देहरादून: विधानसभा भर्ती घोटाले में आज जब मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का मीडिया से सामना हुआ तो, वो लगभग धमकाने के अंदाज में पत्रकारों से ही उलझ पड़े। पत्रकार ने जब सामने से फिर सवाल दागा तो मंत्री जी ने मुंह फेर लिया। अब सवाल यह है कि इन गड़बड़ियों की जांच कौन कराएगा? क्याा भाजपा सरकार का जीरा टॉलरेंस अब काम नहीं करेगा? इस तरह के तमाम सवाल लोग खड़े कर रहे हैं।
सवाल यह है कि अगर उनको ग्रीष्मकालीन राजधानी के लिए जरूरत थी तो फिर मंत्री और नेताओं के पीआरओ और रिश्तेदारों को ही क्यों नौकरी दी गई? क्यों इन नौकरियों को आम लोगों के लिए खोला गया? क्यों मंत्री कह रहे हैं कि हां हमने रखा। उनका कहने का लहजा बता रहा है कि वो धमका रहे हैं।
कुलमिलाकर अब भाजपा सरकार पूरी तरह से फंस कुची है। हो सकता है कुछ दिनों में इसको लेकर भाजपा के भीतर ही कुछ लॉबिंग ना शुरू हो जाए। एक तरफ पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत को निशाने पर लिया जा रहा है और दूसरी और अब विधानसभा भर्ती घोटाला सामने आ गया है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस मामले में कहा कि उन्होंने फाइल लौटा दी थी।
बड़ा सवाल यह है कि तत्कालीन वित्त सचिव अमित नेगी ने भी नियमविरुद्ध नौकरी पर लगे कर्मचारियों को वेतन रिलीज नहीं किया था। नई सरकार में जैसे ही प्रेमचंद अग्रवाल वित्त मंत्री बने। सबसे पहले अमित नेगी को हटाया गया और उसके बाद सभी चहेतों का वेतन भी निकाला गया।
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इस पर भी जब पत्रकारों ने सवाल दागा तो मंत्री बचते नजर आए। वो कहने लगे कि एक ही सवाल का बार-बार जवाब नहीं देंगे। अपनी गलतियों को मानने के बजाया खुलेआम कह रहे हैं कि हां हमें जरूरत थी तो नौकरी पर रख लिए और किसी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है। लेकिन, सवाल फिर वही है कि केवल मंत्रियों के पीआरओ और पार्टी के करीबियों को ही क्यों नौकरी दी गई?