श्रीनगर : हेमवतीनंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में VC के चयन की प्रक्रिया चल रही है। इसके लिए आवदेन जरूर मांगे जाते हैं, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि बगैर सेटिंग के इस सीट पर बैठ पाना थाड़ा मुश्किल है। VC की कुर्सी पर बैठने के लिए कुर्सी दौड़ में दावेदार पूरा जोर लगाए हुए हैं। इस बीच विश्वविद्यालय से जुड़े एक पुराने CBI के केस की चर्चा भी होने लगी है।
बतया जा रहा है कि VC की रेस में ऐसा चेहरा भी शामिल है, जिनका नाम CBI केस में शामिल था। उन पर तत्कालीन VC के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे। ये मामला 2021 का है, जब CBI ने छापेमारी की थी। सूत्रों के अनुसार वाईस चांसलर पद के लिए करीब 30-40 उम्मीदवार हैं। हालांकि, आवेदनों को लेकर फिलहाल स्थिति साफ नहीं है।
इनमें से एक हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के केमेस्ट्री डिपार्टमेंट के प्रोफेसर का नाम भी बताया जा रहा है, जो तत्कालीन VC प्रो. कौल के समय विश्वविद्यालय के OSD नियुक्त किए गए थे। उस समय उन पर भ्रष्टाचार और वित्तिय अनियमितताओं के आरोप लगे, जिसकी जांच तक हुई। चर्चा है कि VC की कुर्सी की रेस में वह भी शामिल हैं, जो पूरा जोर लगाए हुए हैं।
यह था पुराना मामला
2021 में हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के श्रीनगर समेत उत्तर प्रदेश में कुल 14 जगहों पर CBI ने छोपेमारी की थी। ये कार्रवाई HNB गढ़वाल यूनिवर्सिटी के तत्कालीन वाइस चांसलर व अन्य आरोपियों के आवासों व कार्यालयों पर की गई। सीबीआई ने पूर्व कुलपति जेएल कौल, उनके OSD और अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार के छह मामलों के संबंध में छापेमारी की जांच की थी।
उन पर अपने ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (OSD) और हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के अन्य अज्ञात अधिकारियों के साथ मौजूदा संबद्धता को जारी रखने या विस्तार के लिए दिशानिर्देशों और विनियमों का उल्लंघन करते हुए विभिन्न निजी संस्थानों, कॉलेजों को संबद्धता के विस्तार के लिए प्रोत्साहित करने का आरोप लगा था।
3 दिसंबर 2014 को गढ़वाल विवि के कुलपति बनने के बाद प्रो. जेएल कौल के कार्यकाल में निजी शिक्षण संस्थानों की संबद्धता और सीटों की वृद्धि की शिकायत MHRD (मानव संसाधन विकास मंत्रालय) से की गई थी। इस पर MHRD ने शिकायतों की प्राथमिक जांच के लिए समिति (फैक्ट फाइंडिग कमेटी) का गठन किया था।
समिति की रिपोर्ट के बाद MHRD ने राष्ट्रपति (विवि के विजीटर) से प्रो. कौल को हटाने की अनुमति मांगी थी। हालांकि, इससे पूर्व प्रो. कौल ने इस्तीफा भेज दिया था, जिसे स्वीकार नहीं किया गया। राष्ट्रपति की अनुमति मिलने के बाद 29 दिसंबर 2017 को प्रो. कौल को पदमुक्त कर दिया गया। बाद में यह मामला CBI को दे दिया गया। कार्य परिषद की मई 2020 में आयोजित बैठक में केस दर्ज करने की अनुमति दे दी गई थी।
ये है पूरा मामला
मामला कुछ नामी प्राइवेट शिक्षण संस्थानों से जुड़ा हुआ था। उन संस्थानों में नए कोर्स शुरू करने के लिए पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद नहीं था। बावजूद, इनमें न सिर्फ सीटें बढ़ाईं गईं। बल्कि नए कोर्स के लिए भी मान्यता दी गइ थी। यह सब तत्कालीन कुलपति जेएल कौल और उनके OSD की जानकारी में हाने की बात सामने आई थी। 2012 से 2017 तक हुए इस खेल में सीबीआई जांच 2018 में शुरू हुई।
हाई कोर्ट के आदेश नहीं माना
मान्यता देने में उस वक्त यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने हाईकोर्ट के आदेश को भी दरकिनार किया था। इसमें विभिन्न कोर्सों के लिए संस्थानों में क्या-क्या सुविधाएं और इंफ्रास्ट्रक्चर होना चाहिए इसका एक नियम तय किया था।