Thursday , 25 September 2025
Breaking News

देख तमाशा कुर्सी का : ‘जुझारू और कर्मठ’ से बने ‘बिकाऊ’, ‘आपका बेटा-आपका भाई’ लाखों में नीलाम!

  • प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’

आपके कानों में अब भी गूंजते होंगे वो नारे “आपका बेटा,” “आपका भाई,” “जुझारू और कर्मठ।” आपके घरों के पास वो चुनावी पोस्टर अभी भी लटके होंगे, जिन पर मुस्कुराते हुए चेहरों ने जनता की सेवा का वादा किया था। लेकिन, सवाल यह है कि चुनाव जीतने के बाद ये ‘जुझारू-कर्मठ’ प्रजाति कहां गुम हो गई है?

दरअसल, वे आपको दिया हुआ वोट लाखों और करोड़ों में नीलाम करने गए हैं। पहले तो उन्होंने आपको मुर्गा, बकरा, और दारू देकर ‘खरीदा’ और अब आपकी उम्मीदों और विश्वास को ‘बेच’ रहे हैं। तो बताइए, क्या आपका वोट बिका या नहीं? उत्तरकाशी के धराली में लोग मलबे में दबे हैं। प्रदेश का हर कोना बारिश और बाढ़ से त्रस्त है। जनता अपने ‘सुख-दुख के साथी’ की तलाश में है, लेकिन ये ‘साथी’ कहां हैं?

उनकी खोज में आपको Google Maps का सहारा लेना पड़ेगा, क्योंकि ये क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के माननीय तो ‘लुप्तप्राय प्रजाति’ बन चुके हैं। वे अपनी खुद की ‘मंडी’ में भाव तय कर रहे हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष और क्षेत्र पंचायत प्रमुखों के रेट तय हो रहे हैं। कौन कितने में बिकेगा, किसकी बोली कहां पहुंचेगी यही असली बहस है।

जनता को क्या? जनता तो बस वोट देने का ‘औजार’ है। चुनाव के बाद जनता को तो फूलों का हार तक चढ़ाने का मौका नहीं मिला, दावत की तो बात ही क्या! अब ये प्रतिनिधि शायद उसी दारू से अपनी थकान उतार रहे हैं जो उन्होंने आपको पिलाई थी।

जनता ने तो सिर्फ इस उम्मीद में उन्हें वोट दिया था कि वे संकट में काम आएंगे। लेकिन चुने जाने के बाद, इन प्रतिनिधियों को जनता की सेवा से ज़्यादा अपनी जेबें भरने की चिंता है। उन्हें तो बस कुर्सी चाहिए, चाहे वह खरीदकर मिले या बिककर। जनता मरे या बचे, उन्हें तो बस अपनी तिजोरियां भरनी हैं।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.
error: Content is protected !!