Saturday , 2 August 2025
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पहाड़ पर कोरोना का खतरा, क्या इन सवालों के जवाब देगी त्रिवेंद्र सरकार ?

पहाड़ वालों संभलकर रहना, कोरोना आ रहा है…ये वक्त संवेदनशीलता का है। गंभीरता का और सतर्क रहने का है। सवाल यह है कि क्या सरकार उतनी सतर्क, संवेदनशील और गंभीर है या नहीं ? उत्तरकाशी जिले में कोरोना का पहला मामला सामने आया है। ये कोई हल्के में लिए जाने वाली बात नहीं है। बहुत गंभीर और डरावनी बात है। गुजरात के सूरत से डुंडा पहुंचे युवकों में से एक युवक कोरोना पाॅजिटिव पाया गया है। सरकार ऐसे ही कई युवकों को खुद ही शहरों से लाकर गांव में छोड़ चुकी है। यही चिंता करने वाली बात भी है।

सवाल-दर-सवाल

सरकार दूसरे राज्यों से लाए जा रहे लोगों को सीधे गांव पहुंचा रही है। ग्राम प्रधानों को कहा गया है कि उनको क्वारंटीन करने की व्यव्सथा की जाए। नौकरशाह भले ही उत्तराखंड से परिचित ना हों, लेकिन सीएम और मैदानी हो चले विधायकों को इस बारे में सोचाना चाहिए था कि क्या ऐसा 100 प्रतिशत संभव है या नहीं ? क्या गांव में वास्तव में इतनी व्यवस्था है कि लोगों को वहीं क्वारंटीन किया जाए ? क्या मेडिकल इमरजेंसी की जरूरत पड़ने पर सरकार उनको समय रहते अस्पताल तक पहुंचा पाएगी ?

संस्थागत क्वारंटाइन क्यों नहीं ?

सवाल ये भी है कि दूसरे राज्यों से लाए जा रहे लोगों को संस्थागत क्वारंटाइन करने की बजाए होम क्वारंटाइन क्यों किया जा रहा है ? क्या बाहर से आने वालों की कोरोना जांच स्क्रीनिंग से ही पूरी हो जाएगी ? पहाड़ के गांवों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों में होम क्वरंटाइन किए गए लोगों पर नजर रखना आसान होगा ? क्या इससे सरकार ने सीधेतौर पर अब तक सुरक्षित ग्रामिणों को खतरे में नहीं डाल दिया ?

सरकार का दावा

सरकार का दावा है कि 23 हजार से ज्यादा लोगों को वापस लाया जा चुका है। वापस आने के लिए 1 लाख 70 हजार लोगों ने आवेदन किया है। क्या सरकार सभी के वापस आने के बाद लोगों को क्वारंटीन करने और जांच की व्यवस्था कर पाएगी ? सरकार का दावा है कि सबकी जांच कर ही वापस लाया जा रहा है। पहुंचने के बाद फिर से स्क्रीनिंग की जा रही है। सवाल ये है कि क्या इस बात को सभी लोग नहीं जानते कि स्क्रीनिंग से केवल बुखार या शरीर का तापमान नापा जाता है ? क्या सरकार को यह जानकारी नहीं है कि कोरोना के ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जिनमें एक भी लक्षण नहीं था, फिर ऐसी लापरवाही क्यों ?

डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन

डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन कहती है कि कई लोगों में कोरोना के लक्षण बहुत देर में नजर आते हैं। उत्तराखंड में भी ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, फिर सरकार इतनी लापरवाह क्यों ? सरकार भी जानती है कि दूसरे शहरों से आने वाले, खासकर उन शहरों से जहां कोरोना के मामले बहुत ज्यादा हैं। ऐसे लोगों में संक्रमण का खतरा भी बहुत ज्यादा है, फिर भी गंभीरता क्यों नहीं ? कई ग्राम पंचायतें ऐसी हैं, जो दो-तीन गांवों को मिलकर बनी हैं।ऐसे में एक ग्राम प्रधान कैसे दो-तीन गांवों की निगरानी कर पाएगा ?

पूरे गावं पर खतरा

सवाल यह भी है कि अगर कोई कोरोना पाॅजिटिव गांव तक पहुंचता है और अपने परिवार के साथ रहता है, तो वो केवल अपने परिवार को ही नहीं, गांव वालों को भी खतरे में डाल सकता है। सरकार जितने हल्के में पूरे मामले को ले रही है। उससे खतरा और बढ़ रहा है। मामले और आंकड़े अभी जितने कम हैं, उनको बढ़ने और बदलने में देर नहीं लगेगी। सरकार को देर होने से पहले इस बात को गंभीरता से लेना चाहिए।

…प्रदीप रावत (रवांल्टा)

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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