लिक्विड के तौर पर कांसे की कटोरियों में सुड़का जाता है।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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