Tuesday , 17 June 2025
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एक्सक्लूसिव : 20 साल का उत्तराखंड : जनता निराश, नेताओं की कोठी, बंगलों और बैंक बैलेंस का विकास

-उत्तराखंड को बने 20 साल पूरे.

-21वें साल में किया प्रवेश.

-इन 20 सालों में कहां पहुंचा उत्तराखंड ?

 

…प्रदीप रावत (रवांल्टा)

उत्तराखंड को बने 20 साल हो गए। 21वें साल में कदम रखते हुए यह सवाल बाहें फैलाए वेलकम के लिए तैयार है कि राज्य ने पिछले 20 सालों में क्या हासिल किया ? क्या हम कह सकते हैं कि उत्तराखंड आत्मनिर्भर हो गया है ? क्या उत्तराखंड वास्तव में तरक्की कर राह पर है ?

 

जैसा हमें दिखाया जा रहा

जैसा आप अखबारों और टीवी पर बैकग्राउंड से आती खूबसूरत और भारी आवाजों में हमें सुनाई और केवल अच्छी चित्र दिखाए जा रहे हैं। राज्य हर साल के साथ उम्र के पड़ाव को पार कर जवां नहीं हो रहा, बल्कि बूढ़ा होता जा रहा है। विकास के नाम पर गिनाने के लिए तो बहुत कुछ है, लेकिन धरातल आज भी सूना है।

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स्थिति आज भी बदहाल

राज्य रोजगार, शिक्षा, सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य के मसलों को ध्यान में रखकर बना था। राज्य की अवधारणा पहाड़ का विकास था। लेकिन, हुआ क्या ? शहर पहले भी डेवलेप हो रहे थे। आज भी वही केंद्र में हैं। गांव के नाम पर आज भी बस बातें हो रही हैं। गांव पहले भी पिछड़े थे, अब और पिछड़ते जा रहे हैं। विकास के केंद्र में गांव नहीं। आज भी शहर हैं। गांव कब केंद्र में आएंगे, ये सवाल हर किसीके मन में है ? लेकिन, स्थिति आज भी बदहाल है।

उत्तराखंड

 

बुनियादी चीजों के लिए पलायन

राज्य में पलायन आयोग बना। ये बात अलग है कि वो खुद ही पलायन का शिकार हो गया है। लेकिन, आयोग ने जो रिपोर्ट पेश की थी, उसकी मानें तो सरकारी आंकड़ों में विकसित, उत्तन, उत्कृष्ट और विकास की पटरी पर 100 की स्पीड से दौड़ते उत्तराखंड के 3 हजार 946 गांवों से 1 लाख 18 हजार 981 लोग हमेशा के लिए पलायन कर चुके हैं।

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वापस आने की उम्मीद नहीं

 

इनके वापस आने की उम्मीद नहीं है। जिन समस्याओं के समाधान के लिए राज्य बना था। उन्हीं को हासिल करने जवां होते राज्य के 6 हजार 338 गांवों से 3 लाख 83 हजार 726 लोग अस्थाई रुप से बुनियादी चीजों रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए पलायन कर गए।

उत्तराखंड में पलायन

 

आहुति को आज तक सम्मान नहीं

जिस उत्तराखंड के लिए मां, बहनों और राज्य के बलिदानी वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, उनकी आहुति को आज तक सम्मान नहीं मिल पाया है। गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने के नाम पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राज्य की जनता को लाॅलीपाॅप और झुन-झुने थमा रहे हैं। राज्य आंदोलन के काले अध्याय मुजफ्फर नगर और रामपुर तिराहा, खटीमा, मसूरी, श्रीनगर और कोटद्वार समेत दूसरे कांड के दोषियों को आज तक रात्ता का सत्ता सुख भोगने वाले सत्ताधीश सजा नहीं दिलवा सके।

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42 की शहादत

इन कांडों में 42 आंदोलनकारियों ने अपनी जाने गवांई थी। माता-बहनों की आबरू लूटी गई थी। उनको हिसाब कोई भी सत्ताभोगी देने को तैयार नहीं है। और ना उनके पास इस बात का जवाब है। जनता और राज्य आंदोलनकारियों के जख्मों के घाव आज भी गहरे हैं। उन्हें आज तक कोई नहीं भर पाया। आखिर ऐसा क्या है कि सत्ता सुख भोगने वाले इसके बारे में बात तक नहीं करते ?

गैरसैंण

गलत तस्वीर दिखाते हैं सत्ताधीश

सत्ताधीश राज्य की क्या तस्वीर दिखा रहे हैं और क्या वास्तविकता है…? आंकड़े सच बता देंगे। केंद्रीय श्रम आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की थी। उस रिपोर्ट ने बताया था कि उत्तराखंड में बेरोजगारी दर 14.2 प्रतिशत है। राज्य में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 4 लाख 69 हजार 907 रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं। राज्य के 734 गांव पूरी तरह से खाली हो चुके हैं। 80 गांव ऐसे हैं, जहां से 50 प्रतिशत से अधिक लोग पूरी तरह से पलायन कर चुके हैं।

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रोजगार और शिक्षा के लिए 65 प्रतिशत पलायन

राज्य में 50 प्रतिशत लोगों ने रोजगार और 15 प्रतिशत ने शिक्षा के लिए पलायन किया है। राज्य में प्राथमिक स्वास्थ्य की हालत बेहद खराब है। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं तक नहीं मिल पाती हैं। अकेले अल्मोड़ा के जिले के 71 गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं हैं। अनुमान लगाइये कि राज्यभर में क्या स्थिति होगी। सरकार भले ही डाॅक्टरों के पदों को भरने का दावा करती है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि 2 हजार 7 सौ 35 में से 1 हजार 72 चिकित्साधिकारियों के पद प्रदेश में खाली हैं।

 

बदहाल शिक्षा व्यवस्था

शिक्षा की बदहाली बा अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राज्य में केवल 24.6 प्रतिशत रूकूलों में ही शिक्षक-छात्रों का अनुपात पूरा है। प्रदेश में कर्णधारों से उम्मीद करते हैं कि खेल की दुनिया में राज्य के नाम रोशन करें, लेकिन हकीकत यह है कि राज्य के 31.50 प्रतिशत स्कूलों में आज तक खेल मैदान नहीं हैं।

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बंजर होते खेत

राज्य बनने के बाद खेती का औसत बढ़ान चाहिए था, लेकिन यहां दूसरी चीजों की तरह कृषि क्षेत्र भी लगातार कम होता चला गया। कृषि भूमि से अधिक भूति बंजर होती चली गई। राज्य में 7.41 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती हो रही है। जबकि तीन लाख हेक्टेयर भूमि पूरी तरह बंजर हो गई है।

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पानी भी नहीं पिला सके

सरकार जलस्रोतों के नाम पर भी अक्सर भाषणों में संरक्षण की बातें और दावे करते हैं, लेकिन उत्तराखं डमें 150 जलस्त्रोत सूखे और 500 सूखने की कगार पर हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट की मानें तो राज्य में 12 लाख 45 हजार 472 घरों में पानी का नल नहीं है। 1 लाख 6 हजार 146 बस्तियों में 40 लीटर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति पानी कम मिल रहा है। इतना ही नहीं, कई दूसरे आंकड़े ऐसे हैं, जिनकी सरकारी रिपोर्ट कुछ और सच्चाई कुछ और है।

 

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

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