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उत्तराखंड : गाय के गोबर से बने बिजनेसमैन, नौकरी छोड़ लौटे पहाड़, सालाना होती है इतनी कमाई

  • एक्सक्लूसिव

गाय को माता कहा गया है। यही गौ माता अब लोगों के बोझ बन गई है। लोग गौपालन को छोड़ते जा रहे हैं। गाय केवल दूध का जरिया नहीं है, जो लोग गाय को केवल एक पशु समझते हैं और दूध देना बंद होने के बाद गाय को छोड़ देते हैं। उनको यह पता नहीं है कि गाय का गोबर और गौमूत्र भी किसी की जिंदगी बदल सकता है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि गाय के गोबर ने एक इंजीनियर को बिजनेसमैन बना दिया। ऐसा बिजनेसमैन, जो सालाना करीब 12 से 14 लाख रुपये कमाते हैं। आज उनको देशभर में पहचान मिली है। यह पहचान केवल गाय के गोबर से ही मिली है।

आप सोच रहे होंगे कि गाय के गोबर से क्या कमाई हो सकती है? लेकिन, दिल्ली में इंजीनियर की नौकरी छोड़कर अपने गांव लौटे राकेश रावत की सफलता की कहानी आपके इस सवाल का जवाब है। राकेश के साथी सवेंद्र और शीशपाल रावत भी इस काम में उनके बराबर के सहयोगी हैं।

राकेश रावत और उनके साथियों ने पौड़ी जिले के भाकंड, नरसिया गांव (संगलाकोटी) में गौ पालन शुरू किया। गौ पालन से जहां उनको दूध, घी मिलता है। वहीं, गाय का गोबर और गौ मूत्र भी उनके रोजगार का जरिया बना है। इतना ही नहीं गांव में जिस घास को हम बेकार समझते हैं। उस घाय की खुशूब आज मंदिरों और घरों में महका रही है।

गाय के गोबर से बनी धूप को जहां देशभर में पहचान मिली है, बाजार मिला है। वहीं, राजधानी देहरादून में समाजसेवी कवींद्र इष्टवाल अपने आउटलेट के जरिए लोगों को गाय के गोबर से बनी धूप के बारे में लगातार जागरूक कर रहे हैं। वो लोगों को गाय के गोबर से बनी धूप का प्रचार करते हैं। लोगों को प्रेरित करते हैं कि हमें अपने पहाड़ में बनी गाय के गोबर की शुद्ध धूप उपयोग में लानी चाहिए। उनका कहना है कि हमारे पहाड़ को जो भी व्यक्ति अच्छा काम करता है। मेरा प्रयास रहता है कि उनके नेक काम में उनको भागीगार बन सकूं। उनको सहयोग कर सकूं।

उन्होंने 2017 गाय के गोबर से धूप बनाने का काम शुरू किया था। तब से लेकर आज तक लगाता उनकी धूप की डिमांड बढ़ रही है। लगातार देशभर के मंदिरों में धूप का मांग आ रही है। देवभूमि दर्शन नाम से उनकी गाय के गोबर से बनी धूप को देशभर में पहचान मिल चुकी है। उनकी धूप दो-तीन तरह की खुशूब में आती है।

गाय के गोबर से बनी धूप में किसी केमिकल की खुशबू का प्रयोग नहीं किया जाता है। बल्कि, कुंजा और सुमैया घास की जड़ का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा जटामासी और गूगल जैसे औषधीय गुणों वाली जड़ियों को भी सुगंध के लिए प्रयोग किया जा रहा है।

उनकी धूप ना केवल उत्तराखंड में बड़े ब्रांडों को विकल्प बन रही है। बल्कि देश के बड़े-बड़े और प्रसिद्ध मंदिरों में भी उपयोग में लाया जा रहा है। वर्तमान में उकनी धूप की मांग वृंदावन, बद्रीनाथ, केदारनाथ, दिल्ली एनसीआर समेत बालाजी और खाटूश्याम जैसे प्रसिद्ध मंदिरों में भी भगवान की पूजा के लिए उनकी धूप का उपयोग किया जा रहा है।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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