भाग-दो : आठ साल रुद्रपुर बदहाल
- वरिष्ठ पत्रकार रुपेश कुमार सिंह
– चर्चित शायर इरतज़ा निशात ने एक शेर कहा था-
‘‘कुर्सी है…तुम्हारा यह जनाजा तो नहीं है ?
कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते?’’
रुद्रपुर क्षेत्र की जनता विधायक राज कुमार ठुकराल से यही सवाल कर रही है। आठ साल में शहर की एक भी मुख्य सड़क न बना पाने के बावजूद आप विधायक हैं, क्यों? जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सकते तो कुर्सी पर बने रहने के क्या मायने? विधानसभा क्षेत्र की खस्ताहाल सड़कों के कारण क्षेत्र की जनता आपसे खासा ख़फा है। बरसों से लोग टूटी-फूटी सड़कों पर अपना माथा फोड़ रहे हैं और आप हैं कि उन्हें अगली बार-अगली बार का झुनझुना थमा रहे हैं।
आठ साल में रुद्रपुर शहर की एक भी मुख्य सड़क का न बनना आपकी अकर्मण्यता और राजनीतिक कमजोरी को दर्शाता है। जनता का सवाल है, ‘‘विधायक रहते आप सड़क नहीं बना सकते तो त्यागपत्र देकर आम जनता में शामिल क्यों नहीं हो जाते?’’ हकीकत तो यह है कि जनता का भीतरी आक्रोश आपके राजनीतिक कैरियर पर बट्टा लगा सकता है। सड़क के गढ्डे कहीं आपकी राजनीति के लिए खाई न बन जाएं ठुकराल साहब! जनता परेशान है। हलकान है। लेकिन न तो आप सुन रहे हैं और न ही प्रदेश के मुख्यमंत्री तक रुद्रपुरवासियों की आवाज पहुँच रही है।
‘‘बहनों-भाइयों! चुनाव जीतते ही आपका सेवक राज कुमार ठुकराल क्षेत्र में विकास की गंगा बहा देगा।’’
‘‘अपने बेटे को एक बार और मजबूत बनाओ, मैं सड़कों का जाल बिछा कर एक-एक वोट का कर्ज उतारूँगा।’’
‘‘दुर्गा माँ की कसम खाता हूँ। ट्राँजिट कैम्प मन्दिर के स्टेज पर सड़क का निर्माण करा कर ही कदम रखूँगा।’’
‘‘रुद्रपुर के इतिहास में जो विकास कार्य नहीं हुए मैं वो इतिहास रचूँगा।’’
सीना चौड़ा करके माइक पर चिल्ला-चिल्ला कर इस तरह के अनेक बयान आपके ही हैं ठुकराल साहब? आपके मतदाताओं ने ही मुझे बताया। जनता भूलती नहीं है। लोकतंत्र में जनता निर्णायक है। यही जनता फर्श से अर्श पर ले जाती है और नागवार होने पर वहीं पटक देती है। लिंक रोडों पर कई जगह आपने सीसी मार्ग और टाइल्स का काम कराया है, लेकिन वो ऊँठ के मुँह में जीरा है।
जनता को अभी आपसे उम्मीद है। डेढ़ साल शेष है। लग जाइए एक तरफ से सड़क बनवाने में। यह आम जनता का आग्रह भी है और आपको चैलेंज भी। विधायक जी करेंगे स्वीकार? दोस्तों रोविंग रिपोर्टिंग के दूसरे भाग में हम रुद्रपुर शहर की मुख्य सड़कों का आँखों देखा हाल आपके सामने बयां कर रहे हैं-
तमतमाता सूरज सिर पर है। घड़ी की सुई साढे बारह बजा रही है। मैंने अपनी कार न्यूज प्रिंट आॅफिस के सामने टेक दी है। यहाँ से प्रदीप मण्डल ने मुझे अपनी मोटर साइकिल पर लाद लिया है। दन-दनादन जियो की स्पीड में प्रदीप छोटे-छोटे गली-मोहल्ले से ट्राँजिट कैम्प की ओर चल पड़ा है। अचानक बड़े गढ्डे में फँसते ही मोटर साइकिल के शाॅकर ने मुझे औंधे मुँह उछाल दिया।
‘‘भाई क्यों ऐसी तैसी करा रहा है मेरी भी और अपनी गाड़ी की भी?’’ मैंने व्यंग्य करते हुए प्रदीप से धीरे चलने की प्रार्थना की। ‘‘यह तो अभी शुरूआत है। आगे-आगे देखो होता है क्या? गढ्डों का दर्द नहीं झेलोगे तो एहसास कैसे होगा? फिर लिखोगे कैसे?’’ प्रदीप ने दो टूक कहा। ट्राँजिट कैम्प शमशान घाट से बाजार तक आने की रोड पूरी तरह से टूटी हुई है। बरसात का पानी लबालब भरा हुआ है। दोनों ओर दुकानदार अपने-अपने ग्राहकों से निपट रहे हैं। मक्खियां भिनभिना रही हैं। सूअरों का झुंड बीच सड़क पर कीचड़ की बीच लोट मार रहा है। दोनों ओर की लिंक रोड़ ध्वस्त हैं। महिलाएं साड़ी घुटनों तक उठाकर चल रही हैं। प्रदीप जैसे-तैसे करके मोटर साईकिल निकाल ही लाया। कई बार मुझे लगा कि पानी में अब गिरे-तब गिरे।
लोगों ने बताया कि शिव नगर से लेकर ट्राँजिट कैम्प तक लगभग अस्सी हजार की आबादी है। शिवनगर, राजा काॅलोनी, पटेल नगर, कृष्णा काॅलोनी, नारायण काॅलोनी, सुभाष काॅलोनी सहित उस क्षेत्र की तकरीबन तीस सड़कें बदहाल हैं। मुख्य सड़क की तो पूछो ही मत। एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचने में नानी याद आ जाएगी। सघन आवाजाही होने के बावजूद इन सड़कों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।
निगम की ओर कुछ छोटी-छोटी सड़कों का काम चल रहा है। नाली बन रही हैं, लेकिन गुणवत्ता देखने वाला कोई नहीं है। स्थानीय लोगों ने बताया कि मेयर रामपाल ने पहल की है अब देखो मेहनत कितनी फलती-फूलती है। लोगों ने बताया कि कैम्प की मुख्य सड़क पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तिलक राज बेहड़ के मंत्री रहते 2004-05 में बनी थी। उसके बाद 2007-08 में सिडकुल ने इस सड़क का निर्माण कराया। राज कुमार ठुकराल ने एक बार गड्ढे भराने का काम कराया है। अब स्थिति चलने लायक नहीं है।
आलोक राय ने बताया, ‘‘कैम्प की सड़क का मसला हाईकोर्ट में भी चल रहा है इसलिए देरी हो रही है। इस सड़क को लेकर लोगों में नाराजगी तो बहुत है। जिस कारण विधायक ठुकराल की काफी किरकिरी हुई है। उनका ग्राफ गिरा है। लेकिन अब उम्मीद है 2022 के चुनाव से पहले सड़क बन जाएगी।’’
बंगाली यूथ फेडरेशन के अध्यक्ष सुबीर दास ने बताया, ‘‘आठ साल में विधायक राज कुमार तीन बार सड़क के लिए नारियल फोड़ चुके हैं, लेकिन काम अंजाम तक नहीं पहुँचा। समझ नहीं आता कि बंगाली इलाके की इतनी उपेक्षा आखिर क्यों? जबकि सबसे ज्यादा वोट ठुकराल साहब को कैम्प से ही मिले हैं।’’
दोपहर के लगभग दो बज चुके हैं। कैम्प में एक दर्जन से ज्यादा लोगों से सड़क के बाबत बातचीत की। इस गर्मी में अब मोटर साईकिल से चल पाना संभव न था। प्रदीप कार चलाने लगे और में बैठकर सड़कों का जायजा लेने लगा। सिविल लाइन से जनता इंटर काॅलेज, घास मण्डी होते हुए हम इन्द्र काॅलोनी पहुँचे। तकरीबन सात सौ छोटे-बड़े गड्ढों का सामना करना पड़ा। इन्द्र काॅलोनी गली नम्बर एक में संतोष रानी नाम की एक माता जी सड़क किनारे बैठी थीं। पास ही बच्चे खेल रहे थे। मैं उनके सामने बैठ गया।
बोलीं, ‘‘15 साल से सड़क नहीं बनी है। पार्षद से लेकर विधायक तक सबको बताया है, पर कोई सुनता ही नहीं है। कई बार पैमाईश तो हुई है, लेकिन भगवान जाने आगे क्या हुआ। मुझे नहीं लगता मेरे जीते जी सड़क बनेगी।’’ माता जी ने नेताओं को नाॅन स्टाप कोसना शुरू कर दिया। बच्चे भी हमारी बातें सुन रहे थे। बोले, ‘‘खेलने का कोई मैदान तो है नहीं, इसलिए हम सब सड़क पर खेलते हैं। गड्ढों में गिऱकर चोट लगती रहती है। बाजार से टुकटुक वाले भी इस रोड़ पर आना नहीं चाहते हैं। अंकल हमारी सड़क तो बनवा दो।’’ मैं निरुत्तर था।
आदर्श काॅलोनी की मुख्य सड़कें संतोषजनक हैं। कुछ नयी बनी हुई दिख रही हैं। भीतर गाड़ी जा नहीं सकती थी, इसलिए हमने लोगों से बात की, उन्होंने बताया, ‘‘अन्दर की सड़कें कुछ ठीक हैं, लेकिन ज्यादातर खराब हैं। सिंह काॅलोनी, रूद्रा रोड और गैस गोदाम की सड़क तो बिल्कुल खत्म हैं। रम्पुरा और भदईपुरा विधायक ठुकराल जी के गढ़ हैं। लेकिन यहाँ भी सभी सड़क दुरूस्त नहीं हैं। टाइल्स सड़क बीच-बीच में से उखड़ी हुई हैं। तमाम सड़कों की मरम्मत और पुनर्निर्माण की जरूरत है।
मुख्य बाजार के हालात तो बहुत दयनीय हैं। व्यापारियों ने बताया कि 2013 के बाद यहाँ कोई सड़क नहीं बनी है। बेहड़ जी के प्रयास से कांग्रेस शासन में ही सड़क का निर्माण हुआ था। विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री रहते तिलक राज बेहड़ ने शहर के भीतर दस किमी सड़क बनवायी थी। इसके बाद मुख्य बाजार में किसी भी सड़क का निर्माण नहीं हुआ। अग्रसेन चौक से बाटा चौक तक, गाँधी आश्रम रोड, दुर्गामन्दिर गली, बाठला मेडिकल गली, सनातन इंटर काॅलेज गली, इलाहबाद बैंक की गली, सुविधा होटल से गल्ला मण्डी तक, सब्जी मण्डी, गोलमार्केट, गाँधी काॅलोनी, सीर गोटिया में हालात अच्छे नहीं हैं। कहीं-कहीं तो सड़क है ही नहीं। व्यापारियों ने बताया कि कई बार विधायक और मुख्यमंत्री तक को ज्ञापन दिया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब तो लाॅकडाउन चल रहा है। आगे एक साल तक कुछ हो पाएगा, लगता नहीं है। सड़क क्षतिग्रस्त होने से व्यापारियों और उपभोक्ताओं को खासी परेशानी उठानी पड़ती है।
चार बज चुके हैं। आवास विकास की ओर रुख किया। शक्ति विहार, जगतपुरा, अटरिया रोड भी खराब हैं। पक्का खेड़ा, कच्चा खेड़ा, संजय नगर, राजीव नगर की सड़कों पर चलना भी कम जोखिम भरा नहीं है। काॅमन बात यह है कि लोग अब आशा छोड़ चुके हैं। कोरोना के चलते उन्हें नहीं लगता कि अब उनकी सड़कों की दशा सुधरेगी। विधायक, सांसद, निकाय से लोग खुश नहीं हैं। हर तबके में आक्रोश है। सड़क एक जरूरी माध्यम है। वर्षों से नयी सड़क की आशा लिए बैठे लोग अब हताश हैं। नेताओं ने भी कोरोना का बहाना बना कर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली है।
पाँच सौ रुपये का तेल फुर्र हो चुका है। सूरज ढलान पर है। शाम चढ़ रही है। प्रदीप ने गाड़ी घर की ओर ले ली। थक के चूर हूँ। गर्मी ने शरीर के भीतर पानी घटा दिया है। प्रदीप की पत्नी ने माछ-भात खिलाया। पान खाकर मैं भी दिनेशपुर निकल लिया हूँ। रास्ते में एक भाजपा नेता का फोन आया। बोले, ‘‘आप सिर्फ ठुकराल जी को ही क्यों टाॅरगेट कर रहे हो?’’ मैंने जवाब दिया, ‘‘मैं सड़कों की असलियत सामने रख रहा हूँ। इन सड़कों से भाजपा-कांग्रेस क्या, हर पार्टी के समर्थक और वोटर को दिक्कत होती है। बारी-बारी आस-पास के विधानसभा क्षेत्रों की सड़क का जायजा भी लिया जाएगा।’’
.जनता के द्वार खुशियों की सुगम सड़क कब पहुँचेगी, यह यक्ष प्रश्न है।
.जवाब देगा कौन? क्या कोई उत्तर देगा ? क्या कोई शेष है उत्तर देने को ? लिया जाएगा।’
.जनता के द्वार खुशियों की सुगम सड़क कब पहुँचेगी, यह यक्ष प्रश्न है।
.जवाब देगा कौन? क्या कोई उत्तर देगा ? क्या कोई शेष है उत्तर देने को ?
(नोट : लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। अपनी बेबाक लेखनी के लिए जाने जाते हैं।)