Friday , 4 July 2025
Breaking News

उत्तराखंड पंचायत चुनाव: चरम पर सियासी तापमान, वोट के लिए साधे जा रहे समीकरण

  • प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’

उत्तराखंड में पंचायत चुनावों की हलचल पूरे शबाब पर है। गांव की चौपालों से लेकर कस्बों की दुकानों तक और खेत-खलिहानों से लेकर सोशल मीडिया तक, हर जगह पंचायत चुनाव ही चर्चा का विषय बने हुए हैं। इस लोकतांत्रिक पर्व में गांव की राजनीति अपने चरम पर है, जहां हर गली और हर घर में प्रत्याशियों की चर्चा हो रही है।

ग्राम प्रधान का चुनाव, रिश्तों की असली परीक्षा
पंचायत चुनावों में सबसे अहम भूमिका ग्राम प्रधान के चुनाव की होती है, जो सीधे-सीधे ग्राम सभा के वोटरों से जुड़ा होता है। यह चुनाव जितना छोटा दिखता है, उतना ही जटिल होता है। गांव में जातीय समीकरण, पारिवारिक रिश्ते, मोहल्लेवार खेमेबाजी और पुराने मनमुटाव, सब कुछ इस चुनाव को मुश्किल और संवेदनशील बना देते हैं।

दरअसल, प्रधान पद का चुनाव सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि रिश्तों की भी कसौटी बन जाता है। यहां हार-जीत का असर केवल राजनीतिक नहीं, सामाजिक और पारिवारिक भी होता है। इसलिए इसे गांव की सबसे कठिन परीक्षा कहा जाए तो गलत नहीं होगा।

क्षेत्र पंचायत से जिला पंचायत तक
ग्राम पंचायत से ऊपर क्षेत्र पंचायत और फिर जिला पंचायत, हर स्तर पर चुनावी सरगर्मी बढ़ती ही जा रही है। क्षेत्र पंचायत, जो 5 से 10 गांवों को समेटती है, वहां भी प्रत्याशी जी-जान से लगे हुए हैं। प्रचार-प्रसार के साथ-साथ गुप्त समीकरण भी तेज़ी से बुने जा रहे हैं।

लेकिन, असली महाभारत जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में देखने को मिल रही है। यह चुनाव इस बार हर राजनीतिक दलों की निगाह में पिछले सालों के अपेक्षा कहीं अधिक है, क्योंकि जिला पंचायत अध्यक्ष बनने की होड़ में कई दिग्गज खुलकर मैदान में उतर चुके हैं। देहरादून से लेकर पिथौरागढ़ तक हर जिले में प्रत्याशी खुद को अध्यक्ष पद का प्रबल दावेदार बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

धनबल, बाहुबल और सट्टा
जिला पंचायत के चुनावों को हमेशा से खर्चीला और सियासी ताकत का अखाड़ा माना जाता रहा है। पर्दे के पीछे हर एक वोट की कीमत तय होती है। हर बार की तरह इस बार भी बड़े पैमाने पर पैसे और पावर का खेल होना तय है। जिस वार्ड सदस्य के पास संसाधन, समर्थन और संगठित तंत्र होगा, वही जिला पंचायत अध्यक्ष बनने का सपना देख सकता है। सत्ताधारी दलों की कोशिश है कि अपने समर्थित सदस्यों की अधिकतम जीत सुनिश्चित की जाए, ताकि बाद में अध्यक्ष पद पर कब्जा किया जा सके।

भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने
इस बार पंचायत चुनाव केवल स्थानीय नहीं, बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव 2027 के लिए भी बुनियाद माने जा रहे हैं। इसके चलते ही भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दल इन चुनावों को सेमीफाइनल मान रहे हैं और अपने-अपने समर्थित प्रत्याशियों की सूची के साथ मैदान में उतर चुके हैं।

विधानसभा चुनाव का गणित
हर पंचायत सीट को सियासी रणभूमि बनाया जा रहा है, जहां सिर्फ जीत ही नहीं, रणनीति और संगठन की ताकत भी दांव पर है। पंचायत स्तर से लेकर जिले तक की सत्ता पर कब्जा, आगे चलकर विधानसभा की राह को आसान बना सकता है। अब देखना दिलचस्प होगा कि इस गांवों की सियासी लड़ाई में कौन सी पार्टी बाज़ी मारती है और कौन से प्रत्याशी जनता का भरोसा जीत पाते हैं। ।

About AdminIndia

Check Also

उत्तराखंड : हाईकोर्ट का आदेश, पंचायत चुनाव अधिसूचना पर आज होगा बड़ा फैसला, निरस्त होगी अधिसूचना?

देहरादून : उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की अधिसूचना अब संशय के घेरे में आ …

error: Content is protected !!