Wednesday , 18 June 2025
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उत्तराखंड : क्या आप जानते हैं, कौन थे भक्त दर्शन…? आज के ही दिन हुआ थ निधन

  • मुजीव नैथानी

आज ही के दिन 1991 में स्वतंत्रता सेनानी, 1951 से 1971 तक गढ़वाल संसदीय क्षेत्र से लगातार सांसद, केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री, कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति भक्त दर्शन, हिंदी संस्थान के अध्यक्ष के पदों को सुशोभित करने वाले भक्त दर्शन जी का देहरादून में किराये के मकान में स्वर्गवास हो गया था। बतजुर्बे हम उन्हें याद नहीं करते क्योंकि हमको दीन दयाल, गोडसे ज्यादा प्रेरणास्पद लगते हैं , हमारे गढ़वाल के स्वतंत्रता सेनानी ज्यादा नजदीक थे देश की स्वतंत्रता के आंदोलन की धारा में । भक्तदर्शन जी जो शादी की रात गायब हो छह महीने ससुराल (जेल) काट आये।

एक बार उनकी गिरफ्तारी के लिए दो सिपाही लैंसडाउन जा रहे थे, वो भक्तदर्शन जी को पहचानते नहीं थे, किस्मत की बात भक्तदर्शन जी भी किसी काम के सिलसिले में दुगड़डा आए थे, सिपाहियों से उनकी मुलाकात हो गई। उन्होंने भक्तदर्शन जी से पूछा कि भक्तदर्शन कहां मिलेंगे। भक्तदर्शन जी को अपने बालक के जयहरीखाल में स्थित लैंसडौन इंटर कॉलेज में जाना था , उन्होंने सिपाहियों से कहा कि ठीक ढाई बजे तुम्हें कालेश्वर प्रेस लैंसडौन में मिल जायेंगे। दोनों सिपाही लैंसडाउन के लिए चल दिए। ठीक 2:30 बजे कालेश्वर प्रेस में उन्हें भक्त दर्शन जी आते हुए दिखे और भक्त दर्शन जी ने उनको बोला कि मैं ही भक्त दर्शन हूं , उस वक्त मुझे बालक के एडमिशन के संबंध में जयहरीखाल जाना था इसलिए आप लोगों को इस वक्त यहां बुलाया।इस पर सिपाहियों को बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने कहा कि जिस देश की आजादी के लिए आप जैसे लोग संघर्ष कर रहे हैं उस देश को आजाद होने से कोई नहीं रोक सकता।

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पहली बार वे 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में स्वयंसेवक के रूप में शामिल हुये । पहली बार 1930 में नमक आंदोलन के दौरान जेल यात्रा की । इसके बाद तो आंदोलन और जेल जाने का सिलसिला जारी रहा । वे 1941, 1942 व 1944, 1947 तक कई बार जेल गये । उन्होंने सामाजिक जीवन में मनसा-वाचा-कर्मणा कोई अंतर नहीं रखा, इसका सबसे बड़ा उदाहरण उनकी शादी है । उनका विवाह 18 फरवरी 1931 को सावित्री जी से हुआ। उनकी शादी में सभी बारातियों ने खादी वस्त्र पहने । कई परंपराओं को दरकिनार करते हुये उन्होंने समाज को नई दिशा देने का काम किया । ना मुकुट धारण किया और न शादी में किसी प्रकार का दहेज स्वीकार किया । शादी के अगले दिन ही वे आजादी के आंदोलन के लिये विभिन्न जगहों पर हो रहे प्रतिकार में शामिल होने के लिए चले गये । पौड़ी के वर्तमान पोखडा विकास खंड के अंतर्गत संगलाकोटी में आंदोलनकारियों के बीच ओजस्वी भाषण देने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया ।

राष्ट्रीय आंदोलन को गति देने के लिये उन्होंने एक पत्रकार और संपादक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । उस समय राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत ‘गढ़देश’ के सम्पादकीय विभाग में काम करते हुये कई विचारोत्तेजक लेख लिखे । बाद में गढ़वाल के लैंसडाउन से आजादी की अलख जगाने का मुखपत्र माने जाने वाले ‘कर्मभूमि’ का 1939 से 1949 तक दस वर्ष तक संपादन किया । प्रयाग से प्रकाशित ‘दैनिक भारत’ में काम करते हुये उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान मिली । वे एक प्रतिबद्ध पत्रकार और सुलझे हुये लेखक थे । उनके लेखन में गंभीरता और आम लोगों तक अपनी बात सरलता के साथ पहुंचाने की शैली थी । पाठकों को उनके लेखन और संपादन ने बहुत प्रभावित किया । एक लेखक के रूप में भक्तदर्शन जी ने बहुत महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं और कई पुस्तकों का अनुवाद किया । उनके संपादन में प्रकाशित ‘सुमन स्मृति ग्रंथ’ अमर शहीद श्रीदेव सुमन के व्यक्तित्व और कृतित्व को समझने के लिए बहुत उपयोगी है । दो खंडों में प्रकाशित ‘गढ़वाल की दिवंगत विभूतियां’ गढ़वाल की अपने समय की विभूतियों को जानने का अद्भुत ग्रंथ है । ‘कलाविद मुकुन्दीलाल बैरिस्टर’,’अमर सिंह रावत एवं उनके आविष्कार’ और ‘स्वामी रामतीर्थ’ पर उन्होंने लिखा । उनके साहित्यिक अवदान को देखते हुये उन्हें डाक्टरेट की उपाधि मिली । 1945 में गढ़वाल में कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक निधि तथा आजाद हिन्द फौज के सैनिकों हेतु निर्मित कोष के संयोजक रहे । उनके प्रयासों से आजाद हिन्द फौज के सैनिकों को भी स्वतंत्रता सेनानियों की तरह पेंशन व अन्य सुविधायें मिलीं ।

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उनकी लोकप्रियता को इस बात से समझा जा सकता है कि वे लगातार चार बार इस सीट से सांसद रहे । सन् 1963 से 1971 तक वे जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री व इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडलों में 1963 से 1971 तक सदस्य रहे । अपने मंत्रिमंडल काल में उन्होंने बहुत ऐतिहासिक काम किये । शिक्षा के क्षेत्र में उनके काम को हमेशा याद रखा जायेगा । केन्द्रीय शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने केन्द्रीय विद्यालयों की स्थापना करवायी । केन्द्रीय विद्यालय संगठन के पहले अध्यक्ष रहे । त्रिभाषी फार्मूला को महत्व देकर उन्होंने संगठन को प्रभावशाली बनाया । उनका हिन्दी के विकास के लिये केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की स्थापना की । वे हिन्दी के अनन्य सेवी थे । दक्षिण भारत व पूर्वोत्तर में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में उनका अद्वितीय योगदान रहा । वे संसद में हमेशा हिन्दी में बोलते थे । प्रश्नों का उत्तर भी हिन्दी में ही देते थे । एक बार नेहरू जी ने उन्हें टोका तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक कह दिया,’मैं आपके आदेश का जरूर पालन करता, परन्तु मुझे हिन्दी में बोलना उतना ही अच्छा लगता है जितना अन्य विद्वानों को अंग्रेजी में ।’ जरा खँगालिये अपने परिवार के सम्बन्धों को देश के स्वतंत्रता सेनानियों के साथ उस वक्त के नेताओं के साथ और पता कीजिये उनका चरित्र ,,,राजनैतिक विज्ञापन की दुनिया से बाहर आने के लिए यह बेहद जरूरी हैं।

2:30 बजे कालेश्वर प्रेस में उन्हें भक्त दर्शन जी आते हुए दिखे और भक्त दर्शन जी ने उनको बोला कि मैं ही भक्त दर्शन हूं , उस वक्त मुझे बालक के एडमिशन के संबंध में जयहरीखाल जाना था इसलिए आप लोगों को इस वक्त यहां बुलाया।इस पर सिपाहियों को बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने कहा कि जिस देश की आजादी के लिए आप जैसे लोग संघर्ष कर रहे हैं उस देश को आजाद होने से कोई नहीं रोक सकता। पहली बार वे 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में स्वयंसेवक के रूप में शामिल हुये । पहली बार 1930 में नमक आंदोलन के दौरान जेल यात्रा की । इसके बाद तो आंदोलन और जेल जाने का सिलसिला जारी रहा । वे 1941, 1942 व 1944, 1947 तक कई बार जेल गये ।

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उन्होंने सामाजिक जीवन में मनसा-वाचा-कर्मणा कोई अंतर नहीं रखा, इसका सबसे बड़ा उदाहरण उनकी शादी है । उनका विवाह 18 फरवरी 1931 को सावित्री जी से हुआ। उनकी शादी में सभी बारातियों ने खादी वस्त्र पहने । कई परंपराओं को दरकिनार करते हुये उन्होंने समाज को नई दिशा देने का काम किया । ना मुकुट धारण किया और न शादी में किसी प्रकार का दहेज स्वीकार किया । शादी के अगले दिन ही वे आजादी के आंदोलन के लिये विभिन्न जगहों पर हो रहे प्रतिकार में शामिल होने के लिए चले गये । पौड़ी के वर्तमान पोखडा विकास खंड के अंतर्गत संगलाकोटी में आंदोलनकारियों के बीच ओजस्वी भाषण देने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया ।

(नोट: लेखक एक सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं और उत्तराखंड विकास पार्टी के अध्यक्ष हैं।)

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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