Wednesday , 18 June 2025
Breaking News

उत्तराखंड : अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में दो दिन हुआ मंथन, ऐसे हल होंगी राज्य की दो सबसे बड़ी समस्याएं

बड़कोट: विचार और चर्चाओं से दुनिया की बड़ी-बड़ी समस्याओं का हल हुआ है। जब भी सकारात्मक दिशा में कोई चर्चा होती है, उससे कुछ ना कुछ बेहतर चीजें निकलकर सामने आती हैं। समाज में जब कुछ ऐसा घट रहा होता है, जिससे आने वाले समय में बड़ा नुकसान होने वाला होता है या फिर हो रहा होता है। तब समाज के जागरूक और चिंतनशील लोग उन समस्याओं के समाधान के लिए चिंतन और मनन करते हैं।

महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलता है
विचारों के मंथन से जो भी महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलता है। उससे समाज को नई दिशा मिलती है और समस्याओं से निपटने में मदद मिलती है। ऐसा ही मंथन स्व. राजेंद्र सिंह रावत राजकीय महाविद्यालय बड़कोट में भी हुआ, जिसमें उत्तराखंड समेत देश और विदेशों के विचारकों और चिंतकों ने अपने विचार रखे और उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्याओं पर मंथन किया।

ऑल वेदर रोड या चार धाम योजना
यह अंतरराष्ट्र वेबिनार पलायन, समावेशी विकास और आजीविका पर आधारित था। इसमें उत्तराखंड, हिमांचल प्रदेश और उत्तर पूर्व के पहाड़ी राज्यों में समावेशी विकास रेखांकित करने का प्रयास किया गया। उत्तराखंड के तीन जिले उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ में पलायन, ऑल वेदर रोड या चार धाम योजना और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित रहे हैं। तीनों ही जिलों की प्रकृति भी लगभग एक समान है। इनकी अर्थव्यवस्था कहीं न कहीं स्पंदनशील कृषि और पशुपालन पर आधारित रही है। कृषि का संबन्ध लोक संस्कृति और भौतिक संस्कृति से समृद्ध रहा है।

वस्तुगत आधार मौजूद
यमुना घाटी की तीन संस्कृतियां रवांई, जौनपुर और जौनसार में जीवन जीने के वस्तुगत आधार मौजूद रहे हैं। यमुना घाटी में अनाज के भांडार (कुठार) में रखे जाते हैं, जो यह बताता है कि निजी आवश्यकता की पूर्ति के पश्चात अधिशेष की प्राप्ति होती है। बहुमंजिले भवन को सुमेरु (चौकट) कहा जाता है, जो भूकंप रोधी रहे हैं। अन्न की सुलभता विशाल कुठार इस ओर इशारा करते हैं कि धन-धान्य का अभाव बिलकुल भी नहीं था।

रामा सिराईं और कमल सिराईं
यमुना घाटी में खासकर रामा सिराईं और कमल सिराईं लाल चावल की खेती के लिए जाना जाता है। यह ऑर्गेनिक फूड है। स्थानीय स्तर पर ऑर्गेनिक फूड चेन बनाने की आवश्यकता है। तीनों ही संस्कृतियों में ऑर्गेनिक फूड का अंतर्सबंध इमुनिटी से है। इसे रेखांकित करने की आवश्यकता है। कोरोना की दूसरी लहर से बहुत से लोग काल कवलित हुए थे, लेकिन यमुना घाटी की ओर देखें तो स्थानीय लोगों की इम्युनिटी जबरदस्त रही है, जिस कारण लोगों को कोरोना उतना प्रभावित नहीं कर पाया।

ऑर्गेनिक फूड का असर
यमुना घाटी के बगासु गांव में लगभग 40-45 लोग कोरोना पॉजिटिव हुए थे, लेकिन एक सप्ताह के पश्चात वे सभी नेगेटिव हो गए थे। इससे पता चलता है कि ऑर्गेनिक फूड का कितना असर है। ये बेहद जरुरी है कि कृषि और पशुपालन वाली अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित किया जाए। चमोली जिले के घेस बधाण इलाके में भी लोगों की इम्युनिटी जबरदस्त रही है। ऑर्गेनिक फूड का नेटवर्क बेहतर तरीके से बनाया जा सकता है। रवांई और हिमांचल प्रदेश के बहुत से इलाकों में सेब का उत्पादन जबरदस्त रहा है।

पलायन की समस्या न के बराबर
बागवानी का सवाल भी इम्युनिटी से जुड़ा है। रवांई, जौनपुर और जौनसार के कई गांवों में लोग लंबे समय से रह रहे हैं। गांव आबाद हैं, जो सकारात्मक संकेत हैं। पलायन की समस्या को रेखांकित किया जा सकता है। यमुना घाटी में वर्तमान में भी पलायन की समस्या न के बराबर है, जिसका नतीजा है कि कृषि और पशुपालन अर्थव्यवस्था-समावेशी विकास और आजीविका के प्रश्न की बात करें तो जान पड़ता है कि ऑल वेदर रोड या चारधाम योजना पर सवाल खड़े किए जा सकते हैं। पहाड़ियां टूट रही हैं। यमुना घाटी और गंगा घाटी में लगभग 6000-7000 पेड़ों का कटान हुआ है, जो पारिस्थितिकीय संकट खड़ा कर सकता है। हाल ही में उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ जिलों में प्राकृतिक आपदा से बुरी तरह से प्रभावित है।

आजीविका के प्रश्न खड़े हैं
कोरोना की दूसरी लहर के पश्चात बहुत से लोग बड़े शहरों से पहाड़ों की और विस्थापित हुए थे, जहां आजीविका के प्रश्न खड़े हैं। मनरेगा जैसी योजनाओं का क्रियान्वयन बेहतर तरीके से किया जाना चाहिए। उत्तराखंड की संकल्पना यह है कि तीनों जिलों के समावेशी विकास को बेहतर तरीके से क्रियान्वयन किया जाना चाहिए। पलायन (माइग्रेशन) और विस्थापन (डिस्प्लेसमेंट) को अलग-अलग नजिरिये से देखा जाना चाहिए।

टिहरी बांध परियोजना
टिहरी बांध परियोजना से विस्थापित हुए लोग देहरादून के विभिन्नि इलाकों में बसे थे। प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित इलाकों को विस्थापित करने की आवश्यकता है। जोशीमठ से बदरीनाथ का इलाका संवेदनशील रहा है। बादल फटने, भूस्खलन और अन्य गतिविधियों के कारण स्थानीय लोगों के सामने दुश्वारियां हैं। संवेदनशील इलाकों को विस्थापित करना समझदारी है।

स्वैच्छिक चकबंदी
दिवंगत राजेन्द्र सिंह रावत स्वैच्छिक चकबंदी के प्रणेता रहे हैं। चकबंदी का पहला प्रयास यमुना घाटी के बीफ गांव से शुरुआत हुई थी। खेतों का बंदोबस्त का आशय है कि छोटे-छोटे भूखंडों को मिलाकर एक बड़ा भूखंड या खेत तैयार किया जाता है।

चकबंदी एक ऐसी प्रक्रिया
चकबंदी एक ऐसी प्रक्रिया रही है, जिसके अंतर्गत किसानों के इधर-उधर बिखरी हुई जातों को उनके आकार के आधार पर उन्हें एक स्थान पर करके, एक बड़ा चक बना दिया जाता है। कृषि संसाधानों का समुचित प्रयोग का सीधे-सीधे प्रभाव कृषि उत्पादन पर पड़ता है। हालांकि यमुना घाटी में स्वैच्छिक चकबंदी की शुरुआत भले ही बीफ गांव से हुई हो, लेकिन यमुना घाटी में इस तरह के प्रयास नहीं हो पाए। कृषि का संबन्ध सीधे तौर पर उत्पादकता से है। चकबंदी कृषकों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। प्रकृति तंत्र वादियों ने कृषि को धन का श्रोत माना है और निकास को उत्पादन का।

उत्पादन बिना श्रम
एडम स्मिथ का मानना है कि किसी भी वस्तु का उत्पादन बिना श्रम के नहीं होता। उनके अनुसार श्रम से उत्पन्न वस्तु के विनिमय मूल्य में जो वृद्धि होती है, वह उत्पादन है। रवांई, जौनपुर और जौनसार समाज में श्रम का बड़ा महत्व है। पलायन यमुना घाटी में काफी कम रहा है। लिंगानुपात भी संतुलित है। कन्या भ्रूण हत्या जैसी गतिविधियां कम दिखाई देती हैं।

पलायन, समावेशी विकास और आजीविका
राधा बहन, गांधीवादी कार्यकर्ता ने सर्वाेदय की भावना को अंगीकृत किया है। ”सर्वेपी भवंति सुखिन, सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत…। इसका आशय है सबका उदय, सबका उत्कर्ष, सबका विकास, सबका सुख है। यही समावेशी विकास की अवधारणा है। राधा बहन ने खादी ग्रामोद्योग पर जोर दिया। शराब बंदी को रेखांकित किया। राधा बहन ने पलायन, समावेशी विकास और आजीविका पर गहन विमर्श किया। महिला स्वयं सहायता समूह जैसे संगठन बहुत सारी गतिविधियों को अंजाम दे सकती हैं। मानव स्वभाव से ही लालची प्रवृति का है, जो समूची प्रकृति के संसाधनों का दोहन करता है। इस प्रकार की गतिविधियों को रोका जा सकता है। तमाम वकक्ताओं में डॉ. नवीन जुयाल, प्रो. एकलब्य शर्मा, फ्रांसिस आदि ने सतत विकास या टिकाऊ विकास को रेखांकित किया।

शिवालिक की तलहटियों में
पलायन एक ऐसी प्रक्रिया रही है जो स्वतःस्फूर्त है। 2013 की प्राकृतिक आपदा के पश्चात बहुसंख्यक कर्मचारी, अध्यापक, प्राध्यापक, वकील, डॉक्टरों ने देहरादून की शिवालिक की तलहटियों में पैर जमाने भी शुरू कर दिए। उत्तराखंड सरकार ने स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास ने प्राथमिकता के आधार पर ईमानदार कोशिशों को अमली जामा नहीं पहनाया। सभी विषयों को रेखांकित किया जाना चाहिए। उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ के युवा उच्च शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा के लिए देहरादून जाना पड़ता है। इन जिलों में उत्कृष्ट संस्थान बनाए जाने चाहिए। ताकि युवाओं का विस्थापन पहाड़ों की ओर हो।

पलायन की स्थिति भयावह
पलायन एक चिंतन के संयोजक रतन सिंह असवाल ने कहा कि बहुत से गांव भुताह गांवों में तब्दील हो गए हैं। पौड़ी और अल्मोड़ा में पलायन की स्थिति भयावह है। ऐसे में आजीविका के साधन कैसे उपलब्ध हों, इन पर उन्होंने खासा फोकस किया है।

सतत विकास की अवधारणा
समावेशी विकास के पैरोकार डॉ. नवीन जुयाल और सुशील बहुगुणा ने चिंता व्यक्त की कि सतत विकास की अवधारणा बेईमान प्रतीत लगती है, ऑल वेदर रोड या चार धाम परियोजना पर सवाल खड़े होते हैं।

आजीविका के साधन
कल्याण पॉल, ग्रास रूटस फाउंडेशन के संस्थापक हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूह के जरिये आजीविका के साधन जुटाने चाहिए। रानीखेत में फलों की बेल्ट है, जिन्हें प्रोसेसिंग करके विभिन्न उत्पादों को बाज़ार में लाने चाहिए। आजीविका के साधनों को बढ़ाने की जरुरत है।

ऑर्गेनिक फूड
कल्याण सिंह रावत, संस्थापक, मैती आन्दोलन ने समावेशी विकास को रेखांकित करते हुए कहा कि घेस बधाण के इलाकों में ऑर्गेनिक फूड की भरमार है, जिसका बड़ी मात्रा में उत्पादन किया जाना चाहिए। प्रकृति को बचाए रखना हमारी पहली प्राथमिकता है।

प्लास्टिक बैंक
अनूप नौटियाल, एसडीएस फाउंडेशन, देहरादून ने दो दिवसीय वेबिनार पर बात करते हुए कहा कि प्लास्टिक बैंक बनाने की आवश्यकता है। अपशिष्ट प्रबंधन को रेखांकित किया जाना चाहिएद्यबड़े शहरों में कूड़े के टीलों में तब्दील होचुके हैं, जिनका निस्तारण वैज्ञानिक विधियों से किया जाना चाहिए।

युवाओं को फेलोशिप
फोर्ड फाउंडेशन फेलो नेत्रपाल सिंह यादव ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर के पश्चात विद्यार्थियों के सामने बड़ी चुनौतियां हैं। तीन जिलों उत्तकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ के युवाओं को फेलोशिप दी जानी चाहिए, जिससे आजीविका के प्रश्न को रेखांकित किया जा सके।

हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट
सामाजिक कार्यकर्ता इन्द्रेश मैखुरी ने हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट के सवालों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि समावेशी विकास की अवधारणा को कैसे एड्रेस किया जाए। तपोवन परियोजना के सवाल पेचीदा हैं। मजदूरों के काल कवलवित होने से उपजी निराशा को मानव अधिकार के प्रश्नों को एड्रेस किया जाना चाहिए।

मसौदा तैयार किया जाएगा
इंटरनेशनल वेबिनार के आयोजन सचिव इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर पर्यावरणविद् डॉ. विजय बहुगुणा ने कहा कि पलायन, समावेशी विकास और आजीविका के प्रश्नों को विभिन्न वक्ताओं ने एड्रेस किया। इन सभी विदुओं को लेकर एक मसौदा तैयार किया जाएगा, जो को उत्तराखंड सरकार को एक डॉक्यूमेंट के रूप में दिया जाना चाहिए। जिससे वेबिनार में राज्य की समस्याओं का निस्तारण और निराकरण किया जा सके।

About प्रदीप रावत 'रवांल्टा'

Has more than 19 years of experience in journalism. Has served in institutions like Amar Ujala, Dainik Jagran. Articles keep getting published in various newspapers and magazines. received the Youth Icon National Award for creative journalism. Apart from this, also received many other honors. continuously working for the preservation and promotion of writing folk language in ranwayi (uttarakhand). Doordarshan News Ekansh has been working as Assistant Editor (Casual) in Dehradun for the last 8 years. also has frequent participation in interviews and poet conferences in Doordarshan's programs.

Check Also

राजकीय महाविद्यालय बड़कोट में व्यक्तित्व विकास पर प्रेरक व्याख्यान का आयोजन

बड़कोट : राजकीय महाविद्यालय बड़कोट में करियर काउंसलिंग सेल एवं IQAC के संयुक्त तत्वावधान में …

error: Content is protected !!