आदरणीय प्रधानमंत्री जी/ गृह मंत्री जी,
पुनः निवेदन है कि निर्णय लेने से पहले विचार करें कि क्या निर्णय लेना है,उसके सब पहलुओं पर सोच-विचार कर लें. सिर्फ सनसनी की प्रत्याशा में फैसले न लें. और निर्णय ले लिया तो उसे घड़ी-घड़ी बदलें नहीं.सोच कर निर्णय लें,निर्णय को पूरे देश में पहुंचाने के बाद न सोचें कि यह ठीक हुआ या नहीं हुआ,चलो इसे वापस लेकर देखते हैं,कैसा हुआ !
29 अप्रैल को केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला की ओर से पत्र जारी करके कहा गया कि लॉकडाउन के चलते विभिन्न जगहों पर फंसे हुए प्रवासी मजदूरों,तीर्थ यात्रियों,पर्यटकों और छात्रों को उनके गंतव्यों तक जाने की अनुमति होगी. इस पत्र में एक असंभव किस्म की शर्त जोड़ दी गयी कि विभिन्न राज्यों को अपने लोगों को बसों द्वारा ही ले जाना होगा और बसें केवल 50 प्रतिशत ही भरी जा सकेंगे.
दो दिन बाद इस आदेश में परिवर्तन करते हुए 01 मई को फिर केंद्रीय गृह सचिव द्वारा आदेश जारी किया गया कि ट्रेनें भी चलायी जाएंगी. इसके बाद खाली पेट और खाली जेब वालों से टिकट का पैसा वसूलने का सिलसिला भी शुरू हो गया.
पुनः दो दिन बाद 03 मई को केंद्रीय गृह सचिव ने राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को आदेश जारी कर दिया कि केवल ऐसे ही लोगों को वापस पहुंचाया जाएगा जो लॉक डाउन से पहले अपने घरों को निकल चुके थे और लॉकडाउन की बन्दिशों के चलते रास्ते में फंसे हुए हैं. आदेश में कहा गया है कि अपने काम की जगह पर रह रहे लोगों को उनके मूल निवासों को वापस नहीं भेजा जाएगा.
ऐसे ढेरों लोग हैं जो कम-धंधा ठप होने के चलते अपने काम की जगहों पर ही फंसे हुए हैं. जैसे होटल इंडस्ट्री में काम करने वाले कामगार हैं. होटल बंद हैं तो ये फाकाकशी की नौबत तक पहुँच गए हैं. अब केंद्रीय गृह मंत्रालय के नए आदेश से इन्हें फाका जारी रखते हुए जीने का फरमान हो गया है. घर जाने की उम्मीद धूमिल कर दी गयी है.
इसका दूसरा पहलू यह भी है कि कौन रास्ते में फंसा हुआ है और कौन नहीं,यह तय करने का हक प्रशासन को होगा तो कोई आश्चर्य नहीं कि इस प्रक्रिया में भी भ्रष्टाचार के किस्से सुनाई देने लगें. पर गृह विभाग द्वारा हर दो दिन बाद आदेश बदलने की ये क्या “क्रोनोलॉजी” है, “मान्यवर”?
माना कि लॉकडाउन है पर बुद्धि थोड़े लॉक कर लेनी है. चार लाइन लिखो और सुधार के लिए छह पन्ने फाड़ कर नया आदेश निकालो,यह शासन का कौन सा तरीका है ? सरकार का काम लोगों को आपदा की मार से उबारना है. लेकिन उसकी सोच-समझ,बुद्धिमत्ता स्वयं ही आपदा की चपेट में आ जाये तो फिर लोग किसके भरोसे रहें ! लोगों के सब्र का इतना इम्तिहान न लो सरकार !