उत्तरकाशी: 2022 की बिसात में चुनावी शोर थम गया है, लेकिन अब भी प्रत्याशी जनसंपर्क कर लोगों को अपने पक्ष में करने में जुटे हैं। प्रत्याशियों ने पूरी ताकत लगाई हुई है। इस बार राज्य की कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले बन रहे हैं। इनमें एक सीट उत्तरकाशी जिले के यमुनोत्री सीट भी है। इस सीट पर मुकाबला भले कैसा ही हो, लेकिन अब तक के चुनावी समीकरणों और आंकड़ों की मानें तो, जो भी प्रत्याशी गंगा घाटी का साधने में सफल हो जाएगा, जीत का सेहरा उसीके सिर बंधने की उम्मीदें भी उतनी ही ज्यादा हैं।
यमुनोत्री विधानसभा भौगोलिक दृष्टि से यमुना और गंगा घाटी में बंटी हुई सीट है। यमुना घाटी में बड़कोट, ठकराल, बनाल पट्टी का आधा हिस्सा और गीठ पट्टी आती है। जबकि गंगा घाटी में ब्रह्मखाल से लेकर चिन्यालीसौड़ तक का पूरा क्षेत्र शामिल है। अब तक के वेटिंग ट्रैंड के अनुसार यमुना घाटी से 16 से 17 हजार मतदान औसतन होता रहा है। विधानसभा सीट पर भी अब तक औसत वोटिंग 28 से 30 हजार का रहा है। जबकि, इस बार वोटिंग कुछ बढ़ सकती है। गंगा घाटी में भी औसतन 17 हजार तक वोटिंग होती है।
यमुनोत्री विधानसभा सीट पर बहुसंख्य मतदाता हिन्दू ही हैं। यहां कुल मतदाता 75 हजार से अधिक हैं। अगर जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर ठाकुर मतदाता-55 प्रतिशत, ब्राह्मण मतदाता-18 प्रतिशत, अनुसूचित जाति-27 प्रतिशत और मुस्लिम-0.01 प्रतिाता हैं। इस सीट की स्थिति यह रही है कि यहां आज तक धर्म के आधार पर वोटिंग नहीं होती है। क्षेत्रवाद और जातिवाद जैसे समाज का कोढ़ कहे जाने वाले मुद्दे हावी रहते हैं, लेकिन इस बार माहौल कुछ बदला हुआ है।
यमुनोत्री विधानसभा में आज तक के विधानसभा चुनाव का इतिहास रहा है कि जिसने गंगा घाटी की जनता का भरोसा जीत लिया, जीत उसीको मिलती है। यूकेडी से 2002 में प्रीतम सिंह पंवार ने सर्वाधिक मत गंगा घाटी से ही हासिल किए थे। जबकि यमुना घाटी से महज 2000 वोट ही मिले थे। बावजूद उन्होंने जीत हासिल की। 2007 में यमुना घाटी से उनको कम वोट मिले, नतीजा यह रहा कि वो चुनाव हार गए।
2012 में यमुनाघाटी से दोनों राष्ट्रीय दलों ने अपने उम्मीदवार घोषित किया। नतीजा यह रहा कि यमुना घाटी के अधिकांश वोट भाजपा-कांग्रेस में बंट गए और निर्णायक भूमिका गंगा घाटी के वोटरों की रही। गंगा घाटी से मजबूत प्रत्याशी प्रीतम सिंह अकेले चुनाव मैदान होने के कारण वह फिर चुनाव जीत गए थे। 2017 में भी दोनों राष्ट्रीय दलों ने अपने टिकट यमुना घाटी के केदार रावत और संजय डोभाल को देकर उम्मीदवार बनाया।
बीजेपी के केदार सिंह रावत और कांग्रेस के संजय डोभाल के बीच टक्कर हुई, लेकिन केदार सिंह रावत गंगा घाटी में मजबूती से उभरे और जीत हासिल की। जबकि प्रीतम सिंह धनौल्टी से चुनाव लड़ने चले गए थे। 2022 की बिसात में भी स्थिति कुछ पहले जैसी ही है। भाजपा ने यमुना घाटी से ही अपना उम्मीदवार खड़े किए हैं। जबकि निर्दलीय संजय डोभाल भी बड़कोट से हैं।
हालांकि, इस बार एक रोचक बात यह है कि कांग्रेस प्रत्याशी दीपक बिजल्वाण पुरोला से जिला पंचायत अध्यक्ष बनने के बाद चिन्यालीसौड़ में ही शिफ्ट हो गए और यहीं अपनी कर्मस्थली बना ली। इस लिहाज से उनको गंगा घाटी का उम्मीदवार कहा जा रहा है। भाजपा और निर्दलीय प्रत्याशी संजय डोभाल ने भी उनका विरोध यमुना घाटी में बाहरी का टैग देकर किया। जबकि, गंगा घाटी में दीपक को घर जैसा प्यार मिलता रहा। यमुना घाटी में संजय डोभाल पहली पंसद बनते नजर आ रहे हैं। लेकिन, जीत का आशीर्वाद देने वाली गंगा घाटी में दीपक पहली पंसद हैं।
जानकारों की मानें तो इस बाद यमुना घाटी से करीब 17 हजार वोट पड़ सकते हैं। भाजपा-कांग्रेस का कैडर वोट तो उनको मिलेगा ही, लेकिन जो वोट छिटक गए हैं, वह निर्दलीय संजय डोभाल के पक्ष में जा सकते हैं। लेकिन, कुछ वोटर ऐसे भी हैं, जो साइलेंट रहकर सबके साथ शामिल होते हैं। जब वोट डालने की बारी आती है, यह तभी अपना वोट तय करते हैं। माना जा रहा है कि इन वोटरों को बंटना भी तय है। ऐसे में एक बार फिर गंगा घाटी जीत का आधार बनती जा रही है।
यह भी कहा जा रहा है कि गंगा घाटी में हमेशा की तरह इस मर्तबा भी वोट प्रतिशत बढ़ सकता है। अगर गंगा घाटी में 20 हजार से अधिक का मतादान होता है, तो एक बार फिर जीत उसीको मिलेगा, जिसके पक्ष में गंगा घाटी से सार्वाधिक वोट होंगे। गंगा घाटी के वोटरों में इस बार सत्ता विरोधी लहर व पार्टी कार्यकर्ताओं के खुलकर विरोध करने से कमल भाजपा को नुकसान हो सकता है। जबकि कांग्रेस के दीपक बिजल्वाण पिछले दो-ढाई सालों से लगातार गंगा घाटी में ही फोकस कर रहे हैं। उन्होंने तैयारी भी चुनाव के पुराने इतिहास के हिसाब से ही की है।
दीपक कांग्रेस के वोट और सक्रिय कार्यकर्ताओं के बल पर मैदान में हैं। उनको बीजेपी के पूर्व राज्य मंत्री जगवीर भंडारी के कांग्रेस में आने के बाद और मजबूती मिली है। तय माना जा रहा है कि यमुना घाटी से इस बार तीनों ही प्रत्याशियों के बीच वोटों का अंतर ज्यादा नहीं रहने वाला है। ऐसे में जीत-हार का फैसला गंगा घाटी ही करेगी। गंगा घाटी में दीपक बिजल्वाण काफी मजबूत बताए जा रहे हैं।
राजनीत के पुराने खिलाड़ी व विधानसभा चुनाव का लड चचके रणवीर सिंह राणा बताते हैं कि दीपक बिजल्वाण गंगा घाटी से 14 से 15 हजार से अधिक वोट अकेले गंगा घाटी से हासिल कर सकते हैं। ग्रामीणों का कहना था कि गंगा घाटी के अधिकांश ग्रामीण दीपक के लिए लामबंद हो गये हैं। कोरोना काल में काम दीपक के इस चुनाव में सबसे बड़ा सहायक बनते नजर आ रहे हैं।
दीपक बिल्वाण भले ही उम्र में सबसे छोटे हों, लेकिन राजनीतिक अनुभव में पीछे नहीं हैं। छात्र संघ अध्यक्ष बनने से लेकर अब तक पांच चुनाव जीत चुके हैं। छठी बार दीपक विधानसभा चुनावी मैदान में उतरे हैं। दीपक को चुनाव जीतने की पूरी उम्मीद है। हालांकि, भाजपा और निर्दलीय उम्मीदवार भी यही दावा कर रहे हैं। अब देखना होगा कि 10 मार्च को क्या परिणाम सामने आते हैं।